Monday 26 June 2017

मैंने देखा है इंसानियत को दफन होते

मैंने देखा है दूधमुंहे बच्चे को दूध के लिए तडपते
मॉ की सूखी छाती को निचोडकर पीते
मैंने देखा है दो जून के निवाले के लिए होटलों में काम करते और ललचाई निगाह से खाने को निहारते बच्चे
मैंने देखा है कचरे के ढेर से भोजन ढूढता और मिलने पर कुत्ते के साथ संघर्ष करता भिखारी को
मैंने देखा है पीठ पर बच्चा बॉधकर ईंट- गारा ढोती औरत को
मैंने देखा है बीमारी से कराहते पर रोजी- रोटी चलाने के लिए ठेकेदार की गालियॉ सुनता मजदूर को
मैंने देखा है पशु से भी गया- गुजरा जीवन जीते हुए को
मैंने देखा है ठंड में कपकपाते और बरखा में भीगते बेघर लोगों को
मैंने देखा है बूढे लरजते - कॉपते हाथों को रिक्शा घसीटते हुए
मैंने देखा है बूढी औरत को सडक पर सब्जियॉ बेचते हुए
मैंने देखा है किसान को आत्महत्या करते हुए
मैंने देखा है पुलिस वालों को त्योहार - उत्सव पर ड्युटि करते हुए
मैंने देखा है सैनिक को आंतकवादियों का निशाना बनते हुए
मैंवे देखा है किसी निरपराधी को उग्र भीड द्वारा पीटते हुए
गाडी में तोड- फोड करते और जलाते हुए
मैंने देखा है दहेज के लिए प्रताडित लडकी और उसके गिडगिडाते बाप को
मैंने देखा है रिश्वत से फिसड्डी को टॉपर बनते हुए
मैंने देखा है शिक्षकों द्वारा अंकों की हेरा- फेरी करते
मैंने देखा है अफसर को घूस लेते हुए
मैंने देखा है रेल के बाहर लटकते मुसाफिरों को
मैंने देखा है घंटो बस की प्रतीक्षा करते यात्रियों को
मैंने देखा है टेक्सी और रिक्शावालों की मनमानी को
मैंने देखा है लडकियों पर फिकरे कसते शोहदों को
मैंने देखा है नेताओं को घर- घर वोट मॉगते
मैंने देखा है इंसान को जिंदा लाश बनते और इंसानियत को दफन होते
मैंने देखा है़़़़़़़़़़़़़

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