Friday 28 September 2018

विवाहेतर संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट

आपसी सहमति से बनाया गया विवाहेतर यौन संबंध अब अपराध नहीं रहा
नया युग है
सभी को अधिकार है अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने का
औरत और मर्द को समानता का दर्जा
लेकिन क्या यह उचित है
परिवार जैसी संस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा
बच्चों पर इसका क्या असर होगा
सारा डर और भय खत्म
अब सब खुले आम
यह तो और खतरनाक साबित होगा
मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी बरसों पहले पढी थी
नाम तो याद नहीं
पर वह वाक्य याद है
औरत कितना भी झगड़ा कर ले ,उपद्रव मचा ले ,घी का घड़ा लुढ़का दे
मर्द सब कुछ बर्दाश्त कर.लेगा
पर व्यभिचार नहीं
आज सुप्रीम कोर्ट ने अवैध संबंधों को जायज ठहरा दिया है
स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता तो कदापि नहीं
पुरूष हो या स्त्री
उसे तो बहाना मिल जाएगा
पर बहुत से घर और परिवार तबाह हो जाएंगे
हमारी भारतीय संस्कृति जो विवाह को ईश्वर का तय किया हुआ संबंध मानती है
पति के लिए मंगलकामना की जाती है
पति या पत्नी का पराया संबंध समाज स्वीकार नहीं करता
इस निर्णय से व्यक्ति गत स्वतंत्रता तो प्राप्त हो जाएगी
पर विवाह संबंध से विश्वास उठ जाएगा
मन मे हमेशा भय बना रहेगा
परिणाम भी औरत को ही भुगतना पड़ेगा
क्योंकि हमारे यहाँ अभी भी पत्नी और बच्चे पति और पिता पर ही आश्रित है
अभी इतना बदलाव नहीं आया है कि सब आत्मनिर्भर हैं
कुछ को अच्छा लगा होगा
निजता का हनन नहीं होगा
पर जीवन केवल अपना ही.
हम सबसे जुड़े हुए हैं
पर अगर पूर्ण रुप से विश्लेषण किया जाय तो यह फैसला फायदेमंद नहीं साबित होगा

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