Thursday 13 July 2017

भाषा नहीं भाव हो

भाषा नहीं भाव होना चाहिए
मन की भावनाओं को समझना है
मन अगर भावों से भरा हो
वहॉ बिना बोले ही काम चल जाएगा
मूक पर प्रेम की भाषा तो पशु भी समझ जाता है
भाषारूपी विवाद में प्रेम बाजी मार ले जाता है
बचपन में बच्चा भाषा नहीं
प्यार की बोली और स्पर्श पहचानता है
प्रान्त और देश की क्या बिसात??
यह तो स्वयं का बुना मकडजाल है
जिसमें व्यक्ति फंस गया है
एक ही भाषा बोलने वाले आपस में मित्र हो
यह भी जरूरी नहीं
चाहे कोई भी रिश्ता हो निभाना आना चाहिए
पति- पत्नी , पडोसी या फिर सहयात्री
भाषा दूर करती है
भावना पास लाती है
भाषा का महत्तव तो है , उससे तो इन्कार नहीं
पर इतना तवज्जों भी न दिया जाय कि आपसी मतभेद का कारण बने
पर परिस्थिति विपरीत है
भाषा के नाम पर अलगाव हो रहे हैं
दंगे - फसाद हो रहे हैं
भाषा ईश्वर की सबसे बडी देन मनुष्य को है
लिखने ,सोचने- विचारने ,इतिहास को जानने
संस्कृतियों और विरासत का आदान- प्रदान
सब तो यही करती है
भाषा का काम तो जोडना है तोडना नहीं

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