Monday 6 July 2020

विभिषण और कर्ण

विभिषण ने सत्य का साथ दिया
भगवान राम के अनन्य भक्त
लंका में वही एक श्री राम भक्त
अपने भाई को छोड़ राम की शरण ली
रावण की मृत्यु का राज भी बताया प्रभु को
उनको फलस्वरूप रावण की मृत्यु के बाद ल॔का का साम्राज्य मिला
मंदोदरी से ब्याह हुआ
सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले
तब भी उनका नाम आदर से नहीं लिया जाता
यह तो विभिषण है इससे बचकर रहना
           या घर का भेदी लंका ढाए
यह रामायण युग था

अब चले महाभारत की तरफ
कर्ण को पता चल चुका था
वे राधेय नहीं कौन्तेय है
माता कुंती के ज्येष्ठ पुत्र
पांडवो के ज्येष्ठ भ्राता
धर्मराज युधिष्ठिर सारा राज-पाट उनके कदमों में डाल देते
वासुदेव के कहने पर भी उन्होंने इस तरफ आना उचित नहीं समझा
यह जानते हुए भी कि
दुर्योधन अधर्मी है तब भी साथ निभाया
अपने मित्र धर्म पर डिगे रहे
आज एक आदर की दृष्टि से कर्ण को देखा जाता है

सत्य और धर्म  की राह पर दोनों चलें
एक दोस्त जैसा भी था उसकी निष्ठा का मान रखा
अगर दुर्योधन को छोड़ देते तब भी कुछ नहीं बिगड़ता

दूसरा भाई था वे उसके राजदार थे फिर भी धोखा दिया
भाई थे शायद इसलिए रावण ने छोड़ दिया था
दूसरा होता तो दशानन सर ही काट डालते

एक रक्त का नाता
दूसरा मित्रता का नाता

निभाने में फर्क तभी तो देखने के नजरिये में भी फर्क

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