Monday 24 January 2022

हरियाली अम्मा











हरियाली अम्मा -- मेरी लिखी कहानी संग्रह की पहली कहानी

कृष्णा बाई उनका नाम है पर लोग उन्हें जानते हैं हरियाली अम्मा के नाम से  । सांवली सलोनी कृष्णा का हरियाली  से ऐसा नाता जुड़ा कि वह उनकी पहचान बन  गया  
बहुत लंबी कहानी है  इस नाम  के पीछे। चलिए अतीत की सैर करते हैं और वास्तविकता जानने की कोशिश करते हैं छोटी उम्र में ही कृष्णा का ब्याह हो गया था यौवन की दहलीज पर  अभी कदम रखा ही था कि घर वालों ने ब्याह की रट लगा दी तब बाल विवाह होते थे भले ही बाल मन को समझ में न आता हो  कि विवाह का मतलब क्या होता है एक अच्छे मध्यम वर्ग में खानदान और खेती बाड़ी तथा  लड़के के पिता का रसूख देख उनकी शादी कर दी गई ।शादी के 5 साल बाद उन्हें गवना करा कर ससुराल वाले ले गए ।बड़ा परिवार और खाता पीता मध्यमवर्गीय ।
कृष्णा बड़ी बहू थी उस पर दुलारी।घर की दुल्हन बन डोलती रहती सब प्यार लुटाते थे उसका पति कैलाश तो उसका मुख देखे ही बैठा रहता कोठरी से बाहर ही नहीं निकलता
जब बाहर से दादी आवाज देती
राधा जी के महलियाॅ का किवार कब खुली अव श्याम जी कब दर्शन दिहै ।
तब चुपके से  सर पर गमछा लपेटे कोठी से बाहर निकल खेतों की ओर निकल जाता दरवाजे पर गाय बैल बांधे  रहते थे चारा भूसी करना , अनाज पीसना - कूटना यह सब काम रहता और सब मिलकर करते। सुबह होते ही वह बुहारना - लीपना और रसोई की तैयारी ।मर्द खेत का  और बाहर का काम औरतें घर के भीतर का काम करती संयुक्त परिवार होते थे सबका गुजारा हो जाता था आलसी और निकम्मो का भी । विधवा - बूढो का भी । सबका  बराबर का हक रहता था मालिक की तो हालत सबसे बेचारे की होती थी वह अपनापा  नहीं कर सकता था पहले सब परिवार को देखना फिर अपना परिवार। शादी ब्याह जन्म मरण सब ऐसे ही निपटते थे ।
       शिक्षा प्रवेश  कर रही थी उसके साथ व्यक्तिवाद भी पनपने लगा था चचिया ससुर का बेटा फौज में भर्ती हो गया था कमाई आ रही थी उसके साथ अलगाव की भावना भी आ रही थी आखिर  झगड़े टंटे के कारण परिवार अलग हो गया दोनों ससुर अलग अलग हो गए। खेती-बाड़ी बंट गई ।कृष्णा का पति कैलाश तो मनमौजी ही था पिता और छोटा भाई मेहनत करते थे फसल होती थी पर कितनी ??
और तो और खाने भर का साल भर का अनाज इकट्ठा करना होता है घर चलाने के लिए दूसरी तो कोई आमदनी नहीं उपर से प्रकृति का प्रकोप हुआ तब तो और भी मुसीबत ।बीड़ी तंबाकू कपड़े का प्रबंध उसी में से करना पड़ता है फिर भी बीमारी हारी भी तो देखा जाए तो कहने को खेती और अन्नदाता पर सारी जिंदगी परेशानी रहता है जुगाड़ करता रहता है।
कृष्णा की शादी को 5 साल बीत गए थे विवाह का नशा अब गायब हो चुका था बच्चा नहीं हुआ था अब तो लोग ताना देने लगे थे कैलाश पर तो दूसरी शादी के लिए जोर डालने लगे थे आखिरकार बाद में चचेरी बहन से शादी के लिए हां करवाई गई ।छोटी बहन है आदर सम्मान भी देगी उसके जो बच्चे होंगे उनकी तो मौसी भी रहेगी और बड़ी माॅ भी । औरत सब सह सकती है पर  सौतन को स्वीकार करना इतना आसान नहीं होता ।कृष्णा ने छाती पर पत्थर रख और विधि का विधान मानकर सब स्वीकार कर लिया रिश्ते की छोटी बहन शादी कराई थी अब उससे भी क्या गिला शिकवा ।कुछ दिन तो ठीक चला फिर उसके भी तेवर बदलने लगे कैलाश ने तो मुंह फेर लिया था छोटी मां बनने वाली थी उसका बहुत ख्याल रखती थी जैसे वही बच्चा जानने वाली हो इतना खुश रहती जैसे वहीं माँ हो।पहलौठा बेटा  हुआ ।साल भर भी नहीं बीता था जच्चा बच्चा का जतन करना है उसके तेल मालिश खाना पीना सब का ख्याल रखती ।अब छोटी झगड़ा भी करने लगी थी कभी कैलाश  से कहने की कोशिश करती 
तो कहता दुधारू गाय की चार लात  भली। और चला जाता 
बच्चा चलने लगा था उसको हाथ भी नहीं लगाने देती थी एक बार बच्चा खेलते खेलते गिर गया उठा रही थी कि ऑगन में आकर छोटी चिल्लाने लगी अब तो बच्चे पर निकालती है गुस्सा। ढकेल दिया होगा ।
कृष्णा के उठाते हाथ वहीं रूक गए ।आंखों में आंसू आ गए। ऐसा हर दिन हो रहा था उसकी हैसियत नौकरानी से भी बदतर हो गई थी समझ नहीं आता कि क्या करें एक शाम को ही दूर के रिश्ते के देवर आए ।मजाक तो चलता ही रहता है इस रिश्ते में । भौजाई को देख कर बोले 'भौजी  तो क्या गजब की लग रही है तू ऐसे क्यों उखड़ा रहता है उनसे। तब कैलाश ने उत्तर दिया था वह सुन उनका कलेजा चीर गया था ।
कौन फायदा ऐसे हुस्न का पेड़ हरा भरा रहे और फल न दे तो उसका क्या करेंगे ।वह तो ठूंठ ही  है ना ।
यह कटाक्ष कृष्णा पर था ।रात भर सोई नहीं भोर होते ही निकल गई ।बगीचे की से तरफ घास फूस और बांस लेकर आई ।कोठी के बाहर ही मडैया डाल दी और रहने लगी। प्रण ले लिया था अब घर में कदम नहीं रखेगी भाई पटीदार आए मनाने परवाह नहीं मानी । एक चूल्हा और दो चार बर्तन यही उनकी जमा पूंजी ।खाने का इंतजाम तो हो ही जाता किसी का कुछ कर देती है काम या फिर फसल काटी। या फिर ज्यादा सब्जी हो गई वह तो कोई समस्या नहीं ।एक जीव कितना खाएं । फिर गांव में एक के घर लौकी नेनुआ  हुआ तो तो आस-पड़ोस के  सब खाते हैं। भैस बिआई तो दूध माठा भी मिल ही जाता है।
गांव के पास तालाब था निर्जन वहां कोई नहाने वगैरा नहीं जाता था हां सुबह शाम नित्यक्रम से निर्मित होने के लिए किनारे पर जाते थे या गाय भैंस को नहलाने  के लिए। आसपास काफी जमीन थी उसका कोई उपयोग नहीं करता था मौसम में आम जामुन कटहल बेल महुआ आदि के फल होते थे लोग फल खाकर बीज यहाँ - वहाँ या घूरे पर फेंक देते। कृष्णा उन बीजों को इकट्ठा करती और तालाब के पास वाली जमीन पर जाकर लगाती ।उनमें तालाब से घड़ा भर कर पानी से सींचती ।
बरगद पीपल  पाकड जो अपने आप ही कहीं भी उग आते हैं उनको भी ले जाती पशुओं से बचाती । पहले तो सब हंसते थे पर अब  उनको बीज वगैरह भी किसी को मिलते तो देख कर आते। तालाब के किनारे और आसपास पेड ही पेड़ ।हरे भरे पेड़ झूमते रहते थे समय के साथ वह बड़े हुए ।
फलने फूलने पर लगे निर्जन जगह अब गुंजायमान हो रही थी बच्चे खेलने और फल खाने के लिए जाने लगे बड़े-बड़े विश्राम करने के लिए।
बात चलती है तो हंस कर कहते हैं अरे हमारे गांव की हरियाली अम्मा है ना सब उनकी बदौलत है कृष्णा बाई से  इस तरह की अम्मा बन गई पता ही नहीं चला ।सरकार मुहिम छेड़ रही  थी ।बहुगुणा जी का चिपको आंदोलन अखबारों की सुर्खियां बन रहा था। लोग जागरूक हो रहे थे जंगल नहीं रहा तो हम कैसे  ??
यह बात  सब अभी समझ रहे थे हरियाली मां को सभा पंचायतों में बुलाया जाने लगा उनके कार्य की प्रशंसा गांव से निकलकर आस-पास के गांव तक पहुंची थी उनके गांव का दौरा पर्यावरण मंत्री करने वाले थे स्वागत की तैयारी चल रही थी ।उन्हें सम्मानित करने वाले थे।
वह अपनी झोपड़ी में बैठी हुई थी सोच रही थी जिस पेड  के माध्यम से उन्हें ताना मारा गया था आज वही पेड़ ने उन्हें इस मुकाम पर लाकर  खड़ा कर दिया है संतान न सही  ।पेड़ो को ही अपनी संतान समझकर  उन्हे रोपने वाली सींचने वाली कृष्णा की वे पहचान बन गए ।बच्चे के नाम से उसकी अम्मा भले ना कहलवाई पर पेड़ जैसी संतान ने उन्हें हरियाली अम्मा बना दिया वह किसी एक या दो कि नहीं सैकड़ों की अम्मा बन गई ।उनके संतान धोखा भी नहीं देने वाली बल्कि सबको निस्वार्थ कुछ ना कुछ देगी ही वह भले ही संसार में ना रहे उनके बेटे बाद भी रहेंगे ।
अचानक बाहर शोर-गुल सुनाई पड़ा ।
हरियाली अम्मा हरियाली अम्मा की गुहार लोक लगा रहे थे
         झोपड़ी से बाहर आई तो गांव के लोगों का हुजूम खड़ा था मंत्री हाथ में माला लेकर खड़े थे प्रधान जी उनका परिचय करा रहे थेमंत्रीजी ने फूलों की माला उनके गले में डाली और चरण स्पर्श को झुक गए।
कह रहे थे कि जनता और समाज की सेवा करना हमारा कर्तव्य है पर आपने जो निस्वार्थ सेवा की है और पेड़ों के साथ-साथ एक गांव के लोगों को जो नया जीवन दिया है उसे तो यह लोग कभी नहीं भूलेंगे कभी नहीं भूलेंगे। हरियाली अम्मा जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लग रहे थे।
     उनकी दृष्टि भीड़ में सबसे आगे खडे कैलाश और छोटी पर गई ।
हाथ जोड़कर खड़े थे मानो कह रहे थे 
कि संतान न हो इसका मतलब औरत का जीवन बेकार है उसमें मानवता नहीं है ममता नहीं है।
यह सोचना संपूर्ण नारी जाति का अपमान है हमें माफ कर दो।उन्होंने देखा मुस्कुरा दिया 
मानो कह रही थी आभारी हूं जो मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है 
त्री जी शाल  ओढा रहे थे  और वह अपने कांपते हाथों से संभाल रही थी । तालियां बज रही थी  रुकने का नाम ही नहीं ले रही  थी 
हरियाली अम्मा 
हरियाली अम्मा की गूंज
जिंदाबाद जिंदाबाद 

             लेखिका  -- आशा सिंह 





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