Wednesday 1 July 2020

संगी मेरी वह है चाय

उसके बिना मेरी सुबह नहीं
उसके बिना मुझे सुकून नहीं
उठते ही सबसे पहले उसके दर्शन
फिर दिन भर रहती साथ
पेपर पढते-पढते
कुछ लिखते
उसकी तलब महसूस होती है
जब मिल जाती है
तब ताजगी महसूस कराती है
सारे आलस को ठेंगा दिखा देती है
बोरियत भगा देती है
कोई न हो तब भी साथ का एहसास कराती है
अगर साथ देने वाला और कोई
तब तो और भी रंगत
कटती है
सूखती है
उबलती है
तब स्वाद देती है
पहचाना कौन
यह है मेरी प्यारी चाय
काली हो या गोरी
फीकी हो या मीठी
हर रूप में मुझे है भाती
यह न मिले तो लगता है अधूरा
दिन बना देती है
लिखने को प्रोत्साहित करती है
मानों कहती है
अब तो अंदर घूंट गई
बाहर भी पेपर पर कुछ निकालो
कुछ विचार
कुछ भावना
चाय का कप रखो
पकडो कलम
तब उठना ही पडता है
कलम चलानी पडती है
ऐसी संगी मेरी
वह है चाय

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