Sunday 8 October 2017

याद आते हैं वह दिन बचपन के

आज सब कुछ है पर वह मौज - मजा नहीं
अपनी ही पाठशाला में गई थी
बच्ची की टिचर ने बुलाया था
कुछ बच्चों ने आपस में झगडा किया था
एक पुरानी आलमारी को देख अपना दिन याद आ गया
वहॉ लॉस्ट प्रापर्टी हुआ करती थी
जब भी कुछ खोता था तो आकर उसमें देखते थे
हमारा छुटा हुआ या खोया हुआ सामान होता था
पहचान बताकर ले जाते थे
बचपन की उत्सुकता अभी तक थी
अलमारी का दरवाजा भिडका हुआ था
थोडा सा ठेला तो दिखा
वॉटर बॉटल , खाने के डिब्बे ,छतरी ,कंपास बॉक्स
और न जाने क्या - क्या ???
हम तो इरेजर में भी नाम और निशान लगा कर रखते थे
हर सामान पर क्योंकि गुम हुआ तो फिर घर पर डाट
आज के जैसे रंगबिरंगे डब्बे , बॉटल , पेंसिल बॉक्स
नहीं बल्कि एक या दो पेंसिल
जब तक कि वह खत्म न हो जाय
स्याही की बॉटल छुपाकर रखना
एक - एक पन्ने को संभालना ताकि बुक- बांइडिग कराकर रफ बुक के लिए इस्तेमाल करना
केंलैडर और अखबार के कवर
होली के पहले दिन इंक पेन से खेलना
झुंड के झुंड में पैदल ही पहुंचना
बडे स्कूल की जरूरत नहीं
घर के पास ही बी एम सी का स्कूल हो तब भी ठीक
खाने की छुट्टी में पांच पैसे में जो भी मिले
न मंहगी चीजे थी फिर भी सुकुन था
आज बच्चे के पास सब चीजें उपलब्ध है
एक की जगह चार- चार
पर वह लगाव नहीं जो हमारे इकलौते चीज से था
फिर चाहे वह लंच बॉक्स हो या वॉटर बॉटल
कलर बॉक्स हो या कम्पास
एक चॉक पाकर भी लगता था जन्नत हासिल हो गयी
दूसरे दिन सफेद जूते पर घिस डालते थे
आज दिन अच्छे हैं
सब उपलब्ध है पर फिर भी संतोष नहीं
उसके पास है तो मेरे पास क्यों नहीं??
यह प्रवृत्ति घातक भी है
होड कही गलत मार्ग पर न ले जाकर खडा कर दे
महत्तव कैसे पता चलेगा ???
डाट - डपट नहीं , दंड नहीं , हर इच्छा पूरी
हमारे तो वह दिन थे कि पहाडा न आने पर मार पडेगी
रटते रहते थे
कविताएं कंठस्थ हो जाती थी
सामान की हिफाजत करना आता था
मेहनत और लगन की आदत लगती थी
वैमनस्य की भावना नहीं थी
लडते थे झगडते थे और एक होते थे
घर तक तो बात ही नहीं पहुंचती थी
पर जमाना बदल गया है
हम भी कभी बच्चे थे को छोडकर
वर्तमान में आ गई
पता नहीं क्या मामला हो
बच्चे संवेदनशील हो गए है
मन पर असर हुआ तो न जाने क्या कर बैठे??
सब डरे हुए हैं
मॉ - बाप ,परिवार ,शिक्षक
हम पर तो पडोसियों का भी हक होता था
वह भी डाटते थे
आज तो कोई देखता भी नहीं
पर यह सही है क्या  ?????
इतना निर्लिप्त हो कैसे काम चलेगा
तभी तो घटना घटती है और लोग देखते रहते हैं
कौन लफडे - झंझट में पडेगा
पुलिस और कानून के पचडे में
पडोसी से क्या घर के सदस्यों पर से विश्वास हट रहा है
नई आनेवाली पीढी डर और खौफ के साये में
अति सुरक्षा के घेरे में जी रही है
हम कैसा समाज और भविष्य उनको दे रहे हैं
अकेलापन ,अविश्वास , डर ,आंतक ,अक्रामक
प्यार ,दया ,मैत्री , सम्मान , संतोष ,धीरज का अभाव
यह बहुत खतरनाक है
स्वयं को और समाज को बदलना पडेगा
अपनी नई पौध को निर्माण करने में

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