Saturday 27 July 2019

बंद दरवाजा

दरवाजा खुला है
आस लगाये बैठे हैं कोई आएगा
कोई झाँकेगा
कोई देख कर बोलेगा
पर सब व्यर्थ
यहाँ सबके दरवाजे बंद
सब अपने अपने में मस्त
किसी को किसी से लेना देना नहीं
हम चाहते हैं मेलजोल बढाना
वे चाहते हैं दूरी बनाना
प्राइवेसी में खलल पडता है
किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं
चेहरा देखना भी गंवारा नहीं
अब अकेला रहना चाहता है हर कोई
संबंधों में सीलन आ गई है
गर्माहट रही नहीं
सब दरवाजे के पीछे अपनी अपनी दुनिया में मस्त
यही है आज हमारे महानगर की जिंदगी
पडोसी से कोई सरोकार नहीं
अब किसी के घर से भोजन की खुशबू नहीं आती
अब तो कौए भी नहीं आते
न किसी के आने का संदेश देते
जिंदगी सिकुड़ गई है
इस बंद दरवाजे के पीछे

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