Thursday 15 July 2021

चुपचाप देखती रहूंगी

हम मरते रहें
तिल - तिल कर जलते रहें
जहर का घूंट पीते रहे
जायज - नाजायज सब सहते रहे
अपने अधिकारों का हनन करते रहे
मुख बंद कर शांत चित्त सब देखते रहे
समझौता हर वक्त करते रहे
अपमान का घूंट पीते रहे
तब भी साथ निभाते रहे
इसका क्या सिला मिला
हम तो वहीं के वहीं रह गए
तुम आगे बढ गए
तुम्हारा नाम
तुम्हारा सम्मान
तुम्हारी इज्जत
सब महफ़ूज है
महफिल सजती रही हम देखते रहें
कभी उफ तक न की
न जबान खोला
तुम्हारी इज्जत जो प्यारी थी
तुम लडखडाते रहें
हम संभालते रहें
कभी महसूस नहीं हुई
हमारी अहमियत
तुम जो हो आज
उस आज के पीछे हमारा कल है
सिसकता हुआ
शिकायत करता हुआ
पर तुम तो आज मे
वर्तमान में जीने वाले हो
भूतकाल को भूल जाओ
अतीत को देखने से क्या हासिल
मैं नहीं भूलती हूँ
इसी अतीत पर वर्तमान  और भविष्य की बुनियाद टिकी
वह तुमको कहाँ दिखाई देगा
अपने में रहने वाले
अपनों के  बारे में  तुम क्या सोचो
तुम्हारे लिए अपनों की परिभाषा कुछ और है
हमारे लिए कुछ और
वह तुम न समझोगे
जब तक समझ आएगा फिर देर हो चुकी  होगी
जो हमेशा से होता आया है
मैं चुपचाप देखती रहूंगी ।

No comments:

Post a Comment