Monday 2 April 2018

बचपन हूँ पचपन नहीं

मैं बचपन हूँ , मुझे बचपन ही रहने दो
मुझे खेलना है कूदना है
बिना बात के रोना है , गिरना है
हँसना - खिलखिलाकर , चिल्लाना है
हाथ - पैर पटककर जिद करना है
छोटी - छोटी बात. पर मचलना है
सामान से छेडछाड करना है
कीचड -धूल मे लोटना है
धूप मे भटकना है
मस्ती और धमाल करना है
मैं चंचल हूँ ,गंभीर नहीं
भोलाभाला और नादान  हूँ
   छल कपट से कोसों दूर हूँ
बालसुलभ चंचलता ही तो मेरा गुण है
मुझे   समय से पहले बडा मत बनाओ
दोस्तों के साथ झगडने दो
पडोसियों को परेशान होने दो
शैतानी - मटरगश्ती करने दो
काँच के शीशे टूटने दो
मैं एक बार चला जाऊँगा तो फिर वापस नहीं आऊँगा
तुम मुझे बार बार बुलाओगे तब भी नहीं
मैं वह हूँ जो वापस नहीं आता
बचपन को बचपन ही रहने दो
..............पचपन नहीं

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