Wednesday 24 April 2019

मरना आसान हो गया है

मौत तो सबको आनी है
उसका समय तो नहीं
वह दबे पैर आती है
प्राण लेकर जाती है
चेतावनी भी नहीं देती संभलने का

आज की बात कुछ और है
वह धड़धड़ाती हुई आती है
कुचलती हुई जाती है

धमाका होता है जोरदार
सब परखच्चे उड़ जाते हैं
कब पटाखे की आवाज मे गोली चली
सरसराती हुई छेद गई

कब कौन किसे टकरा जाय
कब टेक्निकल खराबी आ जाय
कब सब धुआं धुआं हो जाय
कभी लालच
कभी लापरवाही
कभी अमानवीयता

कब कौन आंतक फैला दे
सब को निशाने पर रख ले
मौके की तलाश मे रहे

मौतें तो पहले भी होती रही है
वह अंजानी नहीं थी
आज अंजानी है
कब ,कहाँ और कैसे ??
यह प्रकृति और ईश्वर नहीं
मनुष्य तय कर रहा है

पहले मौत से डरता था
आज कुछ को मजा आ रहा है
जान की कीमत कम हो गई है
मौत शायद पहले इतनी सस्ती नहीं थी

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