Wednesday 11 May 2022

डर तो लगता है

डर लगता है
आने वाले कल का 
भविष्य का भविष्य के गर्भ में पता नहीं क्या छिपा है
सोचा हुआ होता नहीं
मनुष्य सोचता क्या है
होता क्या है
आशा और निराशा 
इसी के भंवर में चक्कर लगाते रहते हैं 
जब होना वही है जो भाग्य में है
तब हम क्यों सोचते हैं 
कुछ भी अपने आप तो नहीं होता न
हम ऊपरवाले के हाथ की कठपुतली है जरूर
लेकिन हाथ - पैर तो हमें ही मारना है
बैठ रहने से हम तो पूरी तरह बैठ ही जाएंगे 

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