वापस कहाँ मिले
मन में ख्वाहिश थी
फिर कभी मिलेगे
वह कभी न पूरी हुई
जो बादल बरस गये
जो बरसात बीत गई
वह वापस कहाँ लौटी
राह में न जाने कितने साथी मिले
कुछ बोला - बतियाया
फिर उनसे मुलाकात कहाँ हुई
न जाने कितने लोगों से मिलवाती यह जिंदगी
रिश्तें - नाते बनते
यारी - दोस्ती होती
सब छूट जाते हैं
बारिश की बूंदें फिर नहीं आती
वह बरसात याद जरूर रहती है
वह भीगना और मस्ती भी
ऐसे ही छूट जाते हैं
दूर चले जाते हैं
मिलने की आस होती है मिल नहीं पाते
बस उनके साथ बिताए पल याद रहते हैं
वह एहसास याद रहता है
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