Wednesday 24 March 2021

ऐ जिंदगी कब संभलेगी

जिंदगी भर जिंदगी को संभालता रहा
वह टूटती रही मैं जोड़ता रहा
वह बिखरती रही मैं समेटता रहा
यह करते - करते मैं तो थक गया
वह न थकी न हारी
कब हाथ से फिसली
यह भी तो आभास नहीं दिया
चुपके से आई और तूफान मचा दिया
इस तूफान को मैं कैसे रोकता
यही सोचता रहा
उसमें डूबता - उतराता रहा
आखिर में थक - हार कर छोड़ दिया
जिंदगी तू बहुत जिद्दी है
बस अपनी मनमानी करती है
किसी की भी नहीं सुनती है
कितना भी जतन कर लें
तुझे तो जो करना है
वही तो करती है
तब लगता है
सब कुछ छोड़ दूँ
तुझे भी
तुझसे मुक्त हो जाऊं
तुझे भाग्य पर छोड़ निश्चिंत हो जाऊं

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