Monday, 31 March 2025

एहसास

जो बिछड़े वो बिछड़े 
वापस कहाँ मिले 
मन में ख्वाहिश थी 
फिर कभी मिलेगे 
वह कभी न पूरी हुई 
जो बादल बरस गये 
जो बरसात बीत गई 
वह वापस कहाँ लौटी 
राह में न जाने कितने साथी मिले 
कुछ बोला - बतियाया 
फिर उनसे मुलाकात कहाँ हुई 
न जाने कितने लोगों से मिलवाती यह जिंदगी 
रिश्तें - नाते बनते 
यारी - दोस्ती होती 
सब छूट जाते हैं 
बारिश की बूंदें फिर नहीं आती 
वह बरसात याद जरूर रहती है 
वह भीगना और मस्ती भी 
ऐसे ही छूट जाते हैं 
दूर चले जाते हैं 
मिलने की आस होती है मिल नहीं पाते 
बस उनके साथ बिताए पल याद रहते हैं 
वह एहसास याद रहता है 

Friday, 28 March 2025

अब तक समझ नहीं आया

बोलने का अधिकार हर किसी को 
सब बोलते रहे बस वह सुनती रही 
जब भी बोलना चाहा किसी न किसी ने चुप करा दिया 
बचपन में माॅ ने कहा था 
लड़कियां ज्यादा बोलती नहीं है चुप रहना सीखो 
कोई बोले तो बर्दाश्त कर लो 
शादी हुई ससुराल में बात - बात पर ताने 
जवाब नहीं देना था यही सिखाया था सो सुनते रहे 
पतिदेव भी जब तब आक्रोश उतारते रहे 
न गलती हो तब भी 
तब भी चुप ही रहे रिश्ता जो निभाना था 
माता - पिता की इज्जत का सवाल जो था 
अब बच्चें बड़े हो गए 
तब भी चुप रहना है 
क्या है आपको तो कुछ समझ ही नहीं आता 
ऐसे होते - होते ऐसा स्वभाव बन गया 
गलत को भी सही कहा सही माना 
कभी अपनों ने कभी परायों ने खूब  सुनाया 
अगर प्रतिरोध करना चाहा तो प्रतिबंध लगा दिया 
कभी झगड़ालू तो कभी वाचाल साबित कर दिया 
कभी जोरदार आवाज में घुड़क कर 
कभी हाथ छोड़कर 
ऐसा भी नहीं कि कोई मेरी उपेक्षा करता है 
बहुत प्यार करते हैं सब मुझसे 
माता - पिता ने भाईयों ने पति ने बच्चों ने 
भरपूर प्यार और सम्मान दिया और देते भी हैं
मैं घर की धुरी हूँ 
मेरे बिना पत्ता भी नहीं हिलता 
बस बोलना नहीं है सुनना है 
जो सब बोले वह करना और मानना है 
किसी की बात को मन पर नहीं लगाना है 
कोई माॅ है कोई भाई है कोई पति है कोई बच्चें हैं 
सब तो अपने उनकी बात का क्या बुरा मानना 
इसे अब आजादी कहें या बंधन 
अब तक समझ नहीं आया 

Tuesday, 25 March 2025

हमारा भी अधिकार है

हमको एक खुला आसमान चाहिए 
हमें भी अपनी उड़ान चाहिए 
हम नहीं चाहते हमारे पंखों को कतरा जाए 
जिम्मेदारियों के नाम पर हमें घर पर बैठाया जाए 
हम तो जिम्मेदार हैं ही 
तभी तो घर - परिवार चलता है 
उससे कहाँ भाग कर जाएंगे 
लेकिन हमारे सपनों का क्या 
हमारी काबिलियत का क्या
उसे केवल घर की चहारदीवारी में कैद कर रखना 
यह तो सरासर अन्याय है 
अधिकार तो हमें भी है 
अपनी मर्जी से जीने का 
जीने दीजिए ना 
हम अगर खुश तो पूरा परिवार खुशहाल 

सबका साथ

मैं जब - जब लिखती हूँ 
महसूस होता है 
मुझमें सब कुछ जिंदा है 
मेरी भावनाएं मेरे विचार 
लोगों से जुड़ाव महसूस होना 
दूर रहकर भी नजदीकी का एहसास 
अनदेखे लोगों से भी अपनापन 
लोगों का मुझे जानना और पहचानना 
प्रशंसा भी आलोचना भी 
अच्छा लगता है 
जीने में जोश आ जाता है 
लेखनी का धन्यवाद 
कलम चलती रही 
विचार आते रहे 
सबके बीच बांटती रहूं
हंसती - खिलखिलाती रहूं 
सबके साथ हिल मिल कर रहूं 
बस सबका साथ चाहिए 

Thursday, 20 March 2025

मैं गौरेया

मैं आपकी वही छोटी सी गौरैया हूँ 
जो ची ची कर आपके घर को गुलजार रखे रहती हूँ 
मुझे आपसे शिकायत है 
अब आप अपने घर में मुझे रहने नहीं देते 
मिट्टी का घर छोड़कर ईंट - गारे का घर बना लिया 
गगनचुंबी ईमारतें खड़ी कर दी 
मेरा ख्याल नहीं किया 
पेड़ को भी तो काट डाला 
वह भी तो नहीं बचा 
बस आप अपना सोच रहें 
हम भी आपका परिवार हैं 
हमारे बारें में भी सोचा होता 
अपने घर में एक कोना हमारे लिए भी रखा होता 
पर आपने ऐसा नहीं किया 
पहले मैं आपको जगाती थी 
अब अलार्म घड़ी जगाती है 
आप अपने लोगों से दूर 
मशीन के नजदीक हो गए हैं
मन भी वैसा ही हो गया है 
पहले मेरा भी ख्याल रखा जाता था 
दाना - पानी रखा जाता था 
अब तो आप अपनी ही सोच रहें 
मेरा घर भी उजाड़ कर फेंक दे रहे हैं 
इसलिए मैं भी अब आपसे दूर- दूर जा रही हूँ 
जीना तो मुझे भी है 
अगर आपको मुझसे सच में प्रेम है 
तब मेरे लिए भी कुछ कीजिए 
मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ 

आजकल के रिश्तें

रिश्ता अब पहले जैसा नहीं
न उनमें वह मिठास 
आज अपनों में प्रेम नहीं दिखता 
दूरी बन रही है 
बेगानों से नजदीकी हो रही है 
वह प्रेम कहाँ गया ??
क्या दिल , दिल नहीं रहा 
आदमी मशीन रह गया है 
पशु तो नहीं कह सकते 
प्रेम तो उनमें भी होता है 
वह भी झुंड में रहते हैं 
अब दिल तो है पर उसमें दिमाग बस गया है 
वह लाभ- हानि देख रहा है 
इनसे जुड़ने में कुछ लाभ है या नहीं 
बड़ों - छोटों का आत्मीय संबंध विलुप्त 
हैसियत के अनुसार आंका जा रहा है 
छोटी - छोटी बातों को बड़ा बनाकर पेश करना 
कुछ न कुछ कारण या बहाना बना दूरी 
खुशी में न खुशी न दुख में दुखी 
अपने ही होकर मजाक बनाना 
ये तो अपने ही हैं क्या कर लेंगे 
इतना भी मत करो कि फिर नजदीक न आ सको 
अपनों को पहचानो 
उनके दिल में झांको 
दिल में जो प्यार का झरना सुसुप्त है 
उसमें रस भरो 

Wednesday, 19 March 2025

मैं समुंदर हूँ

गहरा हूँ सब कुछ समाता हूँ अपने में
फिर भी शांत रहता हूँ
परीक्षा मत लो मेरी
अगर अपने पर आ जाऊं 
तब तो किसी की खैर नहीं 
मैं तो अपनी सीमा में रहता हूँ
विशालता ही मेरी पहचान
न जाने क्या क्या समेटे हुए अपने में
मैंने न जाने कितने युग देखे हैं
इतिहास गवाह है
मैं कभी अवांछित को अपने में समाता नहीं
बाहर किनारे पर फेंक देता हूँ
जब तक सहता हूँ तब तक ठीक
अन्यथा सुनामी आने में देर नहीं ।
मेरी क्षमता का आकलन करना मुश्किल
मेरी गहराई नापना असंभव
मैं अपने में अमृत और विष दोनों समाएं हुए 
सागर हूँ साग नहीं 
कि मुझसे कैसा भी व्यवहार हो 
मुझे बंधन में बांधा जाए
मेरी सीमा जानने से पहले अपनी सीमा जाननी होगी 
तभी सभी का कल्याण ।

ऐ जिंदगी मेहरबानी कर

ऐ जिंदगी बड़ी शिद्दत से जीया है मैंने 
कभी निराश नहीं किया तुझे
हर कठिनाई और बाधा को पार किया 
तुझे बड़ा प्यार किया
केवल मेरा ही हक नहीं तुझ पर
मेरे अपनों का मेरे बच्चों का मेरी माॅ का 
इसलिए तो कस कर पकड़ी रही 
संभाला , सजाया और संवारा
कुछ दौर ऐसे भी आए 
जहाँ दुखी हुई , उदास हुई 
धैर्य जवाब दिया 
फिर हिम्मत की 
उठ खड़ी हुई 
तुझसे तब भी प्यार था 
अब भी है और रहेगा 
बस तू बेवफा मत होना 
मेरा साथ निभाना 
आज तक मैं पकड़कर रही तुझे 
अब पकड़ कुछ-कुछ ढीली हो रही है 
अब तू पकड़कर रख मुझे 
जीना है अभी बहुत 
सोने की सीढ़ी पर चढ़कर जाना है 
वक्त है अभी तो 
जी लेने दे 
इतनी मेहरबानी तो जरूर कर 

Tuesday, 18 March 2025

ऐसे भी अनोखे पीस उपलब्ध

बात पुरानी है 
हमारी नयी - नयी शादी हुई थी । 
मैंने उनको कहा कि आज गार्डन चलेंगे 
कैसे ही तैयार हुए जाने पर कहते हैं इसमें क्या देखना 
हमारे तो गांव में पेड़ ही पेड़ और हरियाली है 

दूसरा वाकया फिल्म देखने का 
क्या बेकार में देखना घर में टेलीविजन पर देखो 
बेकार का पैसे खर्च करना 

तीसरा वाकया समुंदर किनारे बैठ कर बातें करेंगे 
लहरों को निहारेगे 
घर में बात करने का समय नहीं मिलता है क्या

आज होटल से खाना मंगाए या जाएं खाने
क्या जरूरत है 
तेल - मिर्च- मसाला भरा रहता है और ऊपर से वेटर सर पर सवार 

मॉल में चले 
अरे कितनी भीड़ रहती है और सेल्स गर्ल आगे - पीछे घूमती है तो परेशनी होती है 

मेला लगा है 
क्या जाना वहाँ 
धक्का - मुक्की होती है 

ऐसे न जाने कितने वाकये 
अभी होली आई तो याद आ गया 
एक दिन पहले से ही घर में ऐसे कि कोई जबरन रंग देगा 
बिल्डिंग कंपाउंड में आर्केस्ट्रा था तो गए साथ में 
कान फटने लगा गाना सुन 

इस आदमी की दौड़ घर से सब्जी मार्केट तक 
बला का नीरस 
बस काम से काम 
साथ वाले की मनस्थिति का अंदाजा लग ही गया होगा  

उड़ान आसमान की

हर पक्षी उड़ सकता है 
पंख मिले हैं उड़ने के लिए 
सबकी उड़ान भी भिन्न-भिन्न 
कोई सतही तो कोई गगन की 
उड़ान भर आकाश तक पहुँच गए 
संभलना भी बहुत जरुरी है 
वह सबके बस की बात नहीं 
ऐसा न हो बीच में ही थक जाए 
धड़ाम से जमीन पर आ गिरे 
हर पक्षी बाज तो नहीं हो सकता 
उसको अपनी मर्यादा पता रहना चाहिए 
कौआ - कबूतर- गौरैया - तोता- मोर
सबकी चाल अपनी अपनी 
राह भी अपनी अपनी 
किसी की घर की दलान और खिड़की 
किसी की कुछ उंचाई तक खड़े पेड़ तक 
वह बाज ही है 
जो धरती से आसमान तक की उंचाई मानता है 
उतुंग उड़ान भरते है 
धरती पर भी बराबर नजर
शिकार देखा कि झपट्टा मारा
बिजली सी फुर्ती 
उड़ान भी भरना है सोच विचार कर
कितना आसमान हमारी मुठ्ठी में समाहित हो सकता है 
यह भी याद रखना है 

Sunday, 16 March 2025

अपना एटीट्यूड

हम शांति से रहना चाहते थे 
हर विवाद से दूर रहना था 
कभी किसी से न उलझा 
कभी-कभार गलत को भी सही मान लिया
जवाब नहीं दिया उल्टा 
कभी द्वेष और जलन नहीं रखा 
हमेशा सबसे बनाए रखने की कोशिश की 
कोई बुरा न माने इसका ख्याल रखा 
न कभी किसी को अपना ज्ञान बघारा 
न किसी को नीचा दिखाया 
न किसी को कमतर समझा 
सबसे स्नेहपूर्ण व्यवहार किया 
फलस्वरूप लोगों ने हमें यू ही देखना शुरु किया 
हम पर ही शेखी बघारने लगे 
हमें ही सिखाने लगे 
अब करें तो क्या करें 
लगता है ज्यादा साधारण बन नहीं रहना 
अपना भी एटीट्यूड दिखाना चाहिए 

हम बच्चों का वादा

स्वच्छता ही सेवा है 
गंदगी जानलेवा है 
स्वच्छ और स्वस्थ भारत होगा 
विकास की नयी उड़ान भरेगा 
बापू के सपनों को साकार करना है
हर देशवासी को प्रण लेना है 
न कूड़ा - करकट फैलाएंगे 
न मोबाइल और टेलीविजन देखेंगे 
जी भर कर खेलेंगे और व्यायाम करेंगे 
तन - मन से प्रयत्न करेंगे 
ईमानदारी के पथ पर चलेगे 
अपने प्यारे भारत को महान बनाएंगे
यह हम बच्चों का वादा है 

Saturday, 15 March 2025

दहेज का बदलता स्वरुप

दहेज किसी भी तरह का हो 
वह खुशी से कोई नहीं देता 
दहेज की बलिवेदी पर न जाने कितनी चढ़ गयी 
समय बदला 
कानून की दखलअदाजी हुई 
अब स्वरूप बदल रहा था 
कभी - कभी निर्दोष भी दंड भुगत रहे हैं 
बहू की मौत के बाद लड़के का पूरा खानदान जेल में 
कारण कुछ भी हो दहेज को ही बताया गया 
अब फिर बदलाव 
अब लड़के आत्महत्या कर रहे हैं 
पत्नी से धमकी मिल रही है 
बड़ी भारी रकम मांगी जा रही है 
यह भी गलत वह भी गलत 
लालच का अंत नहीं 
समाज का रवैया वैसे का वैसा 
बोली लड़कों की अब भी लग रही है 
लड़कियों का नजरिया बदल गया है 
वह दुरुपयोग कर रही है 
शादी के बाद भाग जा रही है 
दूसरा अफेयर है पर पैसे के लिए शादी कर रही है 
कुछ दिनों बाद तलाक की अर्जी और संपत्ति का दावा 
यह भी एक तरह से पीड़ित करना 
लालच जब तक समाप्त नहीं होगा 
तब तक यह सब चलता रहेगा 
निर्दोष दंड भुगतते रहेंगे 
अब कानून का ही सहारा 
वो ध्यान रखें कि किसी निर्दोष को दंड न भुगतना पड़े 

Friday, 14 March 2025

औरत को पागल कहा गया

औरत को पागल कहा गया 
उसे बेवकूफ बनाया गया 
उसे इंसान समझा ही नहीं गया
दोयम दर्जा दिया गया
दासी की तरह व्यवहार किया गया
उसको कोई अधिकार नहीं दिया 
उसको न मान न सम्मान मिला 
स्वाभिमान को ताक पर रखा 
फिर भी उसने घर को घर बनाया
पागलखाना नहीं 
पति को भी परमेश्वर माना 
घर पर उसका अधिकार भले न पर उसे मन से संवारा और सजाया 
आने वाली पीढ़ी को तैयार किया 
सबका ध्यान रखा भले ही उसे किसी ने तवज्जों न दी हो
मनुष्य समझता रहा उससे समझदार कोई नहीं 
वही सर्वेसर्वा है 
वह भूल गया कि वह जिसे दासी समझ रहा है असल में वह देवी है 
लक्ष्मी,  सरस्वती और दुर्गा है 
वही तो घरनी है जिससे घर , घर है 
वह न रहें तब आपका सब रौब धरा का धरा रह जाएगा 
उसको धर कर रखें आपका जीवन स्वर्ग बन जाएगा 

आओ खेलो होली

आओ खेले होली 
रंगबिरंगी होली 
मस्ती भरी होली 
प्रेम भरी होली 
सब साथ मिलकर खेले 
हर दुश्मनी भूलाकर खेले 
हर भेदभाव मिटाकर खेले 
ईर्ष्या- द्वेष का दहन कर
हर रंग में सराबोर होकर 
नाच - गाकर और झूम कर खेले 
पकवान का आनंद लेकर खेले 
न रहे किसी से दूरी 
हिल - मिलकर खेले 
अपने क्या बेगाने क्या भूलाकर खेले 
कुछ उनको रंग लगाए 
कुछ उनसे लगवाए 
ऐसा रंग जो फीका न पड़े 
अगली होली तक याद रहे  
इंतजार रहे 
यह होली भी लाजवाब है 
वह होली भी लाजवाब होगी 
इसी आशा और विश्वास के साथ खेले 
आओ खेले होली 

Happy Holi Nari

तुम , तुम हो 
अपने ही रंग में रहना 
किसी के रंग में रंगने की जरूरत नहीं 
अपना अस्तित्व बरकरार रखना है 
तुम ऐसा रंग उड़ाओ कि सारी दुनिया देखे 
सब तुम्हारें रंग में रंगे 
गुलाल की रंगत धरती से आसमान तक 
अपने सभी रंगो से 
लाल , पीला , गुलाबी , नीला 
सब रंगों से गुलजार करो 
कोई तुम्हारें साथ खेल न पाए 
यह भी ध्यान रखना 
तुम में तो सामर्थ्य है 
प्यार- ममता के रंग से तो हमेशा रंगी हो 
वीरता में भी किसी से कम नहीं 
करुणा का स्रोत हो 
तुम,  तुम से परिचय करो 
तुममें तो सारे रंग समाहित 
अपनी दुनिया को अपने रंग से भरो 
जो अच्छा लगता है 
चित्र कार तुम्हीं हो 
तुलिका तुम्हारें हाथ में
यह बस जान - पहचान लो 
तुम,  तुम हो 
अपने ही रंग में रहना 

अपना नसीब

क्या नसीब पाया है 
भर - भर के प्यार पाया है 
खुशियां हजार पाई है 
हर पल यादगार है 
हर लम्हा शानदार है 
मन में हर वक्त झूमती बहार है 
पतझर की बात ही नहीं वसंत ही वसंत है 
यह भी होता है 
जब कोई प्यार करने वाला मिलता है 
जिंदगी संवार देता है 
आंखों में चमक आ जाता है 
चेहरे पर नूर छा जाता है 
चेहरे पर मुस्कान छाया रहता है 
जब कोई झुकाने वाला नहीं झुकने वाला होता है 
प्रेम में पूर्ण समर्पित होता है 
तो धरती पर ही स्वर्ग उतार देता है 

Thursday, 13 March 2025

जीवन का आनंद

मैंने सुना है 
हर दिल में प्रेम की रसधार बहती है 
फिर तुम इतने शुष्क क्यों
हर बात में नाप - तौल
सोचकर बोलना और करना 
जी भर हंसना भी नहीं 
गंभीरता का आवरण ओढ़कर रखना 
न कोई रुची न शौक 
भीड़ से घबराहट 
बस अपने आप में रहना 
समय के पाबंद और अनुशासन प्रिय
एक मशीन की तरह जीवन 
काम और काम 
उसके अलावा कुछ नहीं
न किसी से नजदीकी न बनाने देना 
शब्दों में भी कंजूसी 
कैसे रहते हो तुम ऐसे 
जी नहीं उबता 
जरा नजर दूसरों पर भी डालो 
अपने आस-पास के लोगों को पहचानो 
मेल जोल बढ़ाओ 
अपनों को प्यार से गले लगाओ 
हर बात में क्या गिला - शिकवा 
स्वाभिमान को मारो गोली 
जरा इंसान बनो खूंखार शेर नहीं हो 
क्या हासिल हो जाएगा दूसरों को डराकर
उनसे दूरी बनाकर
एक दिन बंजर हो जाओगे 
तुम्हारे पास एक भी पौधा न पनपेगा 
बंजर होने से पहले ही लहलहा लो 
प्रेम से भर जाओ 
कुछ अपनी कहो कुछ दूसरों की सुनो 
फिर देखो जीवन का आनंद 

बचपन की होली

कभी हम भी खेलते थे होली 
उस बात को जमाना हो गया 
याद अभी भी ताजा है 
वह बचपन था 
रंगों से सराबोर था 
रंग ही रंग थे जीवन में 
हर गम से अंजान 
जान बूझकर रंग लगवाते थे 
शीशे के सामने खड़े हो घंटों निहारते थे
अलग अलग तरह के मुंह बनाते थे 
अपने आप पर ही हंसते थे 
रंग बिरंगी चेहरा लेकर घूमते थे 
न भूख लगती थी न प्यास
बाद में रगड़ रगड़ कर रंग छुड़ाते थे 
शाम को सबके घर झुंड में जाते थे 
मालपुआ और गुझिया खाते थे 
ऐसी बात नहीं कि हमने बाद में होली खेली नहीं
बचपन वाली बात फिर कभी रही नहीं 

Wednesday, 12 March 2025

वह जमाना याद है

रिश्तों की भी यात्रा होती है 
वह चलायमान है 
परिस्थिति अनुसार बदलाव आता रहता है 
पेड़ के पत्तें  जैसे 
शुरू शुरू में कोमल कोमल नर्म नर्म 
हल्का हरा गाढ़े में बदल जाते हैं 
पत्तियां कठोर हो जाती है 
धीरे - धीरे पीलापन छाने लगता है 
एक दिन वह भी आता है 
जब सूख कर और मुरझा कर गिर जाते हैं 
समय का थपेड़ा है यह
जो घनिष्ठता और अपनापन होता है 
वह समय के अनुसार बदल जाता है 
जीवन में नये लोगों का आगमन होता है 
पुराने दरकिनार किए जाने लगते हैं 
हमें बुरा लगता है 
हमारी अहमियत कम लगती है 
वह स्नेह और प्रेम अब नहीं झलकता 
उसे स्वीकार करो 
पीले पत्तों जैसे 
हमेशा हरा हरा नहीं रहेगा 
अपने दिल की किताब में उन कोमल पत्तों को छुपा कर रखो 
याद कर लो उन पलों को भी 
जब वह साथ- साथ थे 
लम्हों को क्यों भुलाया जाए 
वह अच्छा वक्त जो साथ गुजरा था 
कोई गिलां शिकवां नहीं 
वह भी स्वीकार था यह भी स्वीकार है 
यह तो प्रकृति का नियम है 
परिवर्तन अवश्यंभावी है 
न वो , वो रहें न हम, हम रहें 
बस वह जमाना याद है 
यात्रा में जो - जो साथ चलें 
सबका शुक्रिया  

चलना मत छोड़ना

हमारे कदमों के नीचे गलीचा नहीं बिछा था 
हमें जमीन पर चलने की आदत थी 
पैर जमीन पर रखने से मैले हो जाने का डर नही था 
राहें भी समतल नहीं थी 
उबड़ खाबड़ और कंकड़ पत्थर बिछे थे 
हमको उसकी भी आदत नहीं थी 
फिर भी हम चले , चलते रहे
कंकरीली  - पथरीली पर
उसे आसान बनाया 
ऐसा नहीं कि पत्थर चुभे नहीं
पैर में छाले नहीं पड़े 
आँख से ऑसू नहीं छलके 
दर्द नहीं हुआ 
सबको झेला पर रुके नहीं 
बस चले और चलते रहे 
उस मुकाम पर भी पहुंचे 
जहाँ तक पहुंचना था 
आज वह याद आते हैं 
बस ओठों पर एक मुस्कान आती है 
राह तो आसान नहीं होती 
बनाना पड़ता है 
फूल नहीं बिछे मिलते सभी को 
कांटों से भी सामना होता है 
बस चलना मत छोड़ना 

ऐसे लोग

कुछ लोग भी ऐसे होते हैं 
न प्यार के काबिल न नफरत के 
उनकी फितरत ही ऐसी होती है
उनके बारे में धारणा नहीं बनाई जा सकती 
ऐसे लोग का विश्वास नहीं कर सकते 
कब क्या करें कौन जाने 
वैसे तो सबसे अच्छे
वास्तविकता का पता नहीं 

अच्छाई-- बुराई

हर जगह नफरत है 
धोखा और फरेब है 
क्या यही सच है 
अगर ऐसा होता 
तब लोग जीते कैसे 
रहते कैसे 
सच तो यह है 
अच्छे लोग भी है 
तभी तो दुनिया चल रही है 
अच्छाई कभी मरती नहीं 
बुराई कभी जीती नहीं 
एक न एक दिन अंत होता ही है 
हिसाब होता है 
अच्छाई का दामन पकड़े रहें 
बुराई को छोड़ दें 
तभी सबकी भलाई 

Tuesday, 11 March 2025

पल में खेला

मन में अजीब सा लग रहा है 
कुछ ऐसा देखा कुछ ऐसा सुना 
समझ नहीं आता 
मानव जीवन कैसा है 
क्या है वह 
उसका अस्तित्व 
उसके हाथ में क्या 
शायद कुछ नहीं 
तिनका - तिनका जोड़ा 
बड़े अरमानों से घर बनाया 
कब लहरें आया सब बहा ले जाए 
कब भूकंप आए सब तहस नहस कर डाले 
गलती उसकी कुछ भी नहीं होती 
दंड फिर भी भुगतता है 
उसका जीवन उसके हाथ में है ही नहीं 
भाग्य भी होता है क्या
कर्म और भाग्य के चक्कर में 
वह चक्कर लगाता ही रहता है 
अपने ही बुने जाले में फंसता रहता है 
किस बात पर खुशी 
किर बात पर दुखी 
उसे समझ नहीं आता 
वह करें क्या 
हिमालय की कंदराओं में चला जाए 
गृहस्थी को चलाने में लगा रहें
बहुत पैसा हो जाए 
बहुत नाम हो जाए 
फिर क्या ??
पल में खेल हो जाए तो ??

फूल तुम्हें भेजा है खत में

वह भी एक दौर देखा है हमने 
जब समय धीरे धीरे चलता था 
हम इंतजार करते रहते थे 
उसके गुजरने का 
वह रहता आहिस्ता आहिस्ता 
वह जमाना था खतों और चिठ्ठियों का 
वही तो एक माध्यम था 
इकरार इजहार का 
कुशल - क्षेम जानने का 
डाकिए की राह देखते थे लोग-बाग 
कब किसकी चिठ्ठी आ जाए 
कब अपनों की खबर मिल जाए 
था तो एक कागज का टुकड़ा  
वहीं तो दिल के तारों को जोड़े रखता था 
विश्वास दिलाता था 
सुदूर प्रांत में गये हुए अपने प्रिय की 
अब भी हम तुम्हारें हैं
यह खत इस बात का प्रमाण है
हम रोज तुम्हें याद करते हैं 
प्रियतमा उसे छिप छिपकर न जाने कितनी बार पढ़ती थी 
कभी हंसती कभी रोती कभी सीने से लगाती 
वह आधार होता था उसका 
जो दिलासा दिलाता था
एक सुखद एहसास था 
करीब लाता था और रखता था 
जिंदगियां गुजार दी जाती थी खत के सहारे 
फिर फोन आया दूरी थोड़ा कम हुई 
तब भी खत का सिलसिला जारी रहा
अब आया है मोबाइल 
दूरी रही ही नहीं 
जब चाहो बात कर लो 
लेकिन वह नजदीकी भी न रही 
अब उनके बारें में क्या सोचना 
कहाँ फुरसत है 
तब समय निकाला जाता था 
शब्द उकेरे जाते थे 
भावना छापी जाती थी 
अब तो कहने को फुरसत ही फुरसत 
याद करने की फुरसत नहीं 
समय की रफ्तार तेज हुई है 
मन भी तो भाग रहा है 
टिकना नहीं चाह रहा 
चिठ्ठी में भी विश्वास था 
एक प्यारा सा एहसास था 
वह अब और आज कहाँ 
वह तो वही जानता है 
जो उस दौर से गुजरा हो 
यह भी एक दौर है वह भी एक दौर था 
आहिस्ता ही सही बड़ा प्यारा था 

अब तो बोलो

कब बोलेंगे 
कभी तो बोलो 
मुंह भी तो खोलो 
हमेशा चुप रहना ठीक नहीं 
लोग समझ ही नहीं पाते 
दिल में क्या है कुछ तो बताओ 
कुछ इकरार करो कुछ इजहार करो 
मन में लिए ही लिए ही कब चल दोगे 
कौन जाने कब बुलावा आ जाए 
मन की बात मन में ही रह जाएंगी 
अब क्या डरना 
अब क्या सोचना 
कुछ दिन के मेहमान हैं सब 


Monday, 10 March 2025

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ
मैं वह राधा हूँ जो जिसने कन्हैया को द्वारिकाधीश बनाया
मैं वह सीता हूँ जिसने राम को आदर्श राजा बनाया
मैं वह उर्मिला हूँ जिसने लक्ष्मण को महान व्रती तपस्वी बनाया
मैं वह यशोधरा हूँ जिसने सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बनाया
मैं वह कुंती हूँ जिसने राजा पांडु को पांच पांडवों का पिता बनाया
मैं वह द्रोपदी हूँ  जिसने पांचों पांडवों को एकसूत्र में बांध कर रखा
इनकी महानता के पीछे त्याग मेरा था
मैं टूटी
मैं बंटी
मैं परित्यक्ता बनी
मैं विरहणी बनी
मैं सिसकती रही
मैं ऑसू पीती गई
मैं समझौता करती गई
मैं त्याग की प्रतिमूर्ति बनती रही
मैं स्वयं बिखरती रही
दूसरों को संभालती रही
दर्द सहा मैंने तब ये महान बने
मर्यादा कभी नहीं लांघी तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम बने
प्यार को भी बांटा
पार्थ ने स्वयंवर में वरण किया
पत्नी बनी पांचों भाईयों की
जुआ खेले धर्मराज
दांव पर लगाया मुझे
आदर्श भाई बने लक्ष्मण
विरहणी बनी मैं
शांति का संदेश दिया बुद्ध ने
अशांत रही मैं
मथुरानरेश बने कृष्ण
प्रेम में पागल बन भटकती रही मैं
मेरा अस्तित्व 
मेरी भावना तार तार होती रही
मैं जोड़ती रही
संवारती रही
वह इसलिए कि मैं नारी थी
इनकी शक्ति थी
त्याग करना सबके बस की बात नहीं
वह तो स्त्री ही कर सकती है
धरती है 
धीरज है
सबकी धुरी है
वह डगमगाई तो प्रलय निश्चित
वह नारी है

मैं रानी नहीं न महारानी

मैं रानी नहीं न महारानी 
मैं तो एक सामान्य सी नारी हूँ 
जिसके सीने में एक मासूम दिल धड़कता है
वह बहुत कोमल है जो जरा सी चोट से टूट जाता है
मैं तलवार नहीं उठा सकती न युद्ध में भाग ले सकती हूँ 
मैं तो अपने अंदर को द्वंद्व से हर रोज लड़ती हूँ 
मुझे राजनीति से कुछ लेना - देना नहीं 
मैं तो अपने आप को उससे दूर रखना चाहती हूं
मुझे नहीं चाहिए सारा संसार 
मुझे तो चाहिए बस एक प्यारा सा परिवार 
मुझे दुनिया से क्या 
मेरी दुनिया तो मेरा घर है 
मुझे नाम और प्रसिद्धी की गरज नहीं 
मैं तो किसी की बेटी ,बहन ,पत्नी और माॅ बनकर ही खुश हूँ 
मेरे बच्चें हैं और बच्चों के बच्चें 
जिनकी होठों की हंसी मुझे सबसे प्यारी है 
मुझे स्वर्ग का सुख नहीं भाता 
मैं तो अपने जीवन साथी के साथ खुश रहना चाहती हूँ 
मुझे रिश्तें बनाने में कोई इंटरेस्ट नहीं
जो ऊपर वाले ने बनाकर भेजा है 
वही कायम रहे
मुझे भीड़ का साथ नहीं चाहिए 
अपनों का साथ ही काफी है 
मुझे तड़क-भड़क और दिखावा पसंद नहीं 
मैं तो सीधा - सादा रहना जानती हूँ 
मुझे किसी से कोई प्रतियोगिता और तुलना नहीं
न किसी से ईर्ष्या और जलन 
जो पास है उसमें ही संतुष्ट हूँ 
मुझे भ्रमण का कोई शौक नहीं
अपने परिजनों के बीच भ्रमण हो बस 
मुझे कोई बड़ा विस्तार नहीं चाहिए 
बस अपने हद में रहूं
प्रेम से दो बोल बोलूं
पेट भर भोजन रहने को छत 
अपनों का आसपास 
जब यह हो सब पास 
नहीं है तब कोई और आस 
मैं रानी नहीं न महारानी 
मैं तो एक सामान्य सी नारी हूँ 

Saturday, 8 March 2025

कमजोर नहीं है नारी

उसे न कमजोर समझो न दबाकर  रखो 
उसकी ताकत को पहचानो 
उसकी अहमियत को मिटने न दो 
उसके व्यक्तित्व को निखारों 
उसे जबरन मत दबाओ 
अपनी ताकत की आजमाइश उस पर न करो 
उसे प्यार दो 
उसे सम्मान दो 
उसकी क्षमता को पहचानो 
उसे उड़ान भरने दो 
वह तो कोमलता से ओतप्रोत हैं 
उसके ह्दय में प्यार का सागर लहराता है 
वह ममता से परिपूर्ण है 
वह तुम्हारी दुनिया बदल देंगी 
बड़ी ताकत और धैर्य है उसके पास 
उसके ऑसू पर मत जाना 
वह भावुक जरूर है कमजोर नहीं 
वह सब कुछ लुटा देंगी तुम पर
वह अपने को भी मिटा देगी 
उसके बिना तो सृष्टि अधूरी 
संसार का सृजन अधूरा 
परिवार की बागडोर उसके हाथ 
उसके बिना तो हमारे ईश्वर भी अधूरे 
शिव की शक्ति और कृष्ण की राधा है वह 
रामायण की सीता और महाभारत की द्रौपदी है वह
लक्ष्मीबाई और अहिल्याबाई होल्कर है वह
सावित्रीबाई फुले और मदर टेरेसा है वह
इंदिरा गांधी और सुषमा स्वराज है वह
मैरी काॅम और लता मंगेशकर है वह
कला - संगीत और अभिनय की महारथी है वह
कमला हैरिस भी है बेनजीर भुट्टो भी है 
क्या नहीं है वह
असीमित क्षमता से भरी 
उसे मत दबाओ 
दासी मत बनाओ 
उसे सफलता का परचम फहराने दो 
फलने - फूलने और उड़ान भरने दो 
उसे गर्भ में मत मारो 
संसार में आने दो 
तहे दिल से स्वागत हो 
आधी आबादी की ताकत पहचानो 
तुम एक टुकड़ा दोगे 
वह पूरा आसमान देंगी 
हाॅ यह जरूर करो 
उसे न कमजोर समझो न दबाकर रखो 
अबला नहीं सबला है वह 

नारी का अधिकार

नारी से नर
इसी से हैं संसार 
नारी ही सृष्टि की संपादिका
पूरा भार लेकर चलने वाली
वह पृथ्वी है
वह माता है
वह संसार की संचालिका है 
परिवार की धुरी है
वह बेटी है
वह बहन है
वह पत्नी है
वह माँ है
फिर भी वह परदे के पीछे है
उसका असतित्व?
उसका स्वाभिमान ??
उसकी महत्ता ?
शायद समझ नहीं पाया समाज
तभी तो गर्भ में ही हत्या 
इतना बडा पाप
एक जीव को 
एक सृष्टि की संचालिका को
अगर ऐसा व्यवहार होता रहा
तब संसार की
तब समाज की
सारी व्यवस्था ही गडबडा जाएंगी 
 वह बहुत घातक है
सम्मान कीजिए
हर उस औरत का
जो आपके साथ जुडी है
इसकी वह अधिकारी है

Friday, 7 March 2025

एक अकेला

वह इस दुनिया से बिदा ले चुका था 
चिता पर आग लग चुकी थी 
पहले नहलाया फिर फूलों से सजाया 
चार कंधों पर राम - राम करते यात्रा निकल पड़ी 
पीछे कुछ लोग और
बस थोड़ी देर और 
सब एक-एक कर जाने लगेंगे 
आया था अकेला 
गया भी अकेला 
जिनके लिए किया 
वह भी कुछ न कर सके 
अब तीसरी , दशमा,  और तेरही करेंगे 
लोग आएंगे और खाएंगे 
कुछ चर्चा होगी 
कुछ ऑसू बहाएंगे 
कुछ सहानुभूति दिखाएंगे 
कोई बखान तो कोई बुराई 
न जीते जी छोड़ा
न मरने के बाद 
भोज की भी चर्चा 
दान की भी चर्चा 
उसके बाद सब भूल जाएंगे 
लोग- लोग करते जीवन बीता 
लोग कहाँ याद रखते हैं 
जिंदा के पीछे पड़े रहते हैं 
पता नहीं क्या मजा आता है 
ये लोग कहाँ से आते हैं 
जीवन को झंड बनाते हैं 
झंड है फिर भी इसी झुंड में रहना है 
कहने को तो अकेले 
होते बहुतेरे 

Monday, 3 March 2025

सपनों का घर

सपना था एक अदद घर बनवाने का
अपने घर में रहने का 
ऊब गये थे भटकते - भटकते 
कभी यहाँ कभी वहाँ 
कुछ रास न आता 
बड़ी अनिश्चिता थी 
करते क्या ??
मजबूरी भी थी 
पैसे भी तो चाहिए 
लग गए जोड़ने - घटाने 
हिसाब बैठाने 
बरसों लग गए 
आखिर वह समय भी आया 
एक अपना घर भी हुआ 
सपना तो पूर्ण हुआ 
अपना कोई न था उसमें 
सबके अलग-अलग घोंसले 
वह मजा अब नहीं 
जो लगता है अपने घर में नहीं था 
अब तो लगता है 
क्या अपना क्या पराया 
बिना अपनों के उन सपनों का क्या 
वह घर क्या जिसमें रहने वाला कोई न हो 
सपना भी अपनों बिना फीका 

Sunday, 2 March 2025

अब दर्द क्यों ??

मैं सहता रहा 
सब कुछ बर्दाश्त करता रहा 
कभी असहमति नहीं दिखाई 
सहज रुप से सब होता रहा
ऐसा कब तक चलता 
सबकी एक सीमा होती है 
सहने की भी तो होती है
भीतर से टूट रहा था
बिखर रहा था 
अपने को ठगा महसूस कर रहा था 
हाॅ कोई कदम नहीं उठा रहा था 
विरोध नहीं कर पा रहा था 
वह समय भी आ गया 
कभी न कभी आना ही था 
कितना टलता और कितना टालता 
आखिर टूट गया सब 
टूटना अखर रहा है 
ऑखों में चुभ रहा है 
एकाधिकार जो खत्म हो गया 
टूटेगे तो चुभेंगे भी 
अब दर्द क्यों ???

Saturday, 1 March 2025

माॅ गंगा

अब तो सब भीड़ खत्म हो गई 
माॅ गंगा ने सबको स्वीकारा
सबके पापों को अपने में समाहित किया 
अपनी संतान में कोई भेदभाव नहीं किया
जो भी उनके पास आया उसे स्नेह जल से गोद में लिया
दुलराया,  प्यार दिया , अपने ऑचल में लिया 
यह कब तक करेंगी वह 
पाप इंसान करें धोये वह 
कुछ कर्तव्य तो इंसानों का भी बनता है 
माता तो स्नेह से सींच रही है 
पहले भी अब भी हमेशा से 
किसी की मनौती तो किसी की सुहाग की प्राथना 
केवल वह भगीरथ की नहीं 
सबको तार रही है 
माता अपनी संतान का भला चाहती है हमेशा 
तब संतान भी अपना कर्तव्य पालन करें