Wednesday 27 October 2021

वह जीवन ही क्या

वह फूल क्या जिसमें कांटे न हो
वह डगर क्या जो पथरीली न हो
वह नदी क्या जिसमें भंवर न हो
वह मौसम क्या जिसमें झंझावात न हो
वह बिजली क्या जिसमें कडकडाहट न हो
वह सपने क्या जिसमें उडान न हो
वह मंजिल क्या जो कठिन न हो
वह जीवन क्या जिसमें संघर्ष न हो

कंकरीली पथरीली राहों पर चलना है
हर राह को आसान बनाना है
कितनी भी मुश्किल हो डगर
कितना भी ऊंचा हो पहाड़
चढना तो तब भी है
नीचे बैठ दृश्य नहीं देखना है
तैरना न आए कोई बात नहीं
नदी में उतर जाइए
हाथ पैर मार कर तो देखो
क्या पता किनारा मिल ही जाए
जो डरा वह कुछ नहीं कर पाया

No comments:

Post a Comment