Sunday 9 July 2017

सुख- दुख को साझा करता कुऑ

लोगों की प्यास बुझाता कुऑ
सुख- दुख बॉटता कुऑ़
पनिहारिने पानी भरती
घूंघट की ओट से बतियाती
घर की बातें , परिवार की बाते
सास- बहू की बातें , पति की बाते
मायके - ससुराल की बाते
सखी - सहेलियों का मिलना
हँसी - ठिठोली करना
बच्चों को गोद में ले दुलारना
नौजवानों का स्नान करना
हँसना - खिलखिलाना
गाय- बैलों को पानी पिलाना
बूढों का झुंड बनाकर बैठना
राहगिरों को रास्ता बताना
पानी पिलाना
धर्मादा कार्य करना हो तो कुऑ बनवाना
खेतों की क्यारियों को पानी से सींचना
पुरा गॉव का मिलन कुएं की मुंडेर पर किसी न किसी रूप में होना
रहट की आवाजें और बांस की फल्लियां डाला हुआ
कुऑ
अब कम ही नजर अा रहा है
अब तो नहर है ,हैंडपंप है ,आधुनिक सुविधाएं
कुछ पाटे जा चुके है ,कुछ पाटने की कगार पर
हमारी संस्कृति का अमूल्य हिस्सा
न जाने कितने किस्सा- कहावियों का गवाह
आज लुप्त हो रहा है
अब शहर में टेंकर तो गॉव में नहर
पानी न मिलने पर टैंकर
जिसके आते ही लोगों में भाग- दौड
पानी के लिए मची अफरा तफरी
मार- पीट तक की नौबत
कभी पानी पिलाना शबाब का काम समझा जाता था
आज व्यापार बन गया है
पानी अब बोतल में मिल रहा है
पैसे में मिल रहा है
अब कोई कुऑ नहीं बनवा रहा है
बोरवेल गडवा रहा है
कुऑ चुपचाप अपने को खत्म होते देख रहा है
हॉ ,लेकिन अब भी किसी जरूरतमंद की जरूरत करने को तैयार है
अब भी जमीन खोदने पर पानी देने को मना नहीं कर रहा
पर लोग भूल रहे है
जिसने सदियों से हमारे घर के दरवाजे पर खडे हो हमारी प्यास बुझाई
हमारे खेतों की सिंचाई की
उसका असतित्व भी हम ही खत्म कर रहे

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