Sunday 25 November 2018

हर पत्ता कुछ कहता है

पत्ता था मै पेड़ का
लोग फूल की कद्र करते
उन पर आनेवाले फल की कद्र करते
पर पत्ते की कौन करता है
फूल गिराया मार कर
चोट तो मुझे लगी
फल पर पत्थर मारे
तब भी चोट मुझे ही लगी
पर मेरी परवाह कहाँ
फूल और फल ले गए
मुझे पैरों तले रौंद गए
यह नहीं सोचा कि
मुझसे ही इस पेड़ की शोभा है
मैं न रहू
तो यह ठूठ बन जाएगा
तब न फल आएंगे
न फूल आएंगे
न इसकी शोभा होगी
केवल लकड़ी का ढांचा रह जाएगा
मैं हर वक्त साथ हूँ
इसलिए मेरी कदर नहीं
मैं मौसम आने पर नहीं आता
हर पल आता रहता हूँ
यह हरियाली
यह सौंदर्य
यह पक्षियों का बसेरा
सब मेरे कारण
फिर मेरी उपेक्षा
यह तो सह्य नहीं

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