Sunday 23 September 2018

मां और ममता

मां अभी तक मैं तुझको समझ नहीं पाई
तुम कोमल हो या कठोर
कुछ बातों मे तुम इतनी कमजोर
मैं घर समय से नहीं पहुंची
तुम घबरा जाती हो
पर वहीं कोई बडा निर्णय लेना हो
तो पापा से भीड़ जाती हो
तबीयत खराब होती है
बिस्तर पर पड़ी होती है
पर मेरे खातिर रसोई घर मे घंटों खड़ी रहती हो
तुममें न जाने कहाँ से जान आ जाती है
मुझे देखते ही चेहरा खिल जाता है
मेरी कड़वी बातें भी नजरअंदाज कर देती हो
मेरी झुंझलाहट को भी टाल देती हो
मुझे खरोंच भी आ जाय तो
तुम्हारी जान पर बन आती है
मेरे चेहरे को देखकर पढ़ लेती हो
मुझे बारबार पूछ कर परेशानी करती हो
क्या हुआ क्या हुआ???
मैं हूँ न
तेरे लिए हमेशा हूँ
तेरी तकलीफ मेरी तकलीफ
लगता यह भगवान है
सब हर लेगी
हर तो नहीं लेगी
पर ईश्वर भी पिघल जाय
उसकी ममता के आगे
जिसके लिए संतान का सुख ही सर्वोपरि है
उसकी भूख
उसकी प्यास
उसकी चिंता
उसकी इच्छा
सब संतान की है
उसकी संतान का सुख उसका
उसका जीवन उसी के इर्दगिर्द
उसकी ममता कितनी गहरी
कितनी अनमोल
यह समझना बहुत मुश्किल

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