Thursday 28 January 2021

ममता भी डरी हुई

मार खाना
कम से कम दिन में एक बार तो अवश्य ही
मार खाओ और मन पर मत लगाओ
यह हमारे जीवन का फंडा होता था
कोई भरे मैदान में पिता द्वारा जूते से पीटा जाना
कोई मोहल्ले वालों के सामने
कोई रिश्तेदार के सामने
सम्मान और इज्जत
यह बच्चों के शब्दकोश में नहीं
परिवार में आपसी झगड़ा
पति-पत्नी के बीच झगड़ा
तब दे दना-दन
सब बच्चों के ऊपर ही उतरता था
थोड़ी देर में सब भूल जाता था
पाठशाला की तो बात ही निराली
हर दूसरे दिन मुर्गा
बेंच पर खडा होना
कक्षा के बाहर
थप्पड़ और डस्टर का वार
नालायक और बदतमीज़ से नवाजना
आज तो बात ही कुछ और है
बच्चों से डर लगता है
युवाओं से डर लगता है
यहाँ तक कि बुजुर्गों से भी डर लगता है
कौन सी बात लग जाएं
कौन सा कदम उठा ले
हमारी नींव ही मजबूत थी
मार खाना
डाट खाना
यह जिंदगी का अहम हिस्सा थे
क्योंकि पता था शायद लोगों को
जिंदगी में न जाने क्या क्या करना पड़ेगा
किस तरह की ठोकरे लगेंगी
बचपन से ही ट्रेन्ड
तभी तो आत्महत्या के केस कम थे
अभिभावकों को डर नहीं था
आज तो डर का माहौल बना है
प्यार में भी डर
ममता भी डरी हुई

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