Monday 17 January 2022

अपनी कश्ती के खेवैया तुम ही हो

नदी में  उतरे हो
कश्ती में बैठे हो
पतवार तुम्हारे हाथ में है 
लहरे उफान मार रही है
बादल उमड घुमड रहे हैं 
कडाकेदार बिजली चमक रही है
तुम्हारा मन भी विचलित हो रहा है
मन घबरा  रहा है
भय लग रहा है
किनारे पर पहुंचना है कैसे पहुँचुगा 
पहुँच पाएगा या बीच में  डूब जाऊंगा
घनघोर अंधेरा 
दूर कहीं नजर आ रहा उजाला
कश्ती के खेवैया तो तुम्हीं हो
मझधार और तूफान से निकालना तुम्हें ही है
धीरज और हिम्मत से
या फिर डर कर छोड दो
डूब जाने दो
क्या पता किनारा लग जाएं 
शायद न भी लगे
निर्णय तुम्हारा है
अपनी कश्ती के खेवैया तुम ही हो ।

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