Thursday 24 October 2019

वह दीया बेचती औरत

वह दीया  बेच रही थी
गोद में एक बच्चा
बगल में एक बच्चा
बच्चों का चेहरा सूखा
वह पसीने पोछती रास्ते पर बैठी
आशा है आज घर में दिया जलेगा
खाने को तेल नहीं
दिया कैसे पूरा समय जलाए
आज पैसे आएंगे
खाना भी बनेगा
झोपड़ी में उजाला भी रहेगा
दिए बस बिके
तब उसकी भी दीवाली
रोज रोज तो दीवाली आती नहीं
कुछ पकवान भी बनाएगी
इन गरीबों को यह साल में एक बार बोनस है
मिट्टी के दिए है जरूर
पर उसके लिए तो सोना है
यह लाल काली मिट्टी
पीले सोने और सफेद चांदी से ज्यादा चमकदार
इसके बदौलत ही उसके बच्चों के चेहरे पर मुस्कान
बिना जले दिया भी देता है
तेल बाती मिलने पर और रोशन होता है
घर बाहर ,अमीर गरीब सबको रोशन करता है

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