Thursday 28 September 2023

कल - आज - कल

हम पुराने ख्यालों के लोग है
साथ में नए विचार का समर्थन करने वाले लोग है
हम उस पीढी के लोग है
जिसने दुनिया बदलती देखी है
ब्लेक - व्हाईट से कलर तक का सफर देखा है
वह फिल्म हो या टेलीविजन 
हमने पत्र से लेकर मोबाइल तक का सफर तय किया है
हमने डाक से लेकर कुरियर तक का इस्तेमाल किया है
हमने चंदा मामा की कहानी से लेकर चांद तक पहुंचते हुए देखा है
हमने लडाई भी देखी है ब्लेक आउट भी देखा है
हमने  इमरजेन्सी भी देखी है प्रेस की आजादी भी देखी है 
हमने पैदल - बस - ट्रेन- मोनो - मेट्रो और हवाई जहाज से सफर किया है
हमने रेडियो पर जयमाला और टेलीविजन पर चित्रहार देखा है
हमने अमीन सयानी और तब्बसुम की आवाज को सुना और देखा है
हमने पांच पैसे बस के  टिकट और दस पैसे का बडा - पाव खाया है
हमने बेलबाॅटम से लेकर पलाजों भी धारण किया है
हमने साधना कट से लेकर चोटी को भी देखा है 
हमने सरकारी स्कूल से लेकर मुंबई यूनिवर्सिटी का नजारा देखा है
हमने परंपराएं भी देखी है और आधुनिकता भी
केवल देखा नहीं है जीया है 

हमने ग्लास में दुकान से दूध - दही लाया है और अब पैकेट
हमने सिनेमा घरों के बाहर लंबी लाइन लगाई है 
हमने पत्तल से लेकर बूफे तक का स्वाद चखा है
हमने जमीन पर बैठकर और टेबल पर भी बैठकर खाया है
हमने टपरी की चाय भी पी है और पांच सितारा की भी
सुराही से लेकर बिसलरी का भी उपयोग
नमक लगी रोटी से  लेकर पिज्जा- बर्गर भी 
हमने शिक्षक की छडी भी खूब खाई है और सबकी डांट और मार भी
हमने दो कपड़े में साल भर निकाला है 
किताब- काॅपी पर अखबार और कैलेन्डर का कवर चढाया है
हमने स्याही - कलम के साथ फेलपेन भी उपभोगा है 
हमने अखबार भी पढा है और अब नेट पर भी
हमने संसद में अटल जी का स्पीच और मारा-मारी तथा आज के कटु संवाद का आदान-प्रदान भी 
हमने दुश्मन का भी स्वागत किया है दोस्तों की तो बात ही छोड़ दे 
हमारे घर के दरवाजे तब भी खुले थे आज भी
प्राइवेसी नाम तो अब सुन ही रहे हैं 
टाइपराइटर से लेकर लैपटॉप को देखा है
कबड्डी से लेकर क्रिकेट भी खेला है
गली - गली भटक कर किराये की साइकिल चलाई है
हमने सडक पर त्योहार पर सडक पर बंधे पर्दे पर फिल्म देखी है
एकादशी में भोर में ही सबके साथ पैदल नहान के लिए बाणगंगा पहुँचे हैं 
हमने खेत  से लेकर टायलेट तक का अनुभव किया है
हमने छत पर सोते हुए तारों को गिना है और ए सी की ठंडी हवा भी खाई है
हमने लेक्चर भी बंक किया है झूठ भी बोला है सफाई से
हमने गुलशन नन्दा से लेकर प्रेमचंद को पढा है
हमने नवभारत टाइम्स - ब्लीट्ज से लेकर नेट पर समाचार 
हमने नाट्यगृह और सिनेमा हाॅल दोनों का आनंद लिया है
हमने बडो का सम्मान भी किया है और छोटे को संभाला और प्यार किया है
हमने विकास के परिणाम को भी  भोगा भी है और भुगत भी रहे हैं 
हम बीच की पीढी है 
दो पीढी के बीच की कडी है
हम वह सीढी है जिस पर चढकर उपर जाया जाता है
हम न गया कल है न आने वाला कल है
हम आज है 
जिसने परिवर्तन को देखा भी है जीया भी है और जी भी रहे हैं। 

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