Friday 31 May 2019

गुलमोहर

गुलमोहर खिला हुआ था
तपती धूप थी
लेकिन उसकी लालिमा बरकरार थी
तपिश मे मानो वह और सुर्ख हो रहा था
लाल लाल अंगारों सा दहकता
स्पर्धा कर रहा हो जैसे
धूप सर पर चमक रही थी
वह खिलखिला रहा था
कह रहा था
संध्या तक थक जाएंगी
प्रस्थान कर लेगी
मैं तो डटा रहूँगा
झूमता रहूँगा
हार मेरी फितरत नहीं
जितना जलूगा
और निखरूगा
मैं किसी छाह का मोहताज नहीं

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