Thursday 5 May 2022

हम मानव हैं

माना कि शहर बहुत  उदास  है
हवा भी कुछ  धीमी सी
फिर भी मन में  विश्वास  है 
प्रकाश  ने डेरा तो  डाला है
अंधकार को दूर भगाता है
संसार है
जीवन है
तब उसके साथ सुख  - दुख भी है
गम  और मुस्कान  भी है
यह मानव  है
रो कर बैठ रहना 
यह न उसका धर्म  है न कर्म  हैं 
सदियों  से उसने न जाने कितने  आपदाओं  का सामना  किया  है
गिरा है
संभला है
उठ भी खडा  हुआ है
जीवन जीया है जीता भी है
मृत्यु  और बीमारी 
आपदा  और विपदा
भूकंप  और बाढ
विनाश और निर्माण  के मुहाने  पर खडा 
आशा और निराशा  के  भंवर में  डूबता - उतराता 
अपना कर्तव्य  करता जाता
आज और पल का ठिकाना  नहीं 
भविष्य  का निर्माण  करता जाता
अदम्य जीजिविषा  के साथ 
तभी तो यह सब जीवों  में  ताकतवर 
ग्रहों  और नक्षत्रों  की गणना  करता 
उन पर पहुंचने की कोशिश  करता
यह मानव  है  जिसने हार नहीं  मानी 
जीवन को मुठ्ठी  में  लेकर चलता है
विस्तार  आसमान  तक करता  है 
अभिमान  है  कि 
हम  मानव है
हारना हमारी फितरत  नहीं  ।

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