Thursday, 30 June 2022

तेरे - मेरे का खेल

यह मेरी है
यह तेरी है
तेरी - मेरी का यह खेल
कब तक चलेगा
कभी तो इस खेल का अंत तो होना ही था
वह हुआ भी
परिणाम भी सबको पता ही था
आश्चर्य की बात तो नहीं 
एक बात जो सालती है
वह कहती है
ऐसा तो नहीं होना चाहिए था 

यही तो बात है

आज शहर की हवा कुछ गर्म है 
मन में सर्द की लहर है 
ऑखों में ऑसू मुख पर मुस्कान है 
न जाने क्या बात है
खुश हो या गम मनाए
यह समझ के बाहर है
कुछ तो ऐसी बात है
जो मन के विरुद्ध है
क्या करें क्या न करें 
यह निर्णय तो मुश्किल है
किस ओर जाए किस ओर नहीं 
मन तो गुमराह है
जब बात हो ऐसी
चित भी अपनी पट भी अपनी
यही तो असली बात है ।

Wednesday, 29 June 2022

यही तो राजनीति है

बंदरबाट का खेल जारी है
कभी इस डाली पर 
कभी उस डाली पर
उछलकूद में मस्त है
उस पेड पर क्या रसीले  और बडे - बडे आम
यहाँ पर रहने से क्या फायदा 
यहाँ का तो हम सब खाकर और चूस कर फेंक चुके हैं 
अब इससे मोहमाया छोडो 
उस पर चलो 
चुपचाप चलो 
नहीं तो भावना में बह जाओगे
उस तरफ नजर भी मत डालना
इस पर रहकर बहुत खा लिए
मजा कर लिए 
मोटे मोटे और तंदुरुस्त हो गए
जब आए थे तब पिद्दी से थे
अब वहां किया जाएंगा 
यहाँ पर अब छोटी छोटी चिडिया को बैठने दो
सब एक साथ कूदेगे और चढेगे 
कोई पीछे न रह पाएं 
यह ख्याल रखना
सब एकजुट रहना
तभी अपना वर्चस्व रहेंगा
किसी को भी बीच में आने मत देना 
इंसानो से कुछ सीखो
तुम तो उनके पूर्वज हो
तुम चाहो तो किसी को भी उजाड़ सकते  हो
जिस पेड़ पर बैठे हो
उस पेड़  का फल खाकर उसकी डाली तोड़  सकते हो
जरा राजनीति के दांव पेंच करों 
आगे क्या कहना क्या सुनना 
तुम तो माहिर खिलाड़ी हो 

बारिश तो सबको भायी है

बारिश तो वही है
झम झमा  झम वाली
कभी इसी बारिश में भीगने के लिए दिल मचलता था
सर पर छतरी तो दिखावा मात्र 
सर से पैर तक पूरा भीगने हुए
सहेलियों संग समुंदर किनारे 
बारिश में अठखेलियां करती लहरें 
उफान मारती और फिर लौट जाती
घंटों किनारे खडे या बैठे मंत्र मुग्ध निहारते 
वह समय था युवावस्था का
काॅलेज के दिनों का

आज भी बारिश तो वैसे ही है
हम अवश्य बदले हैं 
अब भीगने का मन नहीं करता
बारिश में कीचड़ और गंदे पानी में उतरने का मन नहीं करता
काम बढ जाएंगा
तबियत खराब हो जाएंगी 
जल भराव हो जाएंगा
इससे तो भले अपने घर में 
खिड़की पर बैठ कर चाय की चुस्कियां लेते हुए 

फर्क है न 
बचपन की मासूमियत में 
जहाँ कीचड़ में थप थप करते थे
युवावस्था में जहाँ घंटों भीगते थे
बिना बेपरवाह होकर
अधेडावस्था में जहाँ 
कार्यालय से घर पहुँचने की भागम-भाग 
ट्रेन और बस पकडने की जद्दोजहद 
अब आया वृद्धावस्था
जहाँ घर से ही बारिश का आनंद 

जीवन का पडाव 
कोई भी हो
बरसात की तो बात ही निराली है
यह हमेशा सबको भायी है
इसलिए तो यह सब पर भारी है ।

Tuesday, 28 June 2022

यह कैसी शांति ??

आज खाना खाने में मजा नहीं आ रहा है
सब कुछ बराबर मात्रा में 
फिर भी कुछ फीका फीका सा
मजा तो तब आता है
जब मिर्ची ज्यादा हो
ऑख में पानी
मुख से सी सी की आवाज 
फिर भी खाना स्वादिष्ट 
तेल - मसाले से भरपूर ही भाता
नमक भी कम नहीं 
चटकदार हो

रिश्ते भी तो वैसे ही
घर -परिवार में अनबन,  टोका-टोकी 
तभी वह मजेदार लगता है
अकेले-अकेले,  शांत- शांत 
उसमें वह मजा नहीं 

जैसे खाना बिना नमक के
वैसे ही रिश्ते भी नमकीन हो

Monday, 27 June 2022

प्रेम तो अनमोल है

बात कुछ बीस वर्ष पहले की है
मैं अपनें बेटे के साथ गांव गई थी
गाँव में शहर के जितनी सुविधा नहीं है और न वैसा खान - पान
वहाँ खरिद कर नहीं खाया जाता
जो खेत में हुआ है उसी में गुजारा करना है।
किसान खरीदता नहीं है
जिसके घर में शहर का कोई है उसी के यहाँ या फिर नौकरी करने वाला 
गर्मी के दिन थे । अभी आम बाजार में आने शुरू ही हुए थे।
एक मेरे देवर लगते थे रहते तो अलग थे पर भाईचारा तो बना ही रहता है
आखिर कभी सब एक ही संयुक्त परिवार के हिस्से हुआ करते थे।
उनकी आर्थिक परिस्थिति ठीक-ठाक ही थी कुछ खास नहीं 
एक गुमटी बाजार में डाल रखी थी
चार बच्चों का भरण-पोषण 
खेत का क्या है , अलग-अलग होने के बाद बचा ही कितना है
परिवार बढे हैं पर खेत वहीं हैं 
रात को आठ बज रहे होगे 
सायकिल खडी की और पूछा कि बाबू कहाँ हैं 
मेरे कहने पर कि वह सो गया है
कहने लगे कि 
वोके जगावा  । ओकरे खातिर आम लेकर आयल बाटी 
सायकिल से थैला उतारा 
उनके बच्चे घेर कर खडे थे
आम की फाँक बनाई और उन सब को काटकर दिया
तीन या चार आम ही थे थैला में 
मैंने कहा
वह सो गया है अभी उठ कर नहीं खाएगा 
तब दो आम दिए और कहा कि सुबह उठे तो दे देना 
कहना चाचा लाए हैं तुम्हारे लिए 
हमारे लिए वह आम इतना भी खास नहीं था
बच्चे रत्नागिरी के हापुस आम खाते ही हैं सीजन में 
पेटी आती है
आम भले खास न हो पर प्रेम खास था
वह प्यार की अपनेपन की भावना 
आज वे नहीं हैं 
पर आम जब आते हैं या जब गाँव जाती हूँ 
तब याद तो जरूर आ जाती है 
ऑख भी भर ही आती है ।
प्रेम तो अनमोल है उसका प्रतिदान नहीं होता ।

Saturday, 25 June 2022

अब क्या होगा

आज तुम आए हो
वसंत जब खत्म हो चुका है
पतझड़ आ चुका है
वह सब जिम्मेदारी तुम छोड़ गए थे
जो सिर्फ तुम्हारी थी
आज कह रहे हो
मैं भटक गया था
दिग्भ्रमित हो गया था
अब सही रास्ते पर आ गया हूँ 
मुझे माफ कर दो

याद रहें 
हर बात की माफी नहीं होती
कुछ गलती जान बूझ कर
और कुछ अंजाने में 
पर तुमने जो किया 
वह तो भगोडा ही हो सकता है

अब जरूरत नहीं है
सब कुछ बीत चुका है
न जाने कितने वसंत आए
जो पतझड़ से भी बदतर थे
अब तो पतझड़ है 
वह किसी को क्या दे सकता है
न माफी न स्वीकार 
अब तो वही लौटो 
जहाँ छोड़ गए थे ।

समस्या

एक समस्या खत्म नहीं हुई 
दूसरी शुरू
आकर डेरा डाल दिया
कभी इससे मुक्ति होंगी 
यह तो पता नहीं 
नया सर पर सवार
है तब तक शायद हम भी है 
यह तो हमेशा का हमसफर 
जीने की आशा जगाता है
कुछ अच्छा होगा 
इसी प्रयास में  रहते हैं 
जब सुलझ जाती है
तब खुशी
समस्या छोटी हो या बडी
हम सुलझाते रहते हैं 
इसी उलझन को सुलझाने में 
हम ताउम्र लगे रहते हैं 

मेहमान

वे भी मेहमान थे
हम भी मेहमान थे
एक फर्क यह था
वे बडे ओहदे वाले थे
संपत्ति शाली थे
हम कहाँ साधारण लोग

जब वे आए हमारे घर 
हमने खूब खातिरदारी की
आवभगत और खुशी से स्वागत किया
जाते समय भी तोहफे दिए
अपने को धन्य समझे 
कि वे हमारे घर आए 

हम जब उनके घर गए
न चेहरे पर उत्साह और खुशी 
ऐसे लगा जैसे अंजानो के बीच आ गए
खातिरदारी भी सामान्य सी
कुछ विशेष नहीं 
ऐसा लगा कि 
आना नहीं भाया

बुरा लगा
अचानक विचार आया
सब स्टेट्स का फर्क है
वे आए तो तुमने उनकी स्टेट्स के अनुरूप किया
तुम गए तो तुम्हारी हैसियत के अनुसार तुम्हारा
ऐसा होना कोई असामान्य बात नहीं है ।

Friday, 24 June 2022

मैं हूँ बस तेरा

तू जब जब गिरा
तब तब मैंने उठाया
जब जब तूने मुझे गुहार लगाई 
मैं किसी न किसी रूप में आया
मदद की 
रास्ता दिखाया 
कठिनाइयों से उबारा
ईश्वर ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ?? 
यह मैंने नहीं 
तुम्हारे कर्मों का फल है
कर्म फल तो भुगतना ही पडेगा
सभी मेरे प्यारे हैं 
सभी मेरी संतान है
सभी पर उतना ही प्यार 
सबकी जिम्मेदारी मेरी
कर्म का भागीदार मैं नहीं 
वह तो स्वयं करने वाला
कर्म फल तो मुझे भी भुगतना पडा
माता गांधारी का श्राप इसीलिए तो मिला था
कर्म का संदेश मैंने ही दिया है
तब आप सब कुछ छोड़ दीजिए मुझ पर
आप कर्म करें 
कर्म करते समय गलतियाँ भी होती है
तब उसका परिणाम भी भुगतना होगा 
इसमें कुछ दुख की बात नहीं है
इस जन्म का हो
पिछले जन्म का
सब हिसाब-किताब है 
आप बस कर्म करें  ।

ईश्वर की कृपा

मैं ईश्वर की बहुत बडी भक्त नहीं हूँ 
न ज्यादा व्रत - उपवास न नियम 
न कोई मनौति बस दर्शन की अभिलाषा 
बस अपनी सुविधानुसार रोज हाथ जोड़ लेती हूँ 
फूलमाला और दिया जला देती हूँ 
हाँ मुसीबत के वक्त याद करती हूँ 
कभी प्रार्थना तो कभी कोसना 
यह तो भक्त और भगवान का नाता ही है
किसको बोले
यह मैंने देखा है ईश्वर ने हर समय मुश्किल में मदद की है
और उसको आसान बना दिया है 

बात कुछ पांच- छह वर्ष पहले की है
मेरा बेटा बेंगलोर में पढाई कर रहा था
प्लेसमेंट हो रहा था 
एक कंपनी में प्लेसमेंट हुआ वह बेंगलोर में ही थी
कुछ दिन बाद कंपनी ने कहा
तुमको नोएडा जाना पडेगा 
प्लेन का टिकट और सारी औपचारिकता हो गई थी
नोएडा में न कोई जान न पहचान
मुंबई में रहा हुआ लडका
कहाँ क्या करेंगा वहाँ 
माँ होने के नाते यह विचार आ रहे थे
रात भर नींद नहीं आई 
ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कुछ करें 

बेटा तो निश्चिंत था 
मैं कर लूंगा अपना इंतजाम 
अचानक फोन आया कि मेरा दूसरी कंपनी में हो गया है 
बात यह हुई कि 
वह अपने बाॅस के साथ एक जगह गया था
वह आई टी हब ही था
बाॅस ने उसको नीचे इंतजार करने को कहा 
बगल में ही एक बिल्डिंग थी जिस कंपनी में उसे होल्ड पर रखा गया था
वह सोचा कि तब तक मिल आऊ देखूं क्या बोलते हैं 
वहाँ पर उसे हाॅ कहा गया और कन्फर्म हो गया
अब पहले वाले को ना कहना था 
वह सब हो गया 
कुछ फार्मलिटी पूरी करनी थी
मेरी जान में जान आई

अब तो यह ईश्वर की कृपा ही कही जाएगी ना ।
न जाने जीवन में कितने ऐसे वाकया हुए हैं 
जहाँ ईश्वर ने दिखाया है 
मैं हूँ  , मैं हूँ। 


सत्ता का खेल

कैसा अजीब है न 
जिस लकडी से कुल्हाड़ी बनती है
वह उसी पेड़ की होती है
यानि जहाँ पनपे - बढे 
उसी पेड़ का विनाश 
यह सही है
प्रकृति का नियम है
कितना भी शक्तिशाली हो
किसी की यहाँ नही चलती
सबको एक दिन जाना ही होता है
पर वह पीडा दायक तब होता है
जब घाव अपनों से मिला होता है
यहाँ सत्ता के लिए 
अपने ही जन्मदाता और सहोदर भाईयों की हत्या 
सत्ता के लिए ही 
महाभारत और रामायण 
यदि दुर्योधन जिद पर न अडा होता
यदि महारानी कैकयी अपने भरत के लिए राज्य न मांगती 
इतिहास ऐसे न जाने कितने उदाहरण से भरा पडा है
यह सत्ता की कुर्सी किसी की सगी नहीं होती 
आज कोई तो कल कोई और
वर्तमान में भारतीय राजनीति इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ।

Thursday, 23 June 2022

सत्ता का लालच

कुछ चले गए 
कुछ जा रहे हैं 
जब जुड़े थे तब अपने मन से
हमसे ही पहचान मिली
हमसे ही सफलता के इस शिखर पर पहुँच गए 
हमने तो बुलाया नहीं था 
तब भी स्वार्थ था
आज भी स्वार्थ था
तब दोषारोपण हम पर क्यों 
किसी को कोई जबरन बांधे नहीं रख सकता
तुम तब भी मजबूर न थे
आज भी मजबूर नहीं हो
फिर ऐसा क्या हुआ ??
कहीं सत्ता का लालच तो नहीं 
सत्ता बहुत कुछ कराती है
कुर्सी के खेल निराले हैं 
सब इस पर बैठना चाहते हैं 
हर कोई पैंतरेबाजी करता है
कोई पाता है कोई नहीं 
पर पीठ पर छिप कर वार करना
धोखा देना 
तोहमत लगाना
किसी को नीचे गिराना
जिस सीढी पर चढ कर ऊपर पहुंचे 
उसी को गिरा देना
कहीं ऐसा न हो
जब वापस आना पडे
तब तो सीढी ही न मिले
तब तो लटक गए न 
यहाँ न वहाँ 
न माया मिली न राम 

मैं आईना

मैं तो वही दर्पण हूँ 
तू भी तो वही हैं 
मैंने बचपन से बुढापे तक 
तेरे हर रूप का साक्षी रहा हूँ 
तेरी प्यारा बालपन देखा है
यौवन देखा है
जो घंटों मेरे समक्ष बीतता था
आते - जाते , सोते - जागते
तुझे अनुपम सुंदरी होने का एहसास भी मैंने ही कराया था
ढलता हुआ  यौवन 
बालों में सफेदी
चेहरे पर पडती झुर्रिया 
ऑखों पर लगा चश्मा 
सबका धीरे-धीरे तुम्हारे जीवन में प्रवेश
अब तो चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ 
वह कोमल चेहरा जिस पर तुम न जाने कितनी बार हाथ फेरती थी
लहराते घने काले केश
बडी बडी कजरारी ऑखें 
सब मैंने देखा है 
अनुभव किया है
अब तुमको मुझे देखने का मन नहीं करता 
जरूरत पर एक या दो बार
सबके सब बदल गए हैं 
जो तुम्हारे रूप पर फिदा होते थे वे भी
पर मैं नहीं बदला
मुझे तो तुम्हारा वह बाल रूप भी याद है
जब होली पर रंगों से भरकर जीभ निकाल कर खडी हो जाती थी
और आज का भी झुर्रियों वाला भी 
तब भी प्यार था आज भी है ।

बदरा आए

उमड घुमड कर बदरा आए
कभी यहाँ तो कभी वहाँ 
कभी छाते तो कभी ओझल
ऑख मिचौली का खेल , खेल रहें 
कभी आशा जगाते कभी निराशा 
बरखा की आस दिलाते तो सब खुश
कुछ पल में छट जातें 
धूप - छाँव का खेल खेलते
सबका जिया मोहते 
सब टकटकी लगाएं देखते
अब बरसे अब बरसे
हर जीव की आस 
हर जीव की प्यास
हर्षाते - बल खाते , इठलाते 
बदरा आए 
सब हर्षाए। 

Wednesday, 22 June 2022

कभी-कभी अंजाने भी अपने से

कभी-कभी कुछ अंजाने से भी अपने लगते हैं 
एक छोटा सा काम भी बहुत बडा हो जाता है
अभी कल की ही बात है
मैं डाँक्टर के यहाँ गई थी
चार - पांच घंटे हो गए थे
भूख लग गई थी
शुगर की मरीज हूँ 
अगर नहीं समय पर कुछ खा लूं तो हालत खराब हो जाती है
बैलेन्स जाने लगता है
वैसे तो मैं बिस्किट- पानी लेकर चलती हूँ 
पर कल कुछ ज्यादा ही बारिश थी
हडबडी में लेना भूल गई
पति देव का बड बड चालू था
पुलिस वाले हैं नियम वाले
हमेशा बाहर आने पर भूख - प्यास लगती है
वाशरूम जाना पडता है
खुद पर कंट्रोल नहीं 
मालूम है तब निकलते समय सब लेकर रख लेना चाहिए तब निकलना चाहिए 
अब मैं कहाँ बाहर जाकर बिस्किट की दूकान ढूंढू 
जाकर ले आओ खुद
डाक्टर साहब के आने का समय भी हो गया था
बाहर बारिश भी
अब क्या करूँ 
असमंजस में उठ कर बाहर आई दरवाजे की ओर 
रिसेप्सन काउंटर पर एक युवक बैठा था
शायद रिसेप्सनिश्ट  चली गई थी
वह युवक अक्सर डाॅक्टर के केबिन में रहते हैं 
बी पी और वजन मापने तथा मेडिसिन के बारे में बताने के लिए 
मैंने हिचकिचाहट से कहा
यहाँ कहीं बिस्किट मिलेंगी 
फिर पूछा आपके साथ कोई आया नहीं है क्या
बाहर ही गेट से निकलने पर है
मैने कहा 
हाँ आए तो हैं पर मना कर रहे हैं 
आपका तो पहला ही नंबर है न
फिर कहा , ठीक है 
मैं लेकर आता हूँ 
वह जाने लगा तो मैं पैसे देने लगी
नहीं ले रहा था पर मैंने बीस का नोट जबरदस्ती पकडा दिया
एक तो काम करें ऊपर से अपना ही पैसा भी 
यह तो ठीक नहीं है न
वह गया और मारी बिस्किट ले आया और केबिन के बाहर दिया
इतना अच्छा लगा 
ऐसे भी लोग हैं न तभी गुजारा है
अब उसके लिए तो मुझ बासठ साल की लेडी के मन से आशीष ही मिलेगा न 
थैक्यू क्या बोलना फिर भी
मन से थैंक यू 

Tuesday, 21 June 2022

मेरे बाबूजी

मेरा बाप सबसे खास
उसकी हर बात मुझे याद

अपने आप में रहना
ज्यादा किसी से माथाफोडी नहीं करना

न लेना न देना
मगन रहना

दोस्ती अपने बराबरी वालों से करो

जहाँ इज्जत न हो वहाँ मत जाओ

किताबों में लगे रहो
शिक्षा से बडा कोई साथी नहीं
हार नहीं मानो 
पढते रहो , फेल तो फेल
पर पढाई मत छोड़ो

अपने आप को कम मत समझो

हम जो कर सकते हैं वहीं करें
किसी से अपनी तुलना न करें

पैसा न हो तो
कोई नहीं पूछता

अपनी संतान से प्यारा और बहूमूल्य कुछ भी नहीं

ज्यादा अपेक्षा मत करो
दुख के सिवा कुछ नहीं हासिल होगा

धोखा खा लो पर
किसी को धोखा मत दो

भले सौ लोग एक तरफ हो तुम अकेले
तब भी सच झूठ नहीं हो जाता

ईमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलो
बेईमानी कभी फलती नहीं है

सादा जीवन उच्च विचार

किसी के कपड़ों और सादगी से उसका मूल्यांकन मत करो

शेक्सपियर वाला वाक्य उनकी पसंद
औरत अच्छी तो स्वर्ग यही और नहीं तो नर्क यही

समाज किसी को शांति से जीने नहीं देता
क्योंकि वे समाज से एक कदम आगे रहे हमेशा
जब लोग धोती पहने तब वे पैंट पहने
जब लडकियाॅ मैट्रिक होने में ही शान समझती थी
तब बेटी को पोस्टग्रेजुएट बनाया

जब तुम आगे बढ़ते हो तो लोग
तुम्हारा पैर खींचने के लिए तैयार

व्याकरण के बिना भाषा नहीं
अंग्रेजी भाषा के कायल

लडका लडकी सब एक समान
सबसे दोस्त जैसा व्यवहार
जान से ज्यादा प्यार
बस वही उनकी दुनिया और समाज
बच्चों की बात को हंसकर टाल देना 
ऐसा मेरा बाप
बच्चों में बच्चा बन जाना
हिटलर शाही नहीं पसंद
गीता का भरपूर ज्ञान
ईश्वर में आस्था पर दिखावे से दूर

बडे बडो को देखा
बहुत इतराए
बहुत घमंड किए
और धराशायी भी हुए
नीचा दिखाने वाले स्वयं लज्जित
पर बाप जैसा था वैसा ही रहा
अंत में उन्हीं लोगों को कहते सुना
भाग्यशाली हैं कामता सिंह
कारण कि उन्होंने शिक्षा को तवज्जों दी
ज्ञान को प्रधानता दी

उनका वाक्य
जीवन में कुछ भी बेकार नहीं जाता
सागर की लहरें भी निशान छोड़ जाती है
ज्ञान की कोई पराकाष्ठा नहीं
सौ अमीर के बीच एक शिक्षित गरीब 
शान से खडा रह सकता है
सबसे बडी वही उसकी ताकत

आज का दिन क्या
हर दिन ही तुम्हारी याद

Happy  father's  day  
             मार्डन विचारों वाले मेरे बाबूजी

Monday, 20 June 2022

राम के साथ सबको वनवास

चौदह वर्ष का वनवास राम को मिला था
पर केवल राम ही ने वनवास भोगा क्या??
उनके साथ जुडे हर किसी ने
सीता पत्नी थी चल पडी पति के साथ
लक्ष्मण चल पडे भाई का साथ निभाने
रह गए अयोध्या में परिवारजन

अयोध्या की जनता बिना राजा के रही
राम बिना महल ही नहीं अयोध्या सूनी रही
राजसिंहासन रिक्त रहा
एक राजा की मृत्यु और भावी राजा का वन गमन
यह जनता ने सहा था देखा था

अब बारी महल की
रानी कैकयी  को तो वनवास मिल ही गया था जब भरत ने उनका तिरस्कार किया
पति को खोया सो अलग 
कौशल्या और सुमित्रा दोनों को ही पतिवियोग और पुत्र वियोग मिल ही गया था
बेटा वन और माँ महल में 
यह सुख नहीं था वनवास से भी कठिन था
न राजमाता रही न महारानी 

अब बचे भरत और शत्रुघ्न 
भरत को तो माँ ने इस लायक ही नहीं छोड़ा 
अगर राज्य स्वीकारते तो आज वे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखे जाते 
माँ के कर्मों का दंड उन्हें झेलना पडा
संन्यासी बन बाहर कुटिया बनाकर रहें 
शत्रुघ्न को तो सबको लेकर चलना था कैसे छोड़ देते
भाईयों की राह पर और कर्तव्य भी निभाना था
उर्मिला  को तो वियोग मिल ही गया था पति जो वनवासी था
बची 
 मांडवी और श्रुतिकृति
दोनों के पति अपना अपना फर्ज निभा रहे थे
भ्रातधर्म और राज धर्म 
सब वनवास काट रहे थे
कोई प्रकृति के बीच
कोई महलों के भीतर 

एक के लिए राज सुख की मांग 
सबका सुख छीन गया

 

सेना में भर्ती के नाम पर आगजनी

सेना में भर्ती 
यह तो देशप्रेम हैं 
व्यापार नहीं 
पैसों की लालसा से नहीं 
देश सेवा का जज्बा 
आज तो वास्तविकता कुछ और ही नजर आ रही हैं 
सेना में  भर्ती के नाम पर देश की संपत्ति को जलाया जा रहा है
तोड़ फोड़ किया जा रहा है
वह इसलिए कि नया कानून बना है
चार साल भर्ती का
हर्ज ही क्या है
चार साल देशसेवा करिए 
अगर आप में काबिलियत है तो आपकी कदर होगी ही 
दस प्रतिशत आरक्षण भी
अब क्या चाहिए 
अगर आपमें देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा है 
तो अपनी काबिलियत पर नौकरी हासिल करने का
बिजनेस करने का
रोजी रोटी चलाने का हुनर नहीं है क्या ??
सेना क्या  दूध देने वाली गाय है
उसका उपयोग करो
नौकरी और एक अच्छी पेंशन 
ताकि जिंदगी आराम से सेट हो जाएं 
अब तो यहाँ तक कहा जा रहा है
कि सेना में भर्ती पैसों के लिए होती है
कुछ प्रांत जो ज्यादा से ज्यादा सेना में हैं 
उनके ऊपर शक आ रहा है
देशभक्ति और देशप्रेम तो दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा हैं 
सरकार की मंशा को समझिए
उचित मांग करिए
प्रजातंत्र है 
हाँ अपनी मांग मनवाने के लिए 
राष्ट्रीय संपत्ति को हानि न पहुंचे 
यह ख्याल रहें 
हो सकता है 
सरकार को फौज व्यवस्था में संशोधन करना जरूरी  हो
समय की मांग हो
लीक पर ही चले 
यह तो कोई बात नहीं 
दुनिया को लोग देख ही रहे हैं 
क्या क्या चल रहा है
हथियारों और अस्त्र- शस्त्र की प्रतिस्पर्धा लगी हुई है
वे लडाई में बमबारी से जल रहे हैं 
हम आगजनी से देश को जला रहे हैं 

धरती और आकाश

धरती धैर्य वान है
वह सब कुछ सहती है
उसी की गोदी में सब कुछ 
खेलते भी हैं 
उपयोग भी करते हैं 
गंदा भी करते हैं 
वह कुछ नहीं कहती 
जब तक कि पानी सर से ऊपर न चला जाएं 
जब क्रोध में कांपती है जरा सी
तब तो भूकंप आना निश्चित है
सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है
ऐसे ही औरत जो माता भी है
संतान के लिए हर कुछ कर गुजरती है
उसकी कोई सीमा नहीं 

आकाश शान से खडा है
बादल आते हैं 
उमडते घुमडते हैं 
कभी बरसते कभी नहीं 
बिजली कडकती है 
कुछ समय के लिए डर
फिर बात आई-गई 
पिता वैसा ही प्राणी है
गरजता है बरसता है
शांत हो जाता है
एक डर रहता है मन में 

धरती के पास सब
उससे लोग जुड़े हुए 
आसमां तो दूर है 
बहुत ऊपर
वह बस निहारता है
वाच करता है
छत तो उसी से है
जब तक वह 
तब तक सब निश्चिंत विचरण करते हैं 
ऐसे ही तो होते है
हमारे माता और पिता 

बरखा रानी

आज तो शमा है सुहाना 
हर हर करते पेड 
झूमती हरियाली 
मस्ती भरी हवा
पंख फैलाकर नाचते मोर
घोसलो में दुबके हुए पक्षी
ची  ची करती चिडियाँ 
गुटरगू करता कबूतरों का जोड़ा 
कांव कांव करता कौआ
सब देख रहे हैं 
इस सुहावने मौसम की छटा को
बादलों की ओट से सूर्य भी झांक रहे हैं 
इंतजार करते रहें जिसका
वह आज आई है
अपने साथ खुशियां भी लाई है
जीवनदायिनि है 
जल लाई है
सबकी प्यास बुझाने 
सबको तृप्त करने
सूखे को हरा भरा करने
तपती धरती को राहत दिलाने
गर्मी से झुलसतो में  नव ताजगी लाने
कौन ऐसा है जो इसे पसंद न करें 
इसकी  शिद्दत से प्रतीक्षा न करें 
क्या सजीव क्या निर्जीव 
क्या पशु-पक्षी क्या मानव
क्या नदी क्या पहाड़ 
क्या धरती क्या प्रकृति 
सब आनंदित 
पूरा जग आनंदमय 
अब तो समझ गए न
यह है हमारी प्यारी आपकी प्यारी 
सबकी प्यारी 
सबसे न्यारी 
बरखा रानी 

बारिश के साथ यादें

बारिश गिर रही है झमझमा झम 
मन में यादें भी उमड घुमड रही झिमझिम 
कुछ भीनी- भीनी खुशबू और मुस्कान भरी
कुछ बिजली जैसी कडकती फडकती भयावह और डरावनी
अब दोनों तो साथ साथ ही चलेगी रिमझिम रिमझिम 
कभी हरियाली कभी अंधड 
कभी सब नष्ट-भ्रष्ट 
कभी नई कोपलों में जान भरने वाली
विनाश और निर्माण 
जन्म और मृत्यु 
यही तो रंग है
कभी इंद्रधनुष कभी घना घनघोर कालिमा 
इन रास्तों पर चलना ही पडता है
चाहो या न चाहों 
बरसात को तो आना ही है
अपनी पूर्ण लाम लश्कर के साथ
हमें भी वैसा ही अनुसरण करना है
कभी सुख कभी दुख 
कभी हंसना कभी रोना 
कभी जीना कभी मरना
इनके सिवा नहीं है कोई ठिकाना। 

बस चलना है

जिंदगी का सफर कब शुरू हुआ यह तो ठीक से याद नहीं 
हाँ जब से शुरू हुआ अनवरत चल ही रहा है 
न जाने कितने मोड आए
कितने मुकाम आए
कभी-कभी तो ऐसे लगा शायद अब नहीं होगा
हताशा और निराशा 
फिर हिम्मत करके चल पडे
कभी समतल तो कभी-कभी कंकरीली - पथरीली राहें 
कभी-कभी विशाल चट्टान का आडे आना 
कभी-कभी जोरदार अंधड और तूफान 
लगा सब बह जाएंगा
सब  नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगा
ऑधिया चलती रही
हम लडते रहें 
कुछ रास्ते ऐसे भी मिले जिसने सफर को जारी रखने की हिम्मत दी
नया आयाम और दिशा दी
साथ दिया
सफर में न जाने कितने मिले कितने बिछुडे 
सबने अपनी एक याद छोड़ी
वह अच्छी भी बुरी भी सबक भी
हम हमेशा सीखते रहे 
आज भी सीख ही रहे हैं 
रास्ते भी तो नए बन रहे हैं 
जिसकी जानकारी ही नहीं 
कल कहाँ मोड ले ले यह तो पता नहीं 
यह पता तो गुगल मैप भी नहीं बता सकता है
यह राह इतनी आसान और सरल नहीं 
इसकी मंजिल से भी बेखबर
पर इतना पता है
बस चलना है और चलते जाना है ।

Sunday, 19 June 2022

रिश्ते निभाना

रिश्ते निभाना 
रिश्ते सहेजना
इतना आसान नहीं होता
टूटना पडता है
बिखरना पडता है
मन मसोसकर रह जाना पडता है
भूलना पडता है
स्वयं को मिटाना पडता है
जब जाकर यह कायम रह पाते हैं 
कितना भी जतन कर लो
कभी-कभी एक गलतफहमी पूरे किए - किराए पर पानी फेर देता है
सौ अच्छाइयां कर लो
एक गलती कर लो
वह याद रह जाती है
कितना संभलोगे 
आखिर इंसान ही तो है
कुछ न कुछ तो निकल ही जाता है
क्रिया की प्रतिक्रिया भी तो होती है
कुछ तुम भूलो कुछ वह भूले
कुछ तुम नजरअंदाज करो कुछ वह करें 
तभी तो बात बनेगी
दूर तक साथ निभाना  है तो
प्रयास हर किसी का हो अन्यथा 
एक क्षुद्र कारण ही पर्याप्त है दूरी लाने के लिए 
विश्वास और समर्पण तथा प्यार और समझदारी
इतनी बडी जिंदगी है यार
इंसान ही तो है ईश्वर नहीं 
तब परिपूर्णता कैसे होगी
चार कदम तुभ चार कदम हम
तभी तो 8 होगा
यह बंधा रहेंगा
अलग-अलग कर लो 
तब तो 0/0       -------  8 
चाहे कुछ भी हो
रिश्ता कायम रहे 
यह सोच सबकी हो
निभाने की जिम्मेदारी भी सबकी हो

हमारे बाबूजी

हम तुम्हें कैसे भूल पाएंगे 
आप तो जन्मदाता हैं हमारे
हमारे रग - रग में बसे हैं 
आपका ही खून हमारे रगों में दौड़ रहा है
आपसे अलग होकर तो हम कुछ भी नहीं हैं 
ईश्वर ने हमको इस पृथ्वी पर भेजा है
पालन - पोषण तो आपने किया है
पढाया - लिखाया और जीने योग्य बनाया है
सबसे बडी देन कि आपने हमें अच्छा इंसान बनाया है
बुराइयों से दूर रखा है
ईमानदारी और कर्मठता का पाठ पढाया है
सादगी के साथ जीना सिखाया है
शिक्षा को सर्वोपरि दर्जा,  यह तो आपसे ही सीखा है
भगवद गीता को पढने वाले
हम तो आप को ही देख देख कर बडे हुए हैं 
तभी तो लालच से दूर रहें 
सत्य के राह पर चल रहे हैं 
दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति नहीं रही है
जो है उसी में समाधानी 
एक वाक्य जो उनका आज तक जेहन में गूंज रहा है
मैंने किसी को जिंदगी में धोखा नहीं दिया है
धोखा खाया है पर दिया नहीं 
यानि कोई जाने या न जाने 
अगर आप गलत कर रहे हैं तो आपका मन कहीं नहीं गया है
वह आपका सब कच्चा चिट्ठा जानता है
ऊपरवाले से बचकर कहाँ कोई जाएंगा
दूसरी बात उनकी
डार्विन की थ्योरी 
Survival of the fittest 

शक्तिशाली को ही जीवित रहने का अधिकार है
दुनिया कमजोर को शांति से  जीने नहीं देती 
चाहे वह आपके अपने ही हो , रिश्तेदार हो
समर्थ तो होना ही पडेगा
शिक्षा से संपत्ति से योग्यता से

तीसरी बात 
प्रेम सबसे करो विश्वास किसी का नहीं 
क्योंकि विश्वासु व्यक्ति ही विश्वास घात करता है
दुश्मन से तो सब सतर्क रहते हैं दोस्त से नहीं 

ऐसे न जाने हर रोज हमने अपने बाबूजी से क्या - क्या सीखा है
वह अमल करने की कोशिश भी करते हैं 
बाबूजी आपके बारे में  क्या-क्या कहें 
यह जीवन छोटा पड जाएगा 
बस आपके दिखाएं राह पर चले वही काफी है 

Saturday, 18 June 2022

पिता का त्याग

पिता का त्याग देखना हो
तब राजा दशरथ को देखें 
राम वियोग में माता ने नहीं 
पिता ने प्राण छोड़ा था
बेटे का वियोग वह सह नहीं पाए
जिसके कि दोषी कहीं न कहीं वे भी थे

पिता का त्याग देखना हो 
वसुदेव को देखें 
जो आधी रात को अपने छोटे शिशु को लेकर
यमुना पार कर रहे थे उफनती  नदी और बरसात में 

पिता का त्याग देखना हो तो
अर्जुन को देखें 
जो जयद्रथ वध नहीं करते
तब अग्नि समाधि ले लेते 
अभिमन्यु की मृत्यु सहना वह भारी हो गया था

पिता का त्याग देखना हो तो 
रावण को देखें 
मेघनाथ के मरने के बाद 
तो जैसे सब खत्म 
पहली बार चेहरे पर हताशा और निराशा 

पिता का त्याग देखना हो 
धृतराष्ट्र को देखें 
दुर्योधन के लिए सब कुछ सहा
यहाँ तक कि पांचाली का चीरहरण भी
युधिष्ठिर से बेईमानी भी
वह पिता थे
गलत था बेटा
पर पुत्र मोह में बंधे न्याय नहीं कर पाए
अपने प्रिय अनुज पुत्रों के साथ
इतिहास में बदनाम तो हैं ही
ऑखों से ही नहीं 
पुत्र मोह में भी अंधे 

अच्छा  - बुरा 
उचित - अनुचित 
चोर - डकैती 
बेईमानी- ईमानदारी 
सब कुछ करता है वह
पिता है न वह 

Happy Father's Day

माँ तो माँ होती है
ममता और त्याग की प्रतिमूर्ति 
पिता तो पिता होता है
सर्वेसर्वा होता है
एक खुला आकाश होता है
छायादार वृक्ष होता है
घर की छत होता है
सर पर एक छत्रछाया होता है
वह क्या है
क्या कर रहा है
रोजी - रोटी का जुगाड़ कैसे कर रहा है
इसकी तो भनक नहीं लगने देता 
संतान को अपने सर - ऑखों पर बिठाया है
मन में रखता है
भरपूर प्यार करता है
ऊपर से कठोर दिखता है
अनुशासन जो सिखाना है
घर को व्यवस्थित चलाना है
कहने को तो वह मुखिया है
लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी का सामना उसे ही करना है
वह वो है जिसको अपनी भावनाएँ छुपा कर रखना है
ऑसू अंदर ही अंदर पी जाना है
वह मर्द है न
घर का सर्वेसर्वा है न
अगर वह धीरज और हिम्मत छोड़ देगा तब ?? 
जब तक वह 
तब तक सब व्यवस्थित 
वह मेहनत करता है
तब घर - परिवार चलता है
सबके हिस्से की परेशानी हर लेता है
जो करना हो वह सब करता है अपनी संतान के लिए 
वह बाप है न
तभी तो खास है
  Happy father's day 
हर पिता के लिए 

माँ तो माँ होती है

माँ तो माँ होती है
अमीर हो या गरीब 
राजा हो या रंक 
सबका आधार होती है
संतान भी किसी की हो
कैसी भी हो
माँ के लिए वह अमूल्य होती है
हर माँ के लिए 
उसकी बेटी राजकुमारी 
उसका बेटा राजा बाबू होता है
दुनिया कुछ भी कहें 
पर माँ वह नहीं 
उसकी औलाद हमेशा निर्दोष ही दिखती है
अगर किसी को देखना हो 
परखना हो
तो उसकी माँ के नजरिये से देखें 
वह सर्वश्रेष्ठ रहेंगा 
सभी गुणों से भरपूर 
कहीं कोई कमी नहीं 
क्योंकि माॅ प्यार के चश्मे से देखती है
संतान के लिए तो वह क्या न कर दें 
वह भी कोई मजबूरी नहीं 
स्वेच्छा से
पूर्ण मन से
कैकयी से अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है
अपने पुत्र भरत के लिए 
इतना बडा कलंक ले लिया
जो लोगों को सदियों तक याद रहें 
राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बनी
पति को उस पर न्योछावर कर दिया
राम को वनवास दिया
ताकि वह भरत की राह में रोड़ा न बने
बेटे के लिए प्रजा से भी तिरस्कार मिला
सबसे पंगा ले लिया 
केवल अपने भरत के लिए 
वह गलत थी
यह सर्वविदित है
पर वह माॅ थी भरत की
हर माँ चाहेगी अपनी संतान की भलाई और उन्नति 
उसने भी वही किया
पर यह वह भूल गई 
उसने भरत को योग्य शिक्षा दी है
कभी छल - कपट और दांव- पेंच नहीं सिखाया 
स्वार्थ वृत्ति नहीं सिखाई
माता ने उनको आदर्श व्यक्ति बनाया 
इसलिए जब वह पुत्र प्रेम में अंधी हो गई थी
मंथरा की बातों में आकर 
रानी कैकयी मतिभ्रम हो गई थी 
वह जो राजा दशरथ के साथ देवासुर संग्राम में लडी थी
असहाय और कलंकिनी  हो गई अचानक 
पर भरत भी तो उसी माता के बेटे थे
कि उन्होंने सही निर्णय लिया
तभी तो मैथिलीशरण गुप्तजी ने साकेत में राम के मुख से कहलवाया है
धन्य धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने जना भरत सम भाई

Wednesday, 15 June 2022

कर्म योगी

#कर्मयोगी

कृष्ण होना सरल है क्या?

माता को मातृत्व का सर्वोच्च सुख देना, फिर भी मोह में लिप्त न होना. 
पिता को उज्वल और सुरक्षित भविष्य का स्वप्न दिखाना, साकार करना पर मोह में लिप्त न होना. ईश्वरीय अंश हो कर दरिद्रतम लोगों से भी मित्रता कर लेना, बिना किसी भेद के, भरपूर प्रेम देना, पर मोह में लिप्त न होना. प्रेयसी को इतना प्रेम करना कि उदाहरण बन जाए, पर मोह में लिप्त न होना... 
क्यों? ये सब सुख ही तो थे न. पर पल में त्याग दिया..

यही तो उनको मनुष्य होते हुए भी ईश्वर कर गया न कि कर्तव्य सर्वोपरि है. जब बात धर्म और समाज की रक्षा और उत्थान की हो तो बड़े से बड़े व्यक्तिगत सुख को तिलांजलि देनी पड़ती है. अपने हिस्से के सुख का त्याग ही तो राम को राम कर गया और कृष्ण को कृष्ण. 

हम वही देखते और सीखते हैं जो चाहते हैं. सबने रास तो देखा. त्याग नहीं सीखा. त्याग और विछोह में भी संतुलित रहना नहीं सीखा.. राम भी सीता के विछोह में संतुलन खो बैठे थे. पर कृष्ण ने यशोदा, गोकुल, राधा, मित्रों के विछोह का दर्द भी अपनी मुस्कान में अवशोषित कर लिया.

अपने लोगों की जान बचाने के लिए रणभूमि छोड़ दी. पता था कि रणछोड़ कहा जाएगा. यश का मोह नहीं किया.

भव्यतम द्वारिकापुरी बसाई. पर स्वयं गद्दी पर नहीं बैठे. सत्ता का मोह नहीं किया.

वो मोड़ भी जीवन में आया जब अपनी खुद की सेना और सेनापति  कौरवों की तरफ खड़ी थी. और खुद पांडवों की सेना में सारथी की भूमिका में थे.
द्वारिकाधीश और सारथी! विश्व का सर्वाधिक महान योद्धा और शस्त्र न उठाने का प्रण! पर उनको अपने ओहदे से बहुत निचले स्तर का कार्य सहर्ष स्वीकार था, क्योंकि संसार का कल्याण उनके सारथी होने में निहित था.
(बाणासुर से युद्ध में जब कृष्ण ने बाणासुर को युद्ध में परास्त कर दिया तो उसने मदद के लिए शिव का आवाह्न किया. शिव वचन बद्ध थे तो उन्होंने ने श्री कृष्ण से युद्ध किया. दोनों के मध्य भयानक संग्राम हुआ जिसमें कृष्ण विजयी हुए. और फिर शिव ने बाणासुर को कृष्ण के नारायण होने से अवगत कराया. अर्जुन, परशुराम और आचार्य द्रोण के अतिरिक्त संसार में बस वो ही चक्रव्यूह भेदन जानते थे. अभिमन्यु के गुरु वही थे. सिर्फ सुदर्शन चक्र ही नहीं कृष्ण अभूतपूर्व धनुर्धर भी थे)

कृष्ण की मुस्कान जीवन की सभी पहेलियों का उत्तर है. या यूँ कहूं कि उनकी मुस्कान ही तो जीवन है. जिन परिस्थितियों में दृढ़तम मनुष्य भी जीवन का ही त्याग कर दे उसमें भी उनकी मुस्कान ने चेहरे का साथ नहीं छोड़ा..

निष्काम कर्म की शिक्षा सिर्फ गीता के रूप में ही नहीं दी अपितु अपने हर कर्म से, जीवनशैली से निष्काम कर्म को जी कर दिखाया.

सबमें रमते हुए भी जो न रमे, सबको अथाह प्रेम दे कर भी जो मोह में लिप्त न हो, वही तो हैं कृष्ण.

अवसाद और उल्लास में जो सामान रहे, वही तो हैं श्री कृष्ण.

मोह शत्रु है और प्रेम ईश्वर, ये भेद जो समझा दे वही तो हैं कृष्ण. 

अन्याय का सर्वत्र प्रतिकार करे, वही तो हैं कृष्ण.

कहाँ तक नैतिकता का पालन करना है और किस सीमा के बाद मूल्यों को त्याग कर धर्म की रक्षा करनी है, इसका उदाहरण ही तो हैं कृष्ण. 

मानवमात्र के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दे, वही तो हैं कृष्ण.

तो कृष्ण सरल कदापि नहीं हैं. खुद को उनसे रिलेट करने का प्रयास व्यर्थ है. हम में से किसी के अंदर कृष्ण का एक अंश होने की भी क्षमता नहीं..
हाँ कृष्ण "सुलभ" हैं.. पुत्र, पिता, प्रेमी, पति, मित्र, भगवान कुछ भी बना कर उनको पूज सकते हैं.. वो निराश नहीं करते. जो जिस रूप में भजता है उसको उसी रूप में मिलते हैं. (जामवंत जी को राम रूप में दर्शन दिए थे)
जगद्सारथि के चरणों में श्रद्धा सुमन.
बस योगेश्वर का हाथ मेरे और सभी के सिर पर बना रहे.. 🙏
🚩🙏जय श्री कृष्णा जी
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Tuesday, 14 June 2022

वटपोर्णिमा

आज वटपोर्णिमा 
वट वृक्ष की पूजा
अपने सुहाग की मंगल कामना 
जैसे हमारा सुहाग अमर रहें 
साथ साथ यह वट वृक्ष भी रहें 
वैसे भी इस वृक्ष को लंबी है आयु
ऑक्सीजन देने वाला
छाया देने वाला 
वैसे ही घर का पुरूष 
जब तक वह रहता है सब निश्चिंत 
जब तक पेड़ रहेंगे 
हमें चिंता करने की जरूरत नहीं 
कहने को तो हिन्दू धर्म का यह अंधविश्वास 
पर शायद नहीं 
कितना वैज्ञानिक दृष्टिकोण 
तभी तो सूर्य से लेकर विषधर सर्प और मूषक की भी पूजा 

तनाव और डिप्रेशन

तनाव और डिप्रेशन
चाहे जो कह लो
आज का सच यही है
हर व्यक्ति इसके साथ जीता है
बच्चों से लेकर युवा और बुढे तक
इसका उत्तरदायी भी कहीं हद तक यह समाज है
जब घटना घट जाती है
तब वह अफसोस जताता है
व्यक्ति अकेला हो गया है
वह लडता रहता है 
अपने आप से
किसी को कह नहीं पाता
लोग ऊंगली उठाने के लिए
दोषारोपण करने के लिए
मजाक बनाने के लिए
हंसने के लिए 
किसी भी वक्त तैयार बैठे रहते हैं
ऊल जुलूल कहानियां बनाना
बिना किसी की पीडा को समझे
यह समाज जब तक देखने का नजरिया नहीं बदलेगा
आत्महत्या होती रहेगी
नर्सरी के बच्चे का भी मार्क्स पूछना
एक युवा बेकार है
उससे उसकी नौकरी का पूछना
बच्चा नहीं तो वह पूछना
डिवोर्स हुआ तो वह पूछना
सबके जीवन में ताक झांक करना
इसी वजह से व्यक्ति दिखाता कुछ है
होता कुछ है
सहानुभूति के नाम पर दर्द पर नमक छिड़कना
इतना संघर्ष
इतनी सफलता
तब भी इतना तनाव
रिश्तों में भी वह बात नहीं
सब कुछ दिखावटी और बनावटी
झूठ का पुलिंदा ओढ रखा है
नैतिकता रही नहीं
अपनी समस्या तो है ही
समस्या खडे करने वाले भी है
एक जिंदादिल
एक संघर्षशील
एक कामयाब
सुशांत सिंह राजपूत
जब ऐसा कदम उठा सकता है
तब सामान्य की क्या बिसात
कितनी पीड़ा
कितना दर्द
समेटे हुए
जब असह्य 
तब आत्महत्या
यह किसी भी हाल में जायज नहीं
जीने का अधिकार सबको है
एक जरा सी चोट लग जाती है
तब हम न जाने कितनी बार मरहम लगाते हैं
दिल जब टूटता है
तब उस पर भी मरहम लगाना चाहिए
और समाज की यह बहुत बडी भूमिका होनी चाहिए

Monday, 13 June 2022

कुत्ता ही भला

वह तो कुत्ता है
हमेशा भौकता रहता है
वह तो कुत्ता है
हमेशा दूम हिलाता रहता है
वह तो कुत्ता है
दर दर भटकता है
वह तो कुत्ता है
हमेशा सूंघता रहता है
वे तो कुत्ते है
हमेशा उनकी तरह आपस में लडाई करते हैं
वह तो कुत्ता है
बोटी सूंघते हुए आ जाता है
वह तो कुत्ता है
हमेशा उसके कान खडे रहते हैं
बेचारा कुत्ता
करे इंसान भरे कुत्ते
उपालंभ भी उनकी
उन्हें क्यों बदनाम
वह तो कुत्ता है
उसकी क्या औकात
ठीक है 
हम तो कुत्ते हैं
पशु है
जैसे है वैसे है
पर इंसान को क्यों हमारे जैसा कहते हो
उस पर व्यंग्य कसते हो
यह ठीक है साहब
हम कैसे भी हो
वफादार होते हैं
अपने मालिक के लिए जान दे सकते हैं
जिस थाली में खाना
   उसी में छेद करना
यह हमारी फितरत नहीं
हम जान दे देते हैं
पर पैसों की लालच में किसी की जान लेते नहीं
जो दो रोटी देता है प्यार से
उसका एहसान हम कभी नहीं भूलते
हम एहसान फरामोश और नमकहराम नहीं
जिस द्वार पर रहते हैं
उसकी रक्षा करते हैं
वहाँ चोरी और डाका नहीं डालते
इंसान की तुलना हमसे न करें
हम कुत्ते ही भले

अब वह गाँव नहीं रहा

हम तो आए थे अपने घर
महसूस हुआ 
वह घर नहीं
जो हम छोड़ गए थे
वह गांव नहीं 
जो हम छोड़ आए थे
अब तो यहाँ भी अपनापा
भाईचारा तो है गायब
घर में ही सब अलग अलग
तब एक कमाता था
खाते सब समान थे
सबका हक उतना ही
आज वह बात नहीं
अब यहाँ भी पैसा बोलता है
आमदनी के हिसाब से
रिश्तों का मूल्य
अब नहीं कोई जाता किसी के द्वार
अब तो द्वार भी सूनसान
सब अपने अपने घरों में
नीम के नीचे नहीं
अब पंखे की हवा भाती है
खाना सब एक साथ नहीं
अपने अपने कमरों में खाते हैं
नहीं बतियाता कोई
सब मोबाइल में मशगूल
नई बयार है
नया जमाना है
नए-नए शौक है
अब बारात में वह बात नहीं
आना और जाना 
बस रस्म निभाना
किसी के पास समय नहीं
अब घर के बुजुर्गों का वह रूतबा नहीं
वह तो किसी एक कोने में चारपाई डाल पडे हुए
कहने को तो सब संयुक्त है
पर सब अलग अलग
अब दातून नहीं ब्रश है
अब पोखर नहीं हैंडपम्प है
अब मिट्टी के बर्तन 
पीतल तांबा कांसा नहीं
चमचमाता स्टील है
अब राख से नहीं रगडना
साबुन से चमकाना है
सबको शहर प्यारा है
गाँव में रहना नहीं गंवारा है
अब तो कुछ बचे खुचे हैं
खेती क्यों करें
अब तो मनरेगा है
सस्ता अनाज
गेहूं चावल 
ऊपर से बैंक में आता सरकारी रूपया
बिजली और गैस मुफ्त
कर्ज लेना मजबूरी नहीं शौक
आज नहीं तो कल माफ
साइकिल और पैदल तो दूर
अब सबके पास मोटरसाइकिल है
क्या जरूरत काम की
रहना है आराम से
वह गाँव जो हम  छोड़ आए थे
वह ऐसा तो नहीं था

सच में जमाना बदल गया

कहते हैं 
जमाना बदल गया
सुनते हैं
जमाना बदल गया
जमाना नहीं
इंसान बदल गया
हमारा जमीर बदल गया
इमान बदल गया
नैतिकता रही बची खुची
उसके भी पैमाने बदल गए
सत्य शाश्वत है
उसकी भी परिभाषा बदल गई
दोस्ती , प्रेम अब वैसे नहीं रहे
रिश्ते भी मतलबी हो गए
अब कोई यू ही बिना कारण मिलता नहीं
मिलने में भी नफा नुकसान देखा जाता है
अब त्योहार पहले जैसे नहीं रहे
दिखावट का आवरण ओढ रखा है
अब हर चीज दौलत से मापी जाती है
प्रतिष्ठा और शोहरत का बोलबाला है
अब वह प्यार नहीं
अब वह अपनापन नहीं
अब वह दया और करुणा नहीं
अब वह भी मशीन है
शरीर इंसान का
मन मशीन का
अब वह पहले जैसा धडकता नहीं है
बडे सोच समझ कर फैसला लेता है
हर चीज का हिसाब रखता है
बहुत बारीकी से गुणा भाग करता है
ध्यान से जोड़ता और घटाता है
कहाँ मुनाफा
कहाँ घाटा
इस चक्कर में अपनों को भूल जाता है
कहते हैं
जमाना बदल गया 
जमाना नहीं जनाब
इंसान बदल गया है

Sunday, 12 June 2022

फ्लेट संस्कृति बनाम चाल संस्कृति

पहले भी वही लोग
वही जगह 
पर ऐसा तो न था
कोई किसी की ताई
कोई किसी की भौजी
कोई किसी की बेन
कोई किसी की खाला
कोई किसी की आंटी
सब अपने से लगते थे
पूरनपोली
कचौरी
ढोकला
सिवैया
केक
सबके स्वाद भी अपने घर के लगते थे
अब वह बात नहीं रही
अब तो व्यंग के सिवा और कुछ नहीं
नजरिया बदल गया 
अब प्रेम नहीं वैमनस्य ने घर कर लिया है
अब पडोसी नहीं
प्रांतीय और धार्मिक 
अब वह होली और दीवाली
गणेशोत्सव , क्रिसमस और ईद 
की रौनक पहले जैसे नहीं
त्योहार तो वही
पर हम बदल गए हैं
सोच बदल गई है
भाईचारे की भावना गायब हो गई है
चाॅल संस्कृति की जगह फ्लैट संस्कृति ने ले ली है
जहाँ सब अपने अपने घरों में बंद
प्राइवेसी हो गई है
सामुदायिक भावना तो कब की गायब हो गई है
अब लोग        हम   से    मैं 
हो गए हैं
पहले भी वही लोग
वही जगह
पर ऐसा तो न था

Saturday, 11 June 2022

जिंदगी का फंडा

आज बारिश की फुहारे  पडी
अच्छा लगा
बहुत समय से इंतजार था
गर्मी से बेहाल सब
अभी तो जम कर बरसे ही नहीं 
छाता - रेनकोट निकलने लगे
समस्या याद आने लगी
क्या -क्या अडचन आएंगी 
कहीं भी आना - जाना मुश्किल 
पिछली बरसात की यादें 

इतना सब होने के बाद भी
उसका आगमन सुखद 
सुकून भरा
हर खुशी में पीछे एक दुख भी खडा रहता है
इंतजार करता रहता है
कब मैं विघ्न डालूं 
परेशान करूँ 

बारिश हो या जिंदगी 
खुशी - गम साथ - साथ
हंसी- रूदन साथ- साथ
सबको साथ - साथ ही चलना है
यही तो जिंदगी का फंडा है 

अकेला

अब तो अकेलापन ही भाता है
नहीं मन करता किसी के साथ का
देख लिया 
जी भर कर बतियाय लिया 
मन खोल कर रख दिया
नतीजा क्या हुआ 
सब जगह ढिंढोरा पीट गया
हमारी पीडा का खूब प्रचार हुआ 
तरह - तरह की बातें हुई 
सबके अपने - अपने ओपिनियन बने
हमारी गोपनीयता सरे आम नीलाम हुई
जिनसे न कोई वास्ता 
उन्होंने भी चटखारे लिया
क्या - क्या नहीं तार - तार हुआ
इससे तो अकेलापन अच्छा है
कहने को तो समाज 
कहने को तो हितचिंतक 
ये तो और चिंता में डाल दिए
मन को विचलित कर गए 
शांति कहीं खो गई
अब सोचते हैं 
क्यों किसी पर विश्वास किया
क्यों अपने को बांटने गए
अकेला तो अकेला ही है
उसी से प्यार है 
पता है न कि
वह ऐसा कुछ नहीं करेंगा 
जिससे मन को ठेस पहुंचे। 

यदि ऐसा होता तो

यदि ऐसा होता तो
यदि वैसा होता तो
होता तब न
हुआ नहीं
हम इसी यदि के चक्कर लगाते रहते हैं
हासिल कुछ नहीं
सिवाय पछताने के
दुखी और निराशा के गर्त में डूबने के
देखा जाय तो
नियति जब खेलती है
तब सब कुछ पलट जाता है
जीती हुई बाजी भी हम हार जाते हैं
एक ही पल में सब कुछ उलट पुलट हो जाता है
सोचा हुआ हो जाता
तब क्या कहना
यदि , लेकिन , परन्तु , फिर भी
यह केवल शब्द नहीं है
बहुत कुछ इनमें ही छिपा है
जीवन का राज
मैंने सोचा था 
बीस साल में सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा
पचास पचपन तक सब जिम्मेदारी से मुक्त
पर वह हो न सका
इस यदि ने ऐसा टांग अडाया
जिंदगी औंधे मुंह आ गिरी
अब न समझ आ रहा है
न सूझ रहा है
यह क्या से क्या हो गया
कहाँ से चले थे
कहाँ पहुँच गए
यदि वैसा हुआ होता तो
परन्तु वैसा हुआ नहीं 
लेकिन ऐसे हो गया 
फिर भी जीना तो है
मरना तो किसी समस्या का समाधान नहीं
हार मानकर चुपचाप बैठ नहीं सकते 
तब ठीक है
फिर से कमर कसकर उठ खडे हो जाओ
यदि वैसा हो गया
तब फिर क्या गम

Thursday, 9 June 2022

उम्र के साथ संबोधन

उम्र के साथ संबोधन भी बदलते चले गए 
पहले थी गुड्डी , बेबी, लाडो 
फिर कुछ साल बाद दीदी - बुआ ,
उसके बाद भाभी , मौसी 
उसके बाद आंटी  , चाची , मामी 
उसके बाद मम्मी , माँ  ,अम्मा 
उसके बाद  एक पडाव पर दादी
लेकिन अब भी इनसे संतोष नही
अब एक संबोधन बाकी है
वह किसी किसी को नसीब होता है
वह है पर दादी यानि Great grand mother
शायद यह हसरत पूरी न हो
सपने देखने और कल्पना करने में हर्ज ही क्या है
आखिर उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी है

यह भी भलीभाँति जानकारी है
यह सब संबोधन आसानी से प्राप्त नहीं होते
इन्हें संभाले रखने में बडी मशक्कत करनी पडती है
बहुत कुछ त्याग  , समर्पण और भावनाओं की बलि देनी पडती है
तभी यह कायम रहते हैं 
यह चक्र है परिवार का , समाज का 
जो अनवरत चलता ही रहता है
हम तो वही  रहते हैं 
समय और उम्र के साथ संबोधन बदलते रहते हैं 
हर संबोधन का एक अपना ही मजा है 

Wednesday, 8 June 2022

जिंदगी बस अपने हिस्से की

आपने तो अपनी जिंदगी जी ली
आपके हिस्से का सब मिल गया
अब दूसरों को उनकी जिंदगी जीने दे
उनके अपने अरमान 
अपनी ख्वाहिशे 
अपनी मर्जी 
उन पर अपनी मर्जी थोपने की कोशिश 
यह तो सरासर नाइंसाफ़ी 
एक आपको मिली है
एक उनको
दो - दो जिंदगी जीने की जरूरत नहीं है 
यह प्रापर्टी थोड़ा ही है
हमने इस्तेमाल किया फिर कोई और की करें 
यह तो बस एक ही 
वह अपने हिस्से की
दूसरे के हिस्से की नहीं 
उसका हिस्सा उस पर छोड़ दें 
वह उसका हिसाब-किताब कर लेंगा 

करोना का खतरा अभी भी है

चहल-पहल शुरू
बहुत कुछ खुल गए
बहुत कुछ छूट दी गई
बहुत रियायत भी
इसका यह मतलब नहीं
करोना खत्म हुआ है
अभी तक तो घर में बंद थे
सुरक्षित थे
असली परीक्षा तो अब होनी है
बाहर निकलना है
काम करना है
साथ में सोशल डीशस्टिंग का पालन भी करना है
भूलना नहीं है
करोना विद्यमान है
वह कभी भी
किसी भी तरह
चपेट में लेने को तैयार बैठा है
घात लगाकर शिकार करने को
घर में बैठ नहीं सकते
यह भी ठीक
पर बिना कारण घर से बाहर न निकले
यह तो संभव है
यह तफरी करने का समय नहीं
बचने का समय है
अपने को और अपने प्रियजनों को
महामारी का खतरा अभी मंडरा रहा है
वह और विकराल रूप धारण कर रहा है
जिनको जरूरी है
वे निकले
आपका काम चल सकता है
तब क्या जरूरत है
आ बैल मुझे मार करने की

Tuesday, 7 June 2022

हम क्या देने वाले हैं अपनी अगली पीढ़ी को

हम तो भाग्यशाली थे
हमने आम,  महुआ  , नीम ,बेल , बबूल जैसे पेड़ों  को देखा है 
आम के पेड़ पर चढ कर और पत्थर मार आम गिराए हैं 
नीम की नीबौली का स्वाद चोखा है
महुआ को बीन कर उठाया है
बबूल का कांटा पैरों से निकाला है
बेल , बैर  ,इमली,  अमरूद , तूत, और न जाने क्या-क्या 
मक्के और मटर की बालियो को तोड़कर और भूनकर खाना
गन्ना तोड़ कर चूसना 
गुड बनने पर गर्म गर्म गुड खाना जिसके सामने मिठाई भी फीकी
सावा  ,कोदो जैसे भात को खाया है
ज्वार - बाजरे और मक्के की मोटी रोटी खाई है
अरहर और गेहूं के खेत में दौड़ लगाई है
आज वह समय नहीं रहा
अब वह नजारा दिखाई नहीं देता
अब तो बासमती - काला नमक जैसे चावल और अलग-अलग तरह के गेहूं के पौधे बस दिख जाते हैं 
बगीचे तो रहे नहीं  जो बचे - खुचे पेड़ हैं वह भी कांटे जा रहे हैं 
पहले वाले लगाते थे
आज वाले काट रहे हैं 
हमारे पूर्वज तो हमें यह सब दे गए 
हम तो वह भी छीन रहे हैं देने की बात तो दूर
प्राण वायु भी छीन रहे हैं 
तालाब - पोखरों और कुएँ को पाट रहे हैं 
दरवाजे पर बैलों का जोड़ा तो खत्म ही अब गाय भी रखने से कतरा रहे हैं 
कौन मेहनत करेंगा
चारा - पानी देना भारी है
गऊ माता को लावारिस छोड़ दे रहे हैं 
क्योंकि ये अब हमारे काम के नहीं रहें 
 बस एक अच्छा सा घर बना रहे हैं 
अपनी हैसियत इसी से दिखा रहे हैं 
हैसियत बनाते बनाते दूसरों का असतित्व मिटा रहे हैं 
स्वार्थी तो हम हमेशा से रहे हैं 
अपने लिए न जाने क्या क्या किया 
लेकिन अंजाने में या जान - बूझ कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं 
अपनी अगली पीढ़ी को ऐशो-आराम देने की कोशिश करते करते प्राण वायु ही छीन रहे हैं। 

किन्नर समाज

किन्नर यह शब्द सुन ही चेहरे के हाव - भाव बदल जाते हैं 
लोग कभी उनसे दूरी बनाए रखना चाहते हैं तो कभी जरूरत भी 
कारण कि इनकी दुआ और बददुआ दोनों लगती है
यह मानना है
पर किन्नर क्या मानते हैं 
क्या इनका जन्म इसीलिए हुआ है
ईश्वर ने उनको हाथ - पैर सही सलामत दिए हैं 
काम कर सकते हैं 
हाथ पसारना 
जबरदस्ती लोगों से पैसे लेना
धमकी देना
तब कहाँ से इनका सम्मान होगा
मेहनत और सम्मान की रोटी खाएं 
लोग इनसे भयभीत न रहें 
दुआ या बददुआ नहीं 
काम के लिए जाएं 
कुछ किन्नर सफलता से आगे बढ रहे हैं 
समाज उसको स्वीकार भी कर रहा है
लेकिन दूसरे के स्वीकार- अस्वीकार से क्या फायदा
ये लोग अपना समाज बदले
धारणा बदले
कानूनी हक भी मिला है
नाचना - गाना ही नहीं और भी पेशा अपनाए 
आगे तो बढे 
सोच को विकसित करें 
किन्नर है इसलिए जीवन व्यर्थ है इस बात को मन से निकाल दे 
सम्मान और इज्जत से रहें। 

कर्ण की गलती

महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था
कृष्ण के वापस आने पर रुक्मिणी ने उनसे पूछा
सब पापियों का संहार किया
कर्ण ने कौन सा पाप किया था
वह तो महादानी था
दानशीलता का कोई मुकाबला नहीं
अपना जीवन भी
कवच और कुंडल तक
कृष्ण मुस्कराए
यह सही है कि उसने जीवन भर पुण्य किया
पर एक पाप भी हुआ था
जिसने उसके सारे पुण्यों पर पानी फेर दिया
जब अभिमन्यु अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था
महान योद्धाओं से घिरा हुआ
वह जल की याचना कर रहा था 
वही पास में एक छोटा सा गड्ढा था जिसमें साफ पानी भरा था  
कर्ण वही खडे थे पर दुर्योधन की मित्रता में इस कदर डूबे थे कि एक मरते हुए शख्स को पानी नहीं पिलाया
यह पाप ऐसा था कि सारे पुण्य फीके पड गए
कर्ण की मृत्यु का कारण भी वही गड्ढा था 
जगह वही थी और पहिया उसी के कीचड़ में धंसा था जहाँ से उसको निकालते समय अर्जुन ने बाण से उनके प्राण लिया
कर्म का फल तो मिलता ही है
तुम्हारे पुण्य उसको ढक नहीं सकते

कुदरत का इशारा

यह करोना नहीं
कुदरत का ईशारा है
सावधान कर रही प्रकृति
अब भी समय शेष है
सुधर जाओ या 
परिणाम भुगतने को तैयार रहो
बहुत कर ली मनमानी
अब तो अनुशासित हो जाओ
कब तक करते रहोगे
खिलवाड़
दूसरों के जीवन से
अपने जीवन से
जब जो मर्जी है वह करना है
ऐसा थोड़े न चलता है
इसको काटो
इसको मारों
इसको हटाओं
इसको खाओ
न दिन देखना
न रात
जो रास्ते में आए
सबको उडा दो
गारे और सींमेट से अपना आशियाना बनाओ
बस खुदगर्ज रहो
हमें किसी से क्या लेना देना
कुदरत खुदगर्ज नहीं
वह सजा देती ही है
वह भी ऐसी कि
सांस लेना भी भारी
रक्षण करती है 
पर कब तक
यह तो सोचना इंसान को
यह करोना नहीं
कुदरत का ईशारा है

Monday, 6 June 2022

वट वृक्ष की महिमा


विश्व पर्यावरण दिवस 
वट वृक्ष की महिमा 
वट पूर्णिमा के दिन स्त्रियां इसकी पूजा करती है
फेरे लेती है
पति की मंगल कामना करती है
उनकी लंबी आयु का वरदान मांगती है
सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ी है यह पूजा
देखा जाय तो यह सही मायनों में पर्यावरण दिवस ही है
जहाँ पेड की पूजा और परिक्रमा की जाती है
वह भी बरगद का पेड़
जो कोई फल नहीं देता
लेकिन ऑक्सीजन भरपूर देता है
पेड़ सलामत रहेंगे
तभी तो जग सलामत है
संयोग है आज यह एक साथ आए हैं
पेड़ मानों कह रहा हो
   मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा
   इस धागे को याद रखूगा
  पति क्या पूरे परिवार की रक्षा करूँगा
   अपनी सामर्थ्य भर प्यार लुटाऊगा
   तुम निश्चिंत रहना बहना
   तुम्हारे इस धागे का कर्ज हर पल चुकाऊगा
    मैं खडा हूँ इस तरह
    यह भी तो एहसान है
    जब तुमने मुझे जीवन दिया है
     तब तुमको भी तो जीने के लिए 
     प्राणवायु दूंगा

एक माँ की फरियाद

आज तूने मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया
घर से बाहर निकाल दिया
वह घर जो मैंने बडे प्रेम से बनाया था
तुम लोगों को पाला और पोसा था
तुम्हारी शैतानिया को नजरअंदाज करती थी
तुम्हारी अठखेलियो को निहारती थी
तुम्हारी हर इच्छा पूरी करती थी
मनभावन भोजन खिलाती थी
थोड़ी देर न देखने पर बेचैन हो जाती थी
मन में गुस्सा आता था
तुझे देख सब भूल जाती थी
सारा गुस्सा छू मंतर
तुझे मारती या डाटती
उस दिन स्वयं रोती थी
अब ऐसा क्या हो गया
तू इतना बदल गया
रह पाएंगा मेरे बिन
जो मां तेरी जान होती थी
मेरा क्या है
कितनी जान बची है
गुजर ही जाएंगी
सडक किनारे या वृद्धाश्रम में
पर तू क्या चैन से सो पाएंगा
तेरा मन नहीं कचोटेगा
तू जैसा भी है मेरा बेटा है
जिगर का टुकड़ा है
तेरे बारे में बुरा कैसे सोच सकती हूँ
तू कुछ भी करें
तब भी दुआ ही निकलेगी
बददुआ नहीं
माँ हूँ न
तुझे दुखी नहीं देख सकती
ईश्वर तुझे हमेशा सुखी रखे
फलें फूले और आगे बढें
यही बहुत है मेरे लिए

Sunday, 5 June 2022

विश्व पर्यावरण दिवस

हरी - भरी वसुंधरा 
हरा - भरा चमन
सुजलाम सुफलाम धरती
स्वच्छ नीला आसमान 
स्वस्थ धरती 
ऊंचे पर्वत 
लहराती नदी
झिलमिलाते तारे
झूमते पेड़ 
न जाने कितने तरह के फूल - फल
औषधीय गुणों से भरपूर जंगल
जंगलीय जीव
इन सबकी उपस्थिति से सबका जीवन बनता है सुंदर 
सुखद और सुकून भरा
तब इनकी रक्षा और सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हम पर
वे तो बस देते हैं 
चुपचाप रहकर 
सब कुछ सहकर
कब तक यह बुद्धिजीवी प्राणी उनका शोषण करेगा 
कब तक दुहता रहेगा 
अभी भी समय है सचेत जाएं 
ऐसा न हो सब साथ छोड़ दे
तब तो सांस भी साथ छोड़ देगी 
जीवन भी खत्म 
अगर जीना है तो सबको साथ लेकर
सबका साथ तभी मानव तुम्हारा विकास
इनको बचाएँ रखने का प्रयास 
तभी आपकी पूरी होगी सब आस

ओ मेरी प्यारी सेवपुरी

ओ मेरी प्यारी सेवपूरी
तेरे बिन सब अधूरी
तेरी वह खट्टी मीठी चटनी
ऊपर से एक एक्स्ट्रा पुरी
उसके बाद  सेव मुरमुरा
सी सी करना
पर पानी नहीं पीना
कुछ समय तो जीभ पर स्वाद रहे
संझा होते ही गैलरी से ऑखे सडक पर
भेल वाले भैया की बाट जोहते
जैसे ही दिखा
बांछे खिल जाती
लगता जन्नत मिल गई
पैसे बचाकर रखते 
दिन भर की कमाई
तब दस रूपये
वह भी भारी
दो दिन के बाद नंबर आता
छुपते छुपाते जाती
पहले भाई बहनों से
अब अपने ही बच्चों से
क्योंकि उतने पैसे नहीं होते
खाकर जब धीरे से घर में कदम रखती
तब पापा बाबूजी हंसकर बोलते
पहली बार ऐसी माँ को देखा
जो बच्चों से छुपाकर खाती है
माँ तो मुख का निवाला भी बच्चों को दे देते हैं
हंसकर कहती 
निवाला दे दूंगी
पर सेवपूरी और भेलपुरी नहीं
इन लोगों ने तो बना दिया था
मुझे चटोरी
समय गुजरा
उम्र बढी
पेट का अपना अलग दुखडा
आज पैसा भी है
पर वह बात नहीं
जी मचलता है
पन्द्रह दिन या महीने में फिर खा लेते हैं
अब भी छुपकर
तब पैसे के अभाव में
अब स्वास्थ्य ,डाक्टर और घरवालों के डर से
चाहे जो भी हो
तू मुझसे है हमेशा जुड़ी
आज तेरी याद आई बडी
जज्बातो को लिख उठी
ओ मेरी प्यारी सेवपूरी
तेरे बिना सब अधूरी

दिल जो चाहे

जो दिल करता है वह करों
कुछ भी संकोच मत करो
हंसना चाहता है
जी भर कर हंस लो
अकेले में या लोगों के संग
क्या फर्क पडता है
रोना चाहते हो 
जी भर कर रो लो
अकेले में या किसी के सामने
या तकिए के आगोश में
क्या फर्क पड़ता है
गुस्सा आता है आने दो
आएगा तूफान की तरह
फिर शांत हो जाएंगा
कुछ तोड़ फोड़ हो जाएं
मन को सुकून मिल जाएंगा
थोड़ा नुकसान ही सही
दिल की भडास तो निकल जाएंगी
जब किसी को ठेस नहीं पहुंचा
तो क्या फर्क पडता है
जब जवाब देना हो
तब दे दो
दबो नहीं
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा
नाराज हो जाएंगे
स्वयं के मन से मलाल तो गायब हो जाएंगा
कोई बोले या न बोले
क्या फर्क पड़ता है
कोई हमारा खर्चा तो नहीं चलाता
जहाँ ना कहना है
वहाँ ना कहो
मन मारकर जबरदस्ती हाॅ नहीं करना है
विरोध करना है विरोध करो
किसी की हर बात में हाॅ में हाॅ नहीं मिलाना है
न दबना है
न सहना है
न गलत को बर्दाश्त करना है
न जी हुजूरी करनी है
अपनी मर्जी से जीना है
कोई रूठे अपनी बला से
क्या फर्क पड़ता है

Saturday, 4 June 2022

वह पाठशाला के स्मरणीय दिन

किसी छात्रा ने मुझसे पूछा
मिस क्या आप भी स्कूल में मस्ती करते थे
क्या आपको भी पनिशमेंट मिलता था
उसकी यह बात सुन चेहरे पर एक चमक छा गई
मन उस दौर में ले गया जब हम पाठशाला जाते थे
सोचा क्या बताऊँ बच्चे हम भी तो एक समय तुम्हारी ही उम्र के थे
वह बालपन था भोलाभाला  और बेपरवाह
नहीं पता था वह स्वर्णिम दिन फिर न लौटेगा 
बेस्ट की बसो पर चढने से लेकर वापस लौटने तक हम न जाने क्या - क्या करता थे
बिन कारण हंसना - खिलखिलाना 
च्यूगम चबाना
बेंच में बैठने के लिए लडना
खाना खाने एक साथ बैठना और दूसरे का भी चटखारे लेकर खाना
अपनी ही दोस्त की शिकायत करना 
कक्षा में कभी बेंच पर तो कभी बाहर खडे रहना
होमवर्क न होने पर जल्दी जल्दी दूसरों की काॅपी लेकर नकल करना
डायरी पर पैरेन्टस की बनावटी सिग्नेचर करना
झूठ बोलने और बहाना बनाने में तो माहिर
वाशरूम जाने का बहाना कर सारे स्कूल का चक्कर लगाना
गृहकार्य नहीं किया तो सर झुकाएं छुपकर बैठना
कभी मुर्गा बनना तो कभी हाथ पर डंडा खाना
परीक्षा में एक - दो रिक्त स्थान को पूछना
इशारे करना और उत्तर पूछना 
कभी-कभी नकल भी कर लेना
काॅपी में टीचर का कार्टून बनाना
अलग - अलग नाम का संबोधन
कभी-कभी अपनी गलती दूसरे पर डालना
बारिश में भीगना , कीचड़ में पत्थर फेकना
खेलने की धुन में  सब भूल जाना
स्कूल का टाइम याद न रहना न समय पर तैयार होना
सुबह उठने में परेशानी 
लेट होने पर बस न आने का बहाना
शाम स्कूल छूटने पर धक्मधुक्की 
बस में भी धमा-चौकड़ी 
कंडक्टर और ड्राइवर के साथ यात्री भी परेशान 
क्या यही टीचर ने सिखाया है की उलाहना
आइस्क्रीम  , कच्ची कैरी , बेर ,गोला सब ठेले वाले से ले चटखारे ले खाना
जूता साफ नहीं तो चाक से घीसना
होली आने के पहले ही स्याही से खेलना
ऐसे न जाने कितने 
अब तो हंसी भी आती है
मन बचपन में जब जाता है 
तब उससे जुड़े सब याद आ जाते हैं 
प्रधानाचार्य,  शिक्षक , चपरासी अंकल , कैंटीन के भेल वाले और बडा पाव वाले भैया , गेटकीपर , सब दोस्त , वह बस स्टाप,  स्कूल का मैदान 
सब अंकित है इस मन पर 
बस आज याद ताजा हो गई। 

प्रीति की रीति

प्रीत की रीति निराली 
है सबसे प्यारी
प्रीति करें जो वहीं प्रीति की रीति भी जाने
जीना - मरना प्रीति की खातिर 
प्रीति ही जीवन
प्रीति ही हर सांस 
बिना इसके जीवन में  भर जाती निराशा 
अगर प्रीति न होती 
तब ताजमहल न होता
हीर - रांझा और शीरीं- फरहाद  न होते
चट्टान काटकर रास्ता बनाने वाले मांझी न होते
प्रीति बिना तो जीवन बेरंग - बेरस  होता 
मोहब्बत की निशानिया न होती
लैला - मंजनू भी न होते

हर मन में प्रीति समाई
हर जगह राधा - कृष्ण 
प्रीति से ही तो दुनिया है
कहने को तो यह शब्द अधूरा
लेकिन इसके बिना न जीवन पूरा 

उपहार

उपहार क्या मिला
यह मत पूछो 
उपहार तो उपहार होता है
वह तो अमूल्य होता है
उपहार की कीमत मत ऑको 
भावना को देखो
अमीरी - गरीबी का मुलम्मा मत चढाओ
जो भी मिला है
उसे जी भर कर निहारो और अपनाओ
यह तो आपके किसी शुभचिंतक की भेंट हैं 
उसकी शुभकामनाएं लो
जी भर कर आशीष लो

Friday, 3 June 2022

चांद कितना दूर

चांद इतना दूर
फिर भी लगता पास है
वह अपना लगता है
लगता जैसे बतियाता है
अपनी शीतल चांदनी देता है
तारों के खेल दिखाता है
कहते हैं उसमें दाग है
वह तो हममें भी है
कोई भी तो पूर्ण नहीं
कमजोरियाँ और दोष सभी में
इसके साथ भी तो चांद को पूजा जाता है
उससे सुहागिने करवा चौथ के दिन दुआ मांगती है
बच्चों को उसमें मामा दिखाई देता है
अपना प्यारा चंदा मामा

सूरज तो बहुत पास है
फिर भी लगता दूर है
उसका इतना तेज कि
ऑखे भी उठाकर कुछ देर नहीं देख सकते 
पूर्ण प्रकाश से भरपूर
उर्जावान
कोई कमी नहीं
सबको प्रकाश के साथ जीवन भी देता
फिर भी वह करीबी नहीं लगता
मन में शीतलता नहीं आती
डर लगता है

यही बात तो रिश्तों में भी है
कुछ रिश्ते बहुत संपन्न 
बहुत बडे , बहुत नामचीन
बहुत इज्जतदार
पर उनका हमें क्या फायदा
वह कहने के लिए रिश्ते
उससे करीब महसूस किया जाता
कुछ अजनबियों से
कुछ बिना नाम वाले रिश्तों से
जहाँ विश्वास होता है
ये कुछ न कुछ हमारे लिए जरूर करेंगे
कुछ नहीं तो हमारे मन की बात सुनेंगे
हमें समझेंगे
अपनी हैसियत से हमारी तुलना नहीं करेंगे
वह सूर्य भले हो चमकता
पर हमारे किस काम का

सोचो तो जरा

मैं चलता रहा
चला तो अकेले ही था
कारवां जुड़ता गया
लक्ष्य और मजबूत बनता रहा
मंजिल करीब आती गई
आखिरकार प्राप्त भी हो गई 
मुझे नाम मिला सम्मान मिला
यह क्या केवल मेरी उपलब्धि थी
अकेले की
शायद नहीं 
उन सब की
जिन्होंने मुझे सहयोग किया
मेरे साथ चले
कठिन घडी में साथ निभाया
एक का तो नाम उसके पीछे न जाने कितने हाथ
सबका आशीष
ईश्वर की कृपा
भाग्य की देन 
सब साथ चलते हैं 
नहीं तो इस संसार में बहुतेरे लोग हैं 
जो गुणों की खान है
लेकिन न उनको कोई जानता न पहचानता
एक बात कभी न भूलने चाहिए 
अकेले तो कुछ भी नहीं होता
लगता भले हैं 
पर सोचो तो जरा
तब समझ आ जाएंगा ।

के के को श्रद्धांजलि

मौत कैसे आएगी यह कोई नहीं जानता
अचानक आती है
असमय आती है
दबे पाँव आती है
सबको अचम्भित कर जाती है
कौन जानता था
जो शख्स खडा होकर गा रहा है
लोगों का मनोरंजन कर रहा है
भीड़ उसे सुनने को जुटी है
वही कुछ पल बाद उन्हें छोड़ जाएंगा
किसी ने कल्पना भी न की होगी
होनी को लेकिन कौन टाल सकता है
गाते - गाते के के चले गए 
लोगों को रोते - रोते
जो भी उस दिन वहाँ मौजूद होगा
उस मंजर को भूलना आसान नहीं होगा
जीवन की अनिश्चितता समझ में आ गई होगी
इस गायक को सादर पूर्वक श्रद्धांजलि 
परिवार को सहनशक्ति दे 
    कल हो न हो पर के के हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगे। 

Wednesday, 1 June 2022

दर्द ही दर्द

मन में दर्द 
तन में दर्द 
दर्द ही दर्द 
दर्द के साथ जीवन
नहीं होता आसान 
कभी ऑपरेशन कभी दवाई
कभी चिंतन- मनन ,कभी ध्यान- धर्म 
करने की दी जाती सलाह
ये तो दर्द निवारक है
कुछ क्षण के लिए आराम
फिर वैसे का वैसा 
कब तक जीए दर्द में 
अब तो जी गया है ऊब
बस हर समय निकलती है ऊफ ऊफ
कब होगा छुटकारा इससे
यही सोचते- सोचते बीता जाता जीवन

वह तो है माँ

वह रहती हर दम साथ - साथ
सुख - दुख में निभाती साथ
हंसती - रोती साथ 
मन में भी बाहर भी
हर जगह साथ - साथ
उसका साथ तो नहीं किसी की आस
सब पर वह रहती भारी
मुझे कुछ सोचने की नहीं जरूरत 
वह है तो बस है
सब कुछ सोच उस पर डाल मैं निश्चिंत 
वह मेरा बैंक बेलेंस 
जो चाहिए तब उससे ले लूँ 
वह पैसा हो प्यार हो
सम्मान हो अभिमान हो
वह सब लुटाती 
तब भी उसकी झोली रहती भरी - भरी
सोच लो मनन कर लो
तब भी न जानो तो
सुन लो 
वह है माँ बस माँ 

बाप मजबूर है

बाप मजबूर है
ऐसा नहीं कि उसे कुछ कमी है
धन - दौलत , संपत्ति सब कुछ तो है
सरकारी नौकरी , नाम और ओहदा भी है
भगवान की दया से सब कुछ है
बाल - बच्चे  , सुशील पत्नी , नाते - रिश्तेदार 
वह बहुत मजबूत है
फिर भी मजबूर है
कारण वह एक बेटी का बाप है
वह भी हिंदुस्तान की 
जहाँ पग - पग पर धोखा और फरेब का डर हो
किसके हाथ में दे अपनी बेटी का हाथ
किसके ऊपर विश्वास करें 
किसको सौंपे उसका जीवन
यह सोच - सोच कर हो रही उसकी नींद हराम
आए दिन अन वांछित घटनाएं 
जिसे पढ और सुन मन कांप उठता है
ईश्वर न करें 
कभी यह हमारे साथ हो
वह रहता हरदम डरा और घबराया 
सबके सामने सिर झुका रहना
क्योंकि वह बेटी का बाप है
तभी तो मजबूर है ।