Sunday 14 October 2018

ME TOO मैं भी

यह किसी की आपबीती है
नाम नहीं बताने की गुजारिश है
बहुत बरसों पहले इसने साझा किया था मुझसे
तब बात मन मे रह गई थी बस सहानुभूति थी उससे
आज पता नहीं वह कहाँ है
पर उसकी बात ताजा है
बिटिया कभी किसी का विश्वास न करना
यह मर्द जात बडी कमीनी होती है
इन्हें औरत के शरीर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखता
मुझे विश्वास नहीं हुआ था उसकी बात का
ऐसा भी कोई अपना हो सकता है
तब तो संबंधों से विश्वास ही उठ जाएगा
घूंघट वाले प्रांत की थी वह
जेठ और ससुर ने दुर्व्यवहार किया था
औरतों को तो बताने का सवाल ही नहीं
पति ने भी उस पर विश्वास नहीं किया था
कुलटा कह कर ताने देता था
छोडने की हिम्मत नहीं थी
दूसरा ब्याह कौन करता बेरोजगार से
बड़े घरों के गोबर पाथने का काम करती थी
वहाँ भी शिकारी थे सफेदपोश
उसने भी स्वीकार कर लिया था
जीना है तो यह होगा ही
क्या फर्क पड़ता है
शरीर थोड़े ही घिस जाएगा
यही नियति है
हम पढ़े लिखे तो नहीं है न
किसका किसका विरोध करेंगे
बात तब आयी गयी हो गई
पर आज जब सुर्खियों मे वही चर्चा है
तब लग रहा है
न जाने कितनों ने इसे बेमन से स्वीकारा है
आज आगे आ रही है औरत
बेझिझक और बदनामी के डर से बिना घबराए
अभी भी सवालों के घेरे में औरत ही
तब क्यों नहीं तो अब क्यों??
अभी ही सही
अत्याचार और शोषण का विरोध तो करना है
वह नराधम आराम से रहे
दूसरा उस आग मे ताउम्र सुलगता रहे
सबक तो सिखाना ही पड़ेगा
द्रोपदी ने दुश्शासन का रक्त पान किया था
आज की द्रौपदी उठ खडी हुई है
उसे किसी भीम की जरूरत नहीं है
वह बस आवाज उठाए
कानून अपना काम करेगा
अपराधी यो ही सस्ते  मे नहीं छूटना चाहिए
कुछ नहीं तो बदनामी तो होगी
समाज मे बेइज्जती होगी
और इन इज्जतदारो को यह रास नहीं आएगा
अगली बार कुछ करने से पहले हजार बार सोचेंगे
नारी शक्ति का एहसास तो होगा
तभी तो समाज का भी नजरिया बदलेगा

No comments:

Post a Comment