Friday 28 August 2020

वह चिंदी पहले जैसी नहीं रही

दर्जी की दुकान
काटना - छाटना उसका काम
नित नए-नए कपडे
उनसे आकर्षक डिजाइनर पोशाक

छोटी छोटी कतरन कपडों की
जो कहलाती चिंदी
उनको वह फेंक देता
जब ढेर लग जाता
कुछ गरीब छांटकर ले जाते
गोदडी बनाने
गुडिया गुड्डे बनाने बच्चों वास्ते
बाकी कचरे के ढेर में

चिंदी को लगता
वह कितनी उपेक्षित
उसकी कोई अहमियत नहीं
अमीर तो कोई ऑख उठाकर न देंखे
बस गरीब ही कभी कभार
कपड़ा होकर भी वह बेकार
साफ सफाई और झाडन भी न कर सकती
चोर भी आए तो उसकी ओर नजर न उठाए

उसे पता नहीं था कि उसका भी कोई मूल्य
उसको तब एहसास हुआ
जब उसके मास्क बनने लगे
सबके चेहरों पर सजने लगे

क्या अमीर क्या गरीब
क्या अनपढ़ क्या पढा लिखा
क्या अस्पताल क्या घर
क्या धर्म क्या मजहब
सबको बचाती
सुरक्षा देती
कतरन अब मास्क बनाने के काम
अब वह चिंदी पहले जैसी नहीं रही
अब तो वह कोविड से रक्षा कर रहीं
हर वक्त साथ निभा रही

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