Tuesday 14 January 2020

बेटी हुई है

जन्म हुआ था
इस संसार में आगमन हुआ था
बेटी थी
जमाना दूसरा था
बेटी का वह स्थान नहीं था
आज भी सब जगह नहीं है
तब तो उस समय की बात और थी
हमारे परिवार तो कुछ विशेष था
नाराजगी नहीं
काली माता का चौरा पक्का करवाया गया
वंश चला था
उस बेटे से जो बचपन में मरणासन्न अवस्था में हो गया था
जिसकी माँ बचपन में सिधार गई थी
वंश के उस बुझते बुझते दीपक से वंश रोशन हुआ था
बेटी ही सही आशा ने जन्म लिया था
नाम रखा उम्दा
बहुत बढिया
वह बडी हो सभी की आशा बनी
पता नहीं कैसे बेटे और बेटी में भेदभाव किया जाता है
यहाँ तो माॅ इस्तरी के अभाव में लोटे में कोयला डाल कपड़ा पहनाती थी
दशक साठ का भले था
पिता कंधों पर बस्ता टांग कर पाठशाला पहुंचाते थे
दादा की लाडली थीं
पढाई भी हुई
लोगों ने भले नाक भौ सिकोड़ी हो
अगर माता पिता संतान के साथ हो
संसार की हर बाधा पार हो सकती है
माता पिता भाग्य तो नहीं लिख सकते हैं
पर कठिन समय में छत्रछाया तो रख ही सकते हैं
आज जीवन के इस पडाव पर भी
उनका प्यार एक सुकून देता है
गर्व होता है
परवरिश पर

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