Monday, 31 July 2023

नारी - पुरुष

मुझे सुरक्षा की गारंटी चाहिए 
मुझे समान अधिकार नहीं चाहिए 
मुझे स्वतन्त्रता चाहिए 
घूमने - फिरने की आजादी चाहिए 
कपडे पहनने की आजादी चाहिए 
तुम मालिक बने रहो 
सब निर्णय लो 
मुझे कोई फर्क नहीं पडता
मैं महफूज रहूँ 
कोई गंदी नजर न डाले
तुम पुरूष हो तो आजाद हो
मैं नारी हूँ तो गुलाम हूँ 
ऐसा क्यों है 
हम भी मनुष्य है
हमारे ऊपर तमाम तरह की पाबंदी क्यों 
वह भी पुरूष जाति की थोपी हुई
तुम क्यों नहीं 
अपने जैसे जीने दे सकते हो
तुम्हारे कारण ही हम नारियां असुरक्षित महसूस करती है
घर से बाहर निकलने में डरती है
मनमुताबिक कपडे पहनने से डरती है
अकेले घूमने से डरती है
कब बदलोगे अपनी सोच
कहने को तो नर - नारी एक ही गाडी के दो पहिये 
होता वैसा है नहीं 
इसका जिम्मेदार केवल तुम्हारी सोच 

रूपये का मूल्य

आज टैक्सी पकड़ी 
गंतव्य पर पहुंचकर किराया दिया तो सौ रूपये 
छियान्वे हो रहे थे
टैक्सी वाले ने कहा 
छुट्टे नहीं है 
देर हो रही थी तो सोचा जाने दू 
फिर मन ने कहा 
नहीं,  यह लोग ऐसे ही करते हैं 
व्यक्ति की मजबूरी का फायदा उठाते हैं 
स्मृति में कुछ कौंध गया
हम बेस्ट की बस से स्कूल जाते थे
उस समय किराया पांच पैसे थे
जेब में से वह कहीं गिर गया था
कितना रोईं थी फिर चलकर घर पहुँची थी
बात रूपये की नहीं हिसाब-किताब की थी
अभी कुछ दिन पहले खबर आई थी कि एक नामी जूते की कंपनी पर किसी ने केस कर दिया था कि 999 का सामान 
एक रूपया वापस नहीं मिलता था
देखा जाएं तो एक एक रूपया छोडा जाएं तो हमारे देश में एक सौ तीस करोड़ का मुनाफा फ्री में 
पैसे हैं इसलिए पैसे का वैल्यू न करो 
यह सही नहीं है
हर रूपये का महत्व है
कहावत हैं न कि
कुएँ में डालना हो तब भी पैसा गिन कर डालें 
लक्ष्मी चलायमान है 
उनका सम्मान करना ही होगा 
नहीं तो अर्श से फर्श तक आने में देर नहीं लगती
एक - एक पैसे के लिए मोहताज हो जाता है व्यक्ति। 

शादी कब करोंगे ?

वह न विधवा है
वह न विवाहिता है
न वह परित्यक्ता है
वह एक नारी है
बिनब्याही
उस समाज की 
जहाँ विवाह ही सब कुछ है
बिनब्याही को कोई तवज्जों नहीं देता 
यह उसकी मर्जी है
उसके जीवन का निर्णय है
लेकिन किसी को इससे मतलब नहीं 
यह हाल औरतों का ही नहीं पुरूषों का भी है
यह हमारा भारतीय समाज 
जहाँ सब कुछ जाकर विवाह पर ही खत्म होता है
ब्याह हुआ मानों गंगा नहा लिए
आप कितने भी बडे बन जाओ
उन्नति कर लो
लेकिन एक प्रश्न पीछा नहीं छोड़ता 
शादी कब करोंगे  

खाना ???

मन की गति मन ही जाने
कभी-कभी रूखी  रोटी में भी स्वाद 
कभी-कभी लाजवाब पकवान भी फीके
एक समय ऐसा भी आता
जब किसी में स्वाद नहीं आता 
बस शरीर की जरूरत 
पहले खाने के लिए जीते
अब जीने के लिए खाओ
दाल - रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ 

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद यह नाम से तो सब ही वाकिफ होंगे 
साहित्य में रूचि रखने वाले अंजान नहीं 
कफन हो निर्मला हो बडे भाई साहब हो या ईदगाह हो
जहाँ जीते जी नया कपडा नसीब नहीं वहाँ मरने पर नया कफन उढाया जाता है
जहाँ जीते जी पेट भर अच्छा खाना मयस्सर नहीं 
उसी के नाम पर तेरहवीं का भोज कराया जाता है और लोग छक कर खाते भी हैं 
लमही गाँव का मास्टर उपन्यास सम्राट ऐसे ही नहीं बना
उन्होंने अपने युग को जीया है 
उनके पात्र समाज का प्रतिनिधित्व करते है
घीसु और माधव , बुधिया आज भी समाज में मौजूद हैं 
विकास भले हुआ हो तब भी
सवा सेर गेहूं    में साहूकार के कर्ज से लदा हुआ जिसमें उसकी अगली पीढ़ी भी कर्ज चुकाएगी 
उन्होंने केवल कहानियां लिखी नहीं अपने जीवन में भी उतारा
विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया
हर त्रासदी को उन्होंने झेला था या बहुत नजदीक से देखा था
वह फिर गरीबी हो या और कुछ 
उनके पात्र हममें से कोई लगता है
वे समुद्र किनारे आलीशान फ्लैट में बैठकर रचना करने वाले रचयिता नहीं 
ढिबरी के प्रकाश में बैठकर रचना करने वाले 
गाँव- देहात में रहने वाले
गोदान  को पढ लो तो हर ग्रामीण की पीडा समझ आ जाएंगी 
जीवन का सब संचित गोदान में उतार दिया है
तब वह शहर की तरफ पलायन हो
बेमेल विवाह हो
अपने  उम्र के व्यक्ति से मजबूरी में बेटी का विवाह करने पर होरी का धनिया को कहना 
मर्द तो साठे पर पाठे  होते हैं 
अगर भारत को पढना हो तो मुंशी प्रेमचंद को पढ लीजिए। 

मदिरा और मोबाइल

मदिरा और मोबाइल 
डूब गया इसमें जमाना 
एक बार इन दोनों का हो जाएं नशा
फिर तो छुड़ाए नहीं छूटता
मदिरालय सबको एक करता है
मोबाइल भी सबको एक प्लेटफार्म पर ला खड़ा कर दिया 
जब तक  चखा नहीं शराब तब तक मन लालायित 
मोबाइल जब तक चलाना नहीं जाना तब तक उत्सुक 
जब एक बार मुंह को लग जाएं शराब 
जब एक बार हाथ में आ जाएं मोबाइल 
सारे जहां को भूल जाते सब
न जाने इनके चक्कर में कितने बर्बाद 
रमी खेलते - खेलते भारत - पाकिस्तान के मन मिल जाते
सचिन से मिलने सीमा हैदर आ दमकती
सोशल मीडिया की सुर्खियाँ बटोरती 
शराब पीकर गिरते पडते 
सेल्फी लेते समय गिरते 
दोनों ही जानलेवा 
न बोतल छूट रही न मोबाईल छूट रहा
न जाने कितनों का सर्वनाश हो रहा
सरकार भी क्या करें 
न शराब पर अंकुश न मोबाईल पर
एक रेवन्यु देती है दूसरी तो प्रचार करती है
सोशल मीडिया पर प्रचार और हाथ में दारू की बोतल
बस फिर क्या
सरकार बन गई 
मांस,  मदिरा और रूपया
तब क्यों न कोई जीते भैया 

कनक कनक ते मादकता सौ गुनी अधिकाए 
या खाएं बौराए जग वा पाएं बौराए 

मदिरा पीकर पागल 
मोबाइल पाकर पागल
दोउ मिल दूर करें 
अपने और अपनों से 
न जाने यह नशा मानव को कहाँ ले जाकर खड़ा कर दैगा

Saturday, 29 July 2023

हल्के में मत लो

ऑसू का कोई वजन नहीं होता
फिर भी वह किसी को भी डिगा सकती है
पानी का कोई वजन नहीं होता
फिर भी वह बडे से बडे चट्टान के भी टुकड़े कर डालती है
हवा का कोई वजन नहीं होता
फिर भी यह बडे से बडा विध्वंस कर सकती है
किसी को हल्के में मत लीजिए 
पता नहीं वह कब भारी हो जाएं 
सृष्टि का हर कण अपने में बहुत शक्तिशाली है

विवाह

बचपन में खिलौने से खेलते थे 
गुड्डे-गुड़िया की शादी रचाते थे
बारात निकालते थे 
घराती  - बराती बनते थे
मिठाई  - नमकीन बांटकर खाते थे
तब यह कितना मजेदार लगता था
बडे होने पर पता चला
शादी - ब्याह गुड्डे-गुड़िया का खेल नहीं 
इसे चलाना पडता है 
निभाना पडता है
मशक्कत करनी पडती है गृहस्थी चलाने में 
परिवार  , बच्चे और न जाने कितनी जिम्मेदारी 
यह एक खेल नहीं संस्था है
सामाजिक और भावनिक सुरक्षा है
एक भविष्य तैयार करना
समाज और व्यक्ति निर्माण करना
सब इससे जुड़ी है
इसे इतना आसानी से नहीं लेना है
अगर मानसिक रूप से तैयार हो
अगर सक्षम हो 
तब ही स्वीकार करें 
अन्यथा स्वतंत्र रहे ।

Friday, 28 July 2023

दिल

दिल तो दिल है 
बडा नाजुक है यह 
टूटने न दे अन्यथा जिंदगी रूठ जाएंगी 
इसे सहेजे रखे
दिल है तो सब है

अपनी मिट्टी से जुड़ी तो हूँ

ओस की बूंद थी वह 
गिरी किसी कली पर 
कोमल,  नाजुक 
जैसे ही सूर्य की किरणें पडी
वह सुनहरे रथ पर सवार आसमां को चली
ईष्या हुई उसके भाग्य पर 
कली , लगी सोचने
जीवन इसका मुझसे भी कम 
मैं तो आज खिलुगी 
सुंदर सा पुष्प बन बगिया की शोभा बढाऊगी 
लेकिन कल तो मुझे नष्ट होना है
माली आएगा और तोड़ ले जाएगा 
पता नहीं ईश्वर के चरणों में जगह मिलेगी
या किसी के केशों में 
या गुलदस्ते में 
अंत तो कचरे के ढेर में ही
फिर मिट्टी में मिल खाद बनूँगी
उसी मिट्टी से फिर उपजूगी 
नहीं करना मुझे आसमां की सैर
मैं धरती पर ही खुश हूँ 
अपनी मिट्टी से जुड़ी तो हूँ  ।

जीवनदायिनी, विनाशिनी भी कभी-कभी

जीवन को जल चाहिए था
जिंदा रहने के लिए 
जल तो मिला 
खुशियों की रिमझिम बरसात हुई 
कब उसने अलग रूप ले लिया 
पता ही न चला
हमें लगा अमृत बरस रहा है
इसने तो जहर का रूप ले लिया 
सब तहस नहस कर डाला
कब रिमझिम से तडकती फडकती जानलेवा बिजली में परिवर्तित 
तूफानी रूप से बाढ आ गई 
लगा सब बहा ले जाएंगी 
अपने साथ विनाश लेकर आई
पता नहीं किन किनको बहा डाला
कितने घर उजाड़ दिए 
कितनी जिंदगियां तबाह कर दी
बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया
अब सब जगह कीचड़ ही कीचड़ 
जीवनदायिनी,  विनाशिनी बन गई
मोह तब भी छूटा नहीं 
यही तो मजबूरी है
जी नहीं सकते इसकी कृपा बिना
कृपा बरसाए यह उसकी मेहरबानी 
जरा प्रेम से सावधानी से
जितनी जरूरत है उससे ज्यादा नहीं 
ज्यादा से तो गमले का पौधा भी सड जाएंगा 
इंसान की बिसात कहाँ 
वह तो सबसे लाचार
प्रकृति की अनुकम्पा पर 

मांझी

बस बहुत हो गया 
हम थक गए हिचकोले खाते खाते
अब तो पार लगा दे मांझी
नैया तो कब से फंसी मझधार में 
हम तो खेते रहे 
किनारे जाने की कोशिश करते रहे 
बहुत हो गई देर अब 
अब न आशा न रही
न शक्ति रही
निराशा का अंधकार छाया हुआ 
कब और कैसे मिले किनारा ।

मुंबई की बरसात

बरसात ने किया क्या सितम 
बरसा तो ऐसे बरसा
सबको घर में  कर दिया कैद
राह देखते देखते देर हो गई 
आई तो राह ही बंद हो गई
घर में बैठ चाय - पकौडा खाओ
सोफे पर पसर समाचार देखते जाओ ।

Thursday, 27 July 2023

मौन

मौन की भी एक सीमा होती है
कब तक मौन रहोगे
लोग तो सवाल पूछेगे 
जवाब भी चाहेंगे 
इतिहास भी दोषी मानेगा 
आने वाली नस्लें भी
जब भी अन्याय या अत्याचार होता है
कुछ मुक दर्शक बन जाते हैं 
हमें क्या लेना - देना
समाज में रहना है
परिवार में रहना है
देश में रहना है
विश्व में रहना है
व्यक्ति बन कर रहना है
तब तो मौन से काम नहीं चलने वाला
बोलना तो पडेगा 
और किसी को नहीं तो
ईश्वर को
अपनी आत्मा को 

Monday, 24 July 2023

गुरु बिना ज्ञान कहाँ

गुरू बिना ज्ञान  कहाँ??
हर उस गुरू पर गुरूर 
जिससे हमने सीखा
सीखना असीमित है
गुरू की भी कोई सीमा नहीं 
बचपन से गिरते - पडते
पाठशाला की दहलीज पार करते
जीवनयात्रा में आज तक न जाने कितने गुरू
सभी को नमन 
तहे दिल से शुक्रिया 
तुम न होते तो जो आज हम हैं 
वह हम न होते
जैसे भी सिखाया हो
जाने में 
अंजाने में 
प्यार से
अपनेपन से
डांट से क्रोध से
उपेक्षा से भी
हमने तो सीखा 
आज भी सीख ही रहे हैं 
उम्र कोई मायने नहीं रखती 
एक बच्चा और युवा भी सिखा जाता है
और जो सही है
जायज है
उसे सीखने और अपनाने में गुरेज क्यों  
हमें तो सीखना है
स्वयं को Update रखना है
हमारे जीवन में सहभागी होने के लिए 
आप को शायद हम याद रहें या न रहें 
पर आप हमारे दिल में हैं 
दिमाग में हैं 
     धन्यवाद और शुक्रिया

पिता का घर

एक घर पिता का होता है
जहाँ अपनापन और अधिकार होता है
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम मेहमान सरीखे होते हैं 
कुछ भी छूने से डर लगता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम जिद करते हैं 
अपनी बात मनवा कर ही छोड़ते हैं 
खाने में ना - नुकुर करते हैं 
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम समझदार हो जाते हैं 
जो मिला वह खा लेते हैं 
ना - नुकुर की कौन कहे 
रसोई में जाने पर भी डर लगता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम जब चाहे आ - जा सकते हैं 
विचरण कर सकते हैं 
परमीशन की जरूरत नहीं 
एक घर भाई का होता है
जहाँ सोचना पडता है 
मौका और वक्त  देखना पडता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम राजकुमारी होते है
राजदुलारी  होते हैं 
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम सिर्फ उस घर की बेटी होते हैं 
नाज - नखरे नहीं कर सकते
उसे उठाने वाला कोई नहीं 
हर भाई पिता समान नहीं हो सकता

पिता तो पिता ही होता है
उसकी जगह कोई नहीं ले सकता 
न किसी का दिल इतना बडा होता है
अपना सर्वस्व लुटाकर भी हमारे चेहरे पर मुस्कान हो 
यह तो पिता ही कर सकता है।

सबसे प्यारा

इतने बडे जहां में तू हैं एक आधार 
सबसे प्यारा सबसे न्यारा 
माता-पिता की ऑखों का तारा
हंसता रहे खिलखिलाता रहे
ऐसा लगता जग हमारी बाहों में
तुझे देख हम वारे  वारे जाएं 
तू झूले हमारी बाहों का झूला 
धरती- अंबर का मिलन 
उनके बीच में हमारा प्यार  - दुलार 
बगिया हमारी खुशबू से दमकती रहें 
खुशी से महकती रहे 

Sunday, 23 July 2023

भारतमाता के लाल

एक हम ही है भारतवासी 
जो अपने देश को भारत माता की संज्ञा देते हैं 
नदी को भी माता कहते हैं 
शक्ति की उपासना करते हैं 
बेटी को देवी का स्वरूप मानते हैं 
सीताराम , राधेश्याम और गौरी शंकर 
पत्नी का नाम पहले लगाते हैं 
लक्ष्मी , सरस्वती को धन और विद्या की देवी मानते हैं 

उसी भारत में  सीता हरण भी होता है
द्रौपदी को निर्वस्र करने का प्रयास किया जाता है
अहिल्या को शिला बना दिया जाता है

लक्ष्मी बाई , इंदिरा गांधी इसी भारत माता की संतान
तब भी न जाने कितने निर्भया कांड होते रहते हैं 
सामुहिक बलात्कार,  जलाना , टुकड़े- टुकड़े करना
हमेशा नारी ही टारगेट होती है
चाहे युद्ध हो 
आपस के द्वंद हो
धार्मिक उन्माद हो
यहाँ तक कि छोटी छोटी बात में गाली गलौज में 
माँ,  बहन , बेटी को बख्शा नहीं जाता है
फिर हम अपनी सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देते नहीं थकते
अपने आप को विश्व गुरु मानते हैं 
लानत है 

वह कोमल पौधा

वह भी  कोमल पौधा हुआ करता था
एक दिन इस पौधे ने वृक्ष का रूप धारण कर लिया
नया - नया दिखने में सुंदर 
हरा- भरा , कोमल नरम पत्तियां 
शाखें भी लचीली , झूलती हुई
जो देखता उसे ही भा जाता
फल - फूल भी आने शुरू हो गए 
अब तो लगे पत्थर पडने
कोई पत्थर मारता 
कोई डाली को तोडता
कोई तने को खरोचता 
न जाने कितने अंधड चले
पेड़ पर खंजर चले
सब कुछ सहता रहा
सबको उसकी जरूरत के अनुसार देता रहा
आज वह बूढ़ा गया है
पतझड़ का समय है
वसंत के समय भी अब लदा- फदा नहीं रहता
जड भी कमजोर हो रही है
खुरच खुरच कर 
काट छाट कर न जाने कितने घाव लिए खडा 
तब भी वह हारा नहीं 
हर जुल्म सहता रहा
आज तो हद हो गई 
कुछ लोग औजार लेकर आ गए हैं 
वह किसी रास्ते का रोडा बन रहा था
उसे हटा देना है 
वहाँ विकास की इमारत बनेंगी
वह शायद घर के फर्नीचर की शोभा बढाएगा। 

मणिपुर के आततायी

द्वापर में  द्रौपदी निर्वस्र नहीं हुई थी
हाॅ युद्ध उसी समय निश्चित हो गया था
नारी का अपमान,  विनाश की शुरुआत 
जब महारानी का यह हाल
तब सामान्य नारियों की क्या बिसात 
द्रौपदी ने केश खुले रखे 
रक्त पान और रक्त से धोने की प्रतिज्ञा 
दुश्शासन की जंघा चीरना 
ताउम्र उस अपमान की आग में जलती रही

वह तो महलों की रानी थी
यहाँ यह औरतें क्या करेंगी
यही समाज होगा 
जो कहेगा 
यही हैं वे जिनके साथ ऐसा हुआ था
उनका जीना दुश्वार हो जाएंगा
 जब सीता पर प्रश्न चिन्ह उठा सकता है यह समाज 
तब यह सामान्य औरतें 

अभी नहीं मरी तो 
बाद में  मर जाएंगी 
जीते जी मरी रह जाएंगी 
परिवार भी तबाह

एक लडकी  पढती है
तो पूरा परिवार शिक्षित होता है
एक महिला का अपमान 
पूरा परिवार अपमानित 
एक - दो पीढियों तक यह बात चलेगी 

वर्तमान तो खराब हुआ है
भविष्य भी खराब 
उनका बदला कौन लेगा
न यह द्रौपदी है
न यह द्वापर युग है

न्याय कानून को करना है
सरकार को करना है
समाज को करना है
दुश्शासन को दंड भीम ने दिया था
इन आततायियों को कौन देगा ।

जुल्म का अधिकार??

जुल्म किसी पर भी हो
जुल्म,  जुल्म ही है
अन्याय,  अन्याय ही है
वह पुरुष पर हो
नारी पर हो
जाति पर हो
धर्म पर हो
संप्रदाय पर हो
एक ही का पक्षधर??
एक का जुल्म दिखे
उस पर आवाज उठे 
दूसरे का नहीं 
एक के प्रति सहानुभूति 
दूसरे के प्रति नहीं 
तराजू का पलडा बराबर हो
एक की संख्या ज्यादा 
इसलिए वह सहता रहे
बडे भाई की भूमिका अदा करता रहे
वह बेचारी अबला
इसलिए पुरूष उसका जुल्म सहता रहे
वह बेचारा बूढा 
वह बेचारा बच्चा 
वह बेचारा अकेला
वह बेचारा इस जाति का 
वह बेचारा यह बेचारा 
इसलिए जुल्म का अधिकार हमारा ???

मेरा घर

एक घरौंदा हो अपना भी ऐसा
जहाँ सूरज की लालिमा
चंद्रमा की चांदनी 
बरसती रहे 
हरियाली की हर हर हो
पंछियों की चहचहाहट हो
ऊपर खुला नीला आकाश 
नीचे विशाल धरती
इनके मध्य अपना प्यारा सा आशियाना हो 
अपनों का साथ हो
प्यार की भरमार हो
सब साथ साथ खुशियाँ बांटे 
दुख में सब एक-दूसरे का सहारा बने
जो भी हो 
मिल - बाँट कर खाएं 
संतोष और धीरज का वास रहें 
ऐसा अपना एक प्यारा सा परिवार हो 
सुंदर घर , प्यारा सा परिवार 
ऐसी ही इच्छा है बारम्बार। 

Saturday, 22 July 2023

मुफ्त मुफ्त

देश में बेरोजगारी का मारा
विदेश में जय जयकारा 
भुखमरी तो गायब 
मुफ्त का राशन मिलता 
सूट बूट पहनते साहब
दिन भर में चार बार कपड़े बदलते
दस लाख का सूट पहनते
मुखिया अमीर वहाँ जनता कैसे गरीब 
मीडिया मौन , वाहवाही लूटने में लगी
विकास की राह चल पडा है देश
वह तो मुफ्त नहीं मिलेगा

मणिपुर में हुआ तो और भी जगह

सब एक - दूसरे पर दोषारोपण करने में  लगे हैं 
अपनी सफाई देने में लगे हैं 
मणिपुर में हुआ तो क्यों बवाल
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी हुआ है
क्या हुआ क्या नहीं हुआ
जो हो रहा है 
उस पर तो कार्रवाई हो
मैं बडा अपराधी 
तुम छोटा अपराधी
अपराधी तो हुआ ना
फिर मेरे ऊपर ऊंगली मत उठाओ
अरे यहाँ यह सब छोड़ों 
बेटी बचाओ
नारी की अस्मिता की रक्षा करों 
तर्क - वितर्क छोड़ एक्शन लो
एक सौ चालीस करोड़ की दुहाई नहीं चाहिए 
उनकी रक्षा की जिम्मेदारी चाहिए 
फलाने समय यह हुआ
ढिकाने समय यह हुआ 
गढ्ढा किसने किया 
यह सब बाते बेमानी 
मगर मच्छ के ऑसू नहीं बहाना हैं 
न इतिहास में जाना है
वर्तमान को देखो
अपनी जवाबदेही समझो
टेलीविजन पर बैठकर तर्क देकर सही सिद्ध नहीं किया जा सकता
असलियत तो है वह रहेंगी
मणिपुर है भारत के नक्शे में 
वहाँ की जनता भी वोट करती है
चुनाव प्रचार वहाँ भी किया जाता है
उनका रखवाला  कौन ??

नौकरी पेशा की असलियत

हमको लगता था कि 
हम अच्छी नौकरी और पैसा वाले हैं 
हमारे घर काम वाली बाई आती है
गाडी खडी है पार्किग में 
लडकी मेडिकल की पढाई कर रही है
होम लोन अदा कर रहे हैं 
टैक्स भर रहे हैं 

आज बाई से पूछा 
कितना कमा लेती हो
घर खर्च कैसे चलता है
वह बोली
मजे से मेम साब

मैं पांच- छह घरों में काम करती हूँ 
बीस हजार तो कहीं नहीं गया
मेरा मरद की पगार पचीस हजार रूपया
लडका प्राइवेट नौकरी करता है नाइट काॅलेज में पढता है
उसका बीस हजार 
लडकी बारहवीं में है ट्युशन भी करती है 
उसको भी आठ हजार मिल जाता है
फिर हम लोग को तो 
हर त्योहार में साब लोग देते ही हैं 
बोनस , कपडा , मिठाई सब मिलता है
कभी-कभी घर में कुछ बचा हो तब भी मिल जाता है
चलता है 
हम लोग आप जैसा बडे लोग नहीं है पर खाते अच्छा हैं
हफ्ते में हमारे घर दो दिन तो नानवेज रहता ही है

अब मैं हिसाब लगाने लगी
असलियत में बडा कौन
सब मिलकर कमाई हमसे ज्यादा 
टैक्स की देनदारी बनती नहीं 
स्टैण्डर्ड ऑफ लाइफ मेन्टेन की जरूरत नहीं 
ताम झाम और दिखावा नहीं 
यहाँ तो लोन में ही अटके रहे
होम लोन , एज्युकेशन लोन  और न जाने कितने ।


झूठ भी अच्छा है

झूठ बोलना बुरा है
यह भी पूरा सच नहीं है
कभी-कभी सच से ज्यादा झूठ काम देता है
अच्छा लगता है
मन में गलत की भावना नहीं  आती

जब माँ बच्चों से झूठ बोलती है
खाना मांगने पर अपना रखा हुआ दे देती है 
और पानी पीकर खाली पेट सो जाती है
जब पिता झूठ बोलता है 
कोई बात नहीं अभी तो पैसा है पास में ले लो
भले ही वह कर्ज में डूबा हो
जब ससुराल में सब ठीक है ब्याहता बेटी कहती है ताकि माता - पिता को कष्ट न हो
नयी नयी नौकरी पर लगा बेटा माँ के लिए मंहगा सामान लाता है और उसे कम दाम का बताता है 
ताकि माँ को लगे नहीं कि यह मंहगा है
घर खर्च में से कुछ बचाती है और झूठ बोलती है औरत 
पैसे तो बचे ही नहीं 
अपनी बेटे को डाँक्टर को दिखाना है और बाँस से झूठ बोल कर छुट्टी लेनी पडती है

ऐसे न जाने कितने झूठ हम बोलते हैं 
यह झूठ हमारे साथ साथ दूसरों को भी खुशी देती है
तब वह झूठ भी अच्छा है ।

फुटबॉल

फुटबॉल की तरह  जिंदगी 
जिसे देखो लात मारे जा रहा है
कभी यहाँ उछलता 
कभी वहाँ उछलता
कभी ऊपर कभी नीचा
गोल - गोल घूमता 
सबको घुमाता 
घूमते - घूमते एक दिन पिचक जाता 

नदी का असतित्व

नदी हमेशा समुंदर को ताका करती थी
यह इतना बडा इतना विशाल 
मुझे भी ऐसा ही बनना है
इससे मिलना ही है
वह चल पडी मिलने 
मिली तो समुंदर से
मिलकर वह , वह न रही
पता नहीं कहाँ खो गई
उसका असतित्व ही खतम 
मीठा पानी खारा बन गया
अब उसे कोई प्रणाम नहीं करता
उसमें कोई स्नान नहीं करता 
उसका पानी कोई नहीं पीता
अंजुरी में जल लेकर आचमन नहीं करता 
क्या थी और क्या हो गई
बडे बनने की लालसा में स्वयं ही खतम हो गई। 

Friday, 21 July 2023

कडवाहट से भरी मिठास

कैसे गुजरा समय 
अच्छा या बुरा
अच्छा वक्त को भी जीया 
बुरे वक्त को भी जीया 
कभी खुशी रही
कभी गम रहा 
कभी ईश्वर को धन्यवाद 
कभी ईश्वर से शिकायत 
कभी जिंदगी को कोसा
कभी आनंद से फूले न समायी 
पता नहीं चला
कैसे वक्त गुजरता गया 
आज भी हालात जस के तस
कभी खुशी कभी गम
अब लगता है
सबको एक बडे से संदूक में बंद कर रख दो
जैसे सामान गद्दे और रजाई रखते हैं 
इन पिटारों को खोलना नहीं है
समझ नहीं आता
जिंदगी इतनी उलझी हुई क्यों हैं 
जलेबी की जैसी टेढी मेढी 
चाशनी में डूबी हुई तो है मिठास लिए हुए 
लेकिन साथ में नीम सी कडवाहट भी लिए हुए 
जिंदगी जीना है
तब कडवा और मीठा दोनों को निगलने पडेगा ।

मणिपुर का दोषी कौन ???


सतयुग में  सीता का हरण हुआ था
गिद्धराज जटायु ने रावण से लोहा लिया था
रावण ने उन्हें कभी हाथ नहीं लगाया
अशोक वाटिका में सुरक्षित रखा 
इतनी तो मर्यादा बची थी
परिणाम तो सर्वविदित है 

द्वापर  में तो माधव आए थे 
सुदर्शन चक्रधारी ने द्रौपदी की लाज बचाए रखी
सब मौन थे 
बडे बडे बलशाली 
उस सभा में भीष्म भी थे 
गुरू द्रोण भी थे 
महात्मा विदुर भी थे
पांच पांडव भी थे
सब मौन धारी हो गए थे 
सर झुका कर लाचार बन गए थे
मर्दानगी गायब हो गयी थी
परिणाम महाभारत हुआ था

कलियुग चल रहा है
भगवान कल्कि न जाने कब अवतरित होंगे 
तब तक क्या नारी की मर्यादा तार - तार होती रहेगी 
नग्न कर उसे सडक पर भीड़ के साथ घुमाया जाएंगा
सभ्यता कहाँ गई 
ईश्वर का जब तक अवतरण नहीं हो जाता
तब तक तो इसकी जवाबदेही सरकार की बनती है
चुनी हुई सरकार है
जनता के माई - बाप हैं 
राज धर्म क्या याद दिलाना पडेगा 
इतनी अराजकता देश में 

डर लग रहा है 
हर औरत को 
कानून का डर नहीं 
बेखौफ होकर 
यह वही भीड है 
जो औरत को परदे में रखने की हिमायती 
आज सडक पर अश्लीलता का नंगा नाच कर रही है
दर्शक के साथ-साथ सहभागी 
संस्कृति की दुहाई देने वाले नपुंसक 
आज पूरी पुरूष जाति कलंकित हो रही है
निर्वस्र वे औरतें भले हुई हो
उस भीड़ का हर व्यक्ति निर्वस्र हुआ है
क्या मुंह दिखाएँगे
अपने घर की औरतों को
माँ  , बहन , पत्नी , बेटी तो इनके घर में भी होंगी 
धिक्कार है ऐसी गंदी सोच रखने वालों की । 

हर देशवासी के मन में क्षोभ और पीड़ा है
सरकार के मन में भी है
इनसे समस्या हल नहीं होगी 
इक्कीसवीं सदी का सुदर्शन चक्र उठाना पडेगा 
किसी को तो माधव बनना पडेगा 
वहाँ राज दरबार था 
यहाँ संसद है लोकतंत्र का मंदिर 
यही से आवाज उठे 
क्या होता है 
यह तो वक्त बताएगा

देश - विदेश सब जगह भारत की छवि धूमिल हो रही है 
मीडिया अपना कर्तव्य कैसे अदा करता है
क्योंकि कहीं न कहीं उसकी भी जवाब देही  बनती है
क्या कर रहा था अब तक
सीमा- सचिन के प्यार के किस्से दिखा रहा था
मंदिर के भ्रमण करा रहा था 
सेल्फी के समय का हादसा दिखा रहा था
सब कुछ उसे दिख रहा था 
सिवाय मणिपुर के 
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रतीक्षा कर रहा था

सवालों के घेरे में तो सब हैं 
कोई भी अछूता नहीं है
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर भारतवासी ।

Thursday, 20 July 2023

वक्त का पहिया

वक़्त कब किसका पलट जाए कोई नहीं जानता..वक़्त फ़िल्म का एक डायलाॅग है...

..फिल्मी दुनिया में ये कारनामे अक्सर होते रहते हैं इनमें एक क़िस्सा एक घर का भी है जो अपने आप में इतिहास है

मेरठ से आया एक नौजवान जब बैजू बावरा में तू गंगा की मौज मैं जमुना की धार गीत अपने लहलारते बालों से गाता है तो फ़िल्मी दुनिया में तहलका मचा जाता है और रातों रात स्टार बन जाता है.. मैं भारत भूषण की बात कर रहा हूँ..भारत भूषण जब बुलंदियो पर थे तो बांद्रा मे एक बंगला खरीदा.. सामने समंदर की लहरें और हवाएं..

सब कुछ सही चल रहा था तब भारत भूषण ने फिल्मों को प्रोड्यूस करने का सोचा बरसात की रात जैसे सुपर हिट फ़िल्म भी बनाई..फिर अगली दो-चार फिल्में नहीं चली, सितारे गर्दिश में आ गए..घाटा हुआ तो क़र्ज़ों के बोझ तले आ गए..अपनी जमा पूंजी बेच कर क़र्ज़े चुकाए जाने लगे जिसमें ये बंगला भी था..उन दिनों एक और स्टार तेज़ी से उभर रहा था 
राजेन्द्र कुमार..
राजेन्द्र कुमार का सितारा बुलंदी पर था तो ये बंगला भारत भूषण से इन्होंने 25 हज़ार रुपये में खरीद लिया..उन दिनों 25 हज़ार बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी..राजेन्द्र कुमार ने उस बंगले के नाम 'डिंपल" रखा जो उनकी बेटी का ही नाम है..बंगले में आने के बाद राजेन्द्र कुमार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते ही गए..

फिर बीच मे राजेन्द्र कुमार का भी सितारा मद्धम हुआ क्योंकि एक और बड़ा स्टार फ़िल्मी दुनिया में छा चुका था..नाम था..
राजेश खन्ना..
राजेश खन्ना को ये बंगला बड़ा पसंद था पर राजेन्द्र कुमार उसे बेचने के मूड में नहीं थे..

लेकिन एक दिन अचानक राजेन्द्र कुमार को पैसों की ज़रूरत आन पड़ी..उन्होंने राजेश खन्ना को अप्रोच किया लेकिन कीमत इतनीं मांगी कि राजेश खन्ना जैसे स्टार को भी देने में मुश्किल आयी..कीमत थी 10 लाख रुपये..

राजेश खन्ना उन दिनों बड़े स्टार ज़रूर थे लेकिन मेहनताना इतना नहीं मिलता था कि एक साथ पेमेंट कर सकें..राजेश खन्ना को ये बंगला अपने हाथ से फिसलता नज़र आया..तभी एक और दिलचस्प वाक़या हुआ..
दक्षिण के एक बड़े फ़िल्म प्रोड्यूसर चिनप्पा देवर साहब हिंदी में एक फ़िल्म राजेश खन्ना साहब को लेकर बनाना चाह रहे थे..राजेश खन्ना बिज़ी थे अन्य फिल्मों में इसलिए वो इसे करने में आनाकानी कर रहे थे.. लेकिन चिनप्पा देवर साहब कहाँ मानने वाले थे.. राजेश खन्ना ने आख़िर उन्हें टरकाने कें लिये भारी भरकम रकम मांग ली..क़ीमत थी 10 लाख रुपये..
चिनप्पा देवर हैरान थे उस समय कोई भी बड़ा एक्टर 2 से 3 लाख ही लिया करता था राजेश खन्ना ने एक साथ 10 लाख मांगे..और साथ में ये कह दिया कि सारे पैसे एडवांस ही चाहिए क्योंकि मुझे एक बंगला खरीदना है..

चिनप्पा देवर जी ने सारी बात जानी और एक साथ 10 लाख रुपये थमा दिये राजेश खन्ना को..और फ़िल्म शुरू हुई जो सुपर हिट साबित हुई 
फ़िल्म का नाम था
'हाथी मेरे साथी'...

अब राजेश खन्ना इस बंगले के मालिक थे..लेकिन राजेन्द्र कुमार ने इस शर्त पर बंगला दिया कि इसका नाम आप कोई और रखेंगे डिंपल नहीं..
राजेन्द्र कुमार ने एक अन्य बंगला बनाया और उसमें यही नाम दुबारा रखा..राजेश खन्ना फौरन मान गए और अपने इस बंगले के नाम रखा
"आशीर्वाद"

लेकिन ये बंगला राजेश खन्ना को ज्यादा फला नहीं इसके लेने के दो-तीन सालों में ही राजेश खन्ना का कैरियर नीचे आता गया..शादी हुई इसी बंगले में लेकिन वो भी ज्यादा सफल नहीं रही..जिसका नतीजा अलहदगी हो गयी राजेश खन्ना और डिंपल के बीच..

राजेश खन्ना इस बंगले में आने के बाद फिर वो कभी उस ऊंचाई तक नहीं पहुंच सके जहां वो पहले थे..

धीरे-धीरे वो भी गुमनाम होते गए और आख़िर में मरने के बाद अपनी वसीयत में ये बंगला जब वो अपनी बेटियों के नाम कर गए तो उन्होंने इसे बेच दिया और आधा-आधा पैसा बांट लिया..

आशीर्वाद बंगला बिका 150 करोड़ रुपये में..

आखिर में भारत भूषण..?

जिनका ये बंगला था..वो जीवन के आख़िरी सफ़र तक एक चाल (झोपड़पट्टी) टाइप में ही रहे और बसों  में सफर करते रहे वो बस से उस बंगले से होकर कई बार गुज़रे और देखा करते जो कभी उनका अपना था..

वक़्त आख़िर इसे ही तो कहते है..
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Wednesday, 19 July 2023

सब्जी मंडी की सैर

आज उठे हम जब  सुबह-सुबह 
श्रीमती जी के हाथ की गरमा गरम चाय पीकर 
अखबार खोलने ही वाले थे
अचानक एक थैला पकड़ाते हुए वे बोली
ए जी , जरा सब्जी मंडी से सब्जी ले आइए
हाथ में सौ का नोट दिया और सब्जियों की लिस्ट दी

हम प्रसन्न हो उठे
चलो कुछ पैसे बच जाएंगे तो चुपके से गर्मा गर्म जलेबी भी खा लेंगे 
शुगर के मारे तो घर में मीठा खाने से रहें 
स्कूटर उठाया और पहुँचे सब्जी मंडी 
ताजी ताजी हरी हरी सब्जियां 
मन प्रफुल्लित हो उठा
अब लेने की बारी आई 

दाम पूछा तोरई- भिंडी का 
कुछ ज्यादा लगा
मुड गए 
भोपला - दुधी और बैंगन की तरफ
आज तो वह भी भाव खा रहे थे
करेला दिखा तो वह और सर चढकर बोल रहा था
खैर थोड़ा थोड़ा लिया
फिर मिर्ची,  धनिया और अदरक की बारी
तीखी मिर्ची और तीखी हो गई थी
लाल लाल टमाटर दिखे
उनका दाम सुन तो खुद ही लाल हो गए
गुस्सा आ रहा था अपने आप पर

सौ रूपये के ऊपर ही लग गए थे
जलेबी की तमन्ना धरी की धरी रह गई 
अपनी ही जेब से लग गए 
थैला भरने की बात तो दूर 
लगा लौट के बुद्धू घर को आए 
सब्जी मंडी की सैर कर आए ।

हवाई जहाज का सफर

आज हवाई जहाज का सफर था 
रात की फ्लाइट और सुबह से ही तेज बारिश 
कैसे क्या होगा , यही सोचकर परेशान 
खैर निकले किसी तरह 
बारिश जोरदार , ट्रैफिक भी जाम
ऊपर से कडकती- चमकती बिजली
सडक पानी से भरी
पानी चीरकर ड्राइवर ने एयरपोर्ट पहुँचा ही दिया
अब शुरू हुई औपचारिकता 
बोर्डिंग पास से लेकर सामान चेकिग 
स्वयं की चेकिग करा पहुँचे 
कुछ इंतजार के बाद प्लेन में बैठने की प्रक्रिया 
अब फिर सीट बेल्ट बांधों 
पायलट द्वारा खराब मौसम की घोषणा 
थोड़ा लेट होगी
आखिर उड चली प्लेन
दो घंटे बाद हम अपने गंतव्य पर 
वहाँ गाडी इंतजार कर रही थी
पहुँच ही गए 
ऐसी 
ही तो है जिदंगी 
न जाने सफर में कितनी बाधाएं 
आखिर में पहुँच ही जाते हैं 
बस धीरज रखना और कर्म करना 
बाकी सब ऊपरवाले पायलट पर छोड़ देना 

Tuesday, 18 July 2023

बालपन

बालपन कितना प्यारा 
न चिंता न अवसाद
जब मन हो जागो 
जब मन हो सो जाओ
दिन हो या रात
कभी भी मुस्कुराओ
कभी भी रोओ
समय की नहीं कोई पाबंदी 
दिन के दो बजे या रात के दो बजे
सब होते हैं समान
न खाने की चिंता न पीने की
माँ तो हैं ही
उसकी गोद तो हैं ही
न कोई अपना न कोई पराया
न कोई दोस्त न कोई दुश्मन 
हाथ- पैर चलाना है
मस्त होकर रहना है 

Wednesday, 12 July 2023

चालाकी जरूरत है आज की

मन तो भोला है
हर किसी की बात में आ जाता है
जवाब देना चाहता है
जवाब दे नहीं पाता
न किसी को कडवा बोलता है
न ताने मारता है
तब भी कुछ लोगों की ऑख की किरकिरी बन जाता है
मसोसकर रह जाता है
जज्बात की कद्र करता है
दिल से बात करता है
कटुता और कपट से नहीं 
सबको अपने जैसा समझ लेता है
तभी दुखी हो जाता है
सीधे और सच्चे का जमाना नहीं 
किसी पर विश्वास नहीं 
छल और कपट का बोलबाला 
अंदर कुछ बाहर कुछ 
इस रंग बदलती दुनिया का नहीं भरोसा 
कहती कुछ करती कुछ 
जो दिखता है वह होता नहीं 
बडा संभल कर कदम रखना है
पग - पग पर धोखा
चालाकी भी आनी जरूरी है
नहीं तो फिर 
कब कौन क्या चाल चल देगा 
भनक भी नहीं लगेंगी
हाथ मरते रह जाना पडेगा 

छूटना ही है

एक दांत दर्द कर रहा था
डाक्टर को दिखाया तो उसने कहा
मसूढा छोड़ दिया है अब निकालना ही पडेगा
रूट कनाल नहीं हो सकता
एक - दो अपने आप टूट गए
एक - दो दांत निकलवा दिए
एक - दो रूट कनाल करा दिए
धीरे-धीरे एक - एक कर साथ छोड़ रहे हैं 
बचपन से साथ दिया है अब एक उम्र पर छूट रहे हैं 
एक दिन ऐसा भी होगा सब छोड़ देंगे 

यही बात तो संबंधों की है
अपने आप सब छूटती जाती है
कभी किसी कारण से कभी किसी से 
उनकी कमी तो खलती है
बचाने की कोशिश भी की जाती है
कुछ बच भी जाते हैं 
कभी भरकर कभी रूट कनाल कर
हाँ जब मसूढा ही छोड़ने लगे
जिससे जुड़ा है उससे जुदा होना है

कोई दुखी या उदास नहीं होना है
जब तक साथ है तब तक है
जब जिंदगी भी छूटनी है
सांस को भी साथ छोड़ना है
तब उससे जुड़ी हर चीज का अंत होना ही है 

Tuesday, 11 July 2023

आज को समझने के लिए कल को देखें

मैं जल्दी समझ आ जाऊं 
इतना आसान नहीं 
तुमने मेरी हंसी देखी है
उसके पीछे की उदासी को नहीं देखा
तुमने मेरी ऑखों को देखा है
उसके पीछे छुपे ऑसूओं को नहीं देखा 
तुमने मेरे मन को देखा है
उसके पीछे गहरे समुंदर को नहीं देखा 
जो मोती मिले हैं 
यू ही नहीं हैं 
न जाने कितनी बार गोता लगाया है
न जाने कितने बार डूबते-उतराते बचा हूँ 
तुमने फूलों को देखा है
उसकी मुस्कान को देखा है
उसकी सुगंध को देखा है
उन फूलों को जो कांटों की सेज पर सोना पडा
वह नहीं देखा है
ऊपर ऊपर सब कुछ अच्छा 
अंतर्मन न जाने कितना घायल
जो कुछ मिला 
वैसे ही नहीं मिला है
संघर्षों की राह पर चलकर 
सोना कुंदन बना है तप कर 
हीरा चमकदार बना है घिस कर 
मूर्ति बनी है हथौड़ी- छेनी की चोट खाकर 
तुमको जिस इंसान का आज दिखाई देता है
कभी उसके कल में भी झांक कर देखा करें 
शायद तब महसूस होगा
अरे , हम तो बहुत अच्छे हैं 
न जाने कितने ईटों को अंदर समाना पडता है
तब जाकर इमारत खडी होती है
न जाने कितना त्याग किया होगा
अरमानो को कुचला होगा
पाई पाई जोड़कर 
यह आज बनाया होगा 
अगर समझना है किसी को तो
उसके कल में भी झांक कर देखें। 

Monday, 10 July 2023

ऐसे हैं हमारे भोले शंकर

एक सुनी - सुनाई कहानी जो दर्शाती है कि 
भोले शिव शंकर कितनी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं 
हुआ यू कि एक चोर , चोरी करने के इरादे से मंदिर में गया
ऊपर पीतल का बडा सा घंटा टंगा था
चोर की नजर उस पर गयी 
वह सोचा घंटा उतार कर ले जाऊंगा 
आज का जुगाड़ हो गया
वह हाथ ऊपर उठा - उठा कर उतारने की कोशिश की
उतार नहीं पाया
उछल कर भी लेकिन मिला नहीं 
अब क्या करें 
सोचा शिवलिंग पर ही चढ जाऊं और उतार लूंगा 
शिवलिंग पर जैसे ही चढा 
भोले शंकर प्रकट हो गए 
वह डर गया 
हाथ जोड़ खडा हो गया और माफी मांगने लगा
भोले बाबा तो भोले बाबा
उन्होंने कहा 
जो मांगना हो मांग 
चोर ने कहा , मैंने तो अपराध किया है
शिव जी ने कहा
अरे , लोग तो मुझे बेल पत्र,  धतूरा , फल ,फूल ,दूध चढाते है
तूने तो स्वयं को ही चढा दिया
अब इससे ज्यादा क्या 
यह है हमारे भोले शंकर की कृपा
जल्दी ही प्रसन्न होने वाले ।

कण कण में शंकर

शिव बनना आसान नहीं है
अमृत छोड़ विष को गटकना है
विषधर को अपने गले में लटकाना है
भोले तो होना है
शक्तिशाली भी
तीसरा नेत्र भी रहना चाहिए 
निर्माण के साथ संहार की शक्ति भी होना चाहिए 
भभूत और राख से श्रृंगार करना है 
महल छोड कैलाश पर्वत पर निवास करना है
जीवनदायिनी गंगा को अपने सर पर बैठाना है
चंद्रमा को भी धारण करना है
औघड़,  भूत सबसे संबंध रखना है
शिव और शक्ति साथ 
भांग- धतूरा से खुश होने वाले
राक्षजराज रावण के आराध्य 
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भी आराध्य 
बिना भेदभाव के
जिनके गले में नागराज
सवारी नंदी हो
दोनों को साथ-साथ ले चलनेवाले 
भय मुक्त हो विचरण 
बेल पत्र से प्रेम 
हर साधारण व्यक्ति के आराध्य 
सबको वरदान देने वाले 
पूरे परिवार के साथ विराजमान होने वाले
परिवार और समाज के हर वर्ग,  हर जीव पर
कृपा दृष्टि बरसाने वाले शिव शंकर 
हर कण - कण में शंकर
हर मन में शंकर 
भोले बाबा की जय 
गौरी शंकर की जय ।


 

अमरता का वरदान

मृत्यु कोई नहीं मांगता 
सब अमरता चाहते हैं 
अमर रहा नहीं कोई
यह बात दिगर है
भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान 
उसका अंत तो सबको पता ही 
शरशैय्या पर पडे
अपनी मृत्यु का उपाय बताना
अश्वत्थामा अमर हुआ
आज तक भटक रहा है
जीवन जीना आसान है
मृत्यु उससे ज्यादा कठिन
कितना जीएगा 
हर चीज का अंत होना ही है
प्रकृति भी परिवर्तन करती है
क्या करेगा जीकर 
जन्म समय पर
मृत्यु समय पर 
तभी संतुलन बना रहेगा
जीवन उत्सव है
मृत्यु भी उत्सव है
सबसे छुटकारा 
ईश्वर में लीन 
माया मोह से मुक्ति
यही तो सबका सारांश है
नहीं चाहिए 
अमरता का वरदान 

Sunday, 9 July 2023

जिंदगी की कहानी

सबकी अपनी-अपनी कहानी
साझा करते है सब अपनी जिंदगानी 
हमें लगता है
सब कुछ तो पता है
शायद नहीं 
इस कहानी की असली बात तो पहुंचती ही नहीं 
इधर-उधर की तमाम बातें 
असलियत छुपा ली जाती है
वह नहीं बोली जाती
कहानी का सारांश पता चल जाता है संक्षेप में 
आरम्भ और अंत भी पता चल जाता है
मर्म नहीं पता चलता
कुछ बना कर कुछ गढाकर 
किसी और रूप में प्रस्तुत 
वेदना किसी की समझना 
हर किसी के बस की बात नहीं 
अंतर्मन का द्वंद 
हदय की टीस 
सब नहीं समझ सके 
कहानी सुनने वाला श्रोता 
समझता है सब समझ गया
जिंदगी की कहानी 
वह भी किसी और की
अपनी कहानी तो समझना मुश्किल 
दूसरों की कैसे कोई समझे ।

बडी बात ??

हार जाना बडी बात नहीं है
हार मान लेना बडी बात है
दुख आना बडी बात नहीं है
दुख का सामना करना बडी बात है
क्रोध आना कोई बडी बात नहीं है 
क्रोध को काबू में करना बडी बात है
प्रेम करना बडी बात नहीं है
प्रेम निभाना बडी बात है
ऑखों में ऑसू आना बडी बात नहीं है
अपने ही हाथों से ऑसू पोछना बडी बात है
हंसी उडाना बडी बात नहीं है
सबको हंसाना बडी बात है
चिंता करना बडी बात नहीं है
चिंता का हल ढूँढना बडी बात है
सपना देखना बडी बात नहीं है
सपने को साकार करना बडी बात है
असफल होना बडी बात नहीं है
सफलता हासिल करना बडी बात है
चुनौती देना बडी बात नहीं है 
चुनौती का सामना करना बडी बात है
जो चीज हमारे हाथ में नहीं है 
यह सोचकर 
जो चीज हमारे हाथ में है
वह करना बडी बात है 

चक्की पीसिग पीसिग

चक्की पीसिग पीसिग 
हाथ मिलाइग मिलाइग
सब भूल जाइग जाइग
दुश्मनी,  दोस्ती हो जाइग जाइग 
सब भूला कर एक हो जाइग जाइग
चुनाव आइग आइग
पब्लिक के दिखाइग दिखाइग 
झूठ बोल बोल सबको मूर्ख बनाइग बनाइग
मुफ्त की रेवडी बाटिग बाटिग 
जनता खुश हो जाइग जाइग
वोट देइग देइग 
सरकार बनाइग बनाइग
भ्रष्टाचारी के जेल में डालिग डालिग 
सब घबरा के अपन पार्टी छोड़ के आइग आइग
वाशिंग मशीन में धुलकर स्वच्छ हो जाइग जाइग
चुनाव जीतीग जीतीग 
कुर्सी पे बैठ परचम पहराइब फहराइब 
चक्की के बात भूल जाइब जाइब
साथ में बैठ सरकार चलाइब  चलाइब 
केहु कुछु ना कर लेइ लेइ
हमरा जोड़ बहुत मजबूत है भाई 

इतवार की चाय

चाय की प्याली
संझा की लाली
सबसे ज्यादा प्यारी 
एक कप गरमा गरम 
बन जाता दिन खासमखास
आराम फरमा 
आपस में बतियाते 
चाय - नमकीन का स्वागत लेते 
छुट्टी का दिन रविवार 
जिस पर उमड़ता बहुत बहुत प्यार 
इंतजार रहता इसका
एक दिन तो है यह 
जब मिलता अपनों का संग
इस दिन की चाय भी स्पेशल 
नहीं जल्दी जल्दी गटकना 
आराम से चुस्की लेते लेते पीना
चाय का भी दिन होता है भाई
जगह होती है
ऑफिस की चाय 
नुक्कड़ की चाय 
मेजबान की चाय 
दोस्तों की चाय 
पत्नी की चाय
सबके स्वाद अलग-अलग 
हर चाय का रहता इंतजार 
इतवार की चाय लगती
 बेहतरीन 
लाजवाब 
इसका नहीं कोई जवाब। 

यादें

मन उन्हीं बातों को याद करता है
जिन्हें हम भूलना चाहते हैं 
छुटकारा पाना चाहते हैं 
यह यादें भी बडी अजीब है यारों 
कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़ती
सालोसाल हमें अपनी जकड़ में जकड़े रखती है 
अच्छी यादें तो भूल भी जाती है
आहत यादें साथ साथ चलती ही आती है
जितना भुलाने की कोशिश करों 
बरबस याद आ जाती है
हाय यादें हाय यादें 
अब तो पीछा छोड़ 
सुकून से जी लेने दे ।

कुर्सी का खेल

सबको कुर्सी लगती अपनी
नहीं होती यह किसी की सगी 
आज तुम्हारी तो कल किसी और की संगी 
इसका मोह छोडो 
जब तक साथ है तब तक ही नाता जोड़ों 
उसके बाद इससे मोहमाया छोडो
जिस कुर्सी के आगे - पीछे नाचते
न जाने इसको जतन से संभालने के लिए क्या-क्या करते 
कुछ लोग तो अपना धर्म- इमान भी बेचते 
मक्कारी और फरेबी का दामन थामते 
कुर्सी का मोह जो किया
उसका तो कभी न कभी अंत हुआ 
वह तो दूर खडी मुस्कराती 
दूर से ठेंगा दिखाती 
अब समय खत्म हुआ
किसी और की बारी
न जाने कितनी बार चढाती- उतारती 
जो जब तक बैठा तब तक ही साथ निभाती 
नहीं तो फिर सौतन बन जाती ।

हे राम

हे राम हे राम
बन गए मेरे सब काम
बना कैसे
वह तो तुम ही जानो
हम तो बस इतना जाने
जब तक हो तुम्हारा साथ
नहीं हमें किसी की दरकार
करते हो प्रभु तुम्हीं 
कराते हो प्रभु तुम्हीं 
इसका हमें है भान
हम तो एक पल को भी नहीं संभाल सकते
तुम्हीं हो सब संभालने वाले 
हे पालनहार हे दयानिधान 
जब जब विपदा पडी
तुम्हीं याद आए 
तुम्हारे सिवा कौन है दूजा 
यह दुनिया है बडी जटिल
घुमाती है चकरघिन्नी सी
जिंदगी का भी नहीं है ठिकान 
वह तो अपना ही खेल दिखाती
बस तुम ही राह दिखाओ
इस भव सागर से पार लगाओ
बहुत डूब - उतरा लिए
लहरों के बीच फंसे हैं 
मझधार से बाहर निकाल किनारे पर लाओ
मायाजाल से मुक्त कर 
अपने लोक बुलाओ  ।

Saturday, 8 July 2023

ज्योति मौर्या

एक ज्योति क्या बेवफा निकली
हर ज्योति शक की नजर से देखी जाने लगी
कहीं बेवफा न निकल जाएं 
अब तो ज्यादा स्वतंत्रता देना ठीक नहीं 
पढाई- लिखाई , नौकरी की जरूरत नहीं 
घर - बार और बाल - बच्चे संभाले
यही बहुत है
विकास की बात बकवास है
घर की चहारदीवारी ही ठीक है
जो ज्योत आगे बढने के लिए जलाई गयी थी
उस पर अब अफसोस हो रहा है
बडी मुश्किल से औरत ने अपने को उठाया है
पुरूषों का भी योगदान है
महात्मा फुले से लेकर महर्षि कर्वे तक
वह औरत जो त्याग कर दूसरों के जीवन में ज्योत जलाती रही है
परिवार और समाज उसी से चलता है
उस पर अविश्वास करना
एक लडकी शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है
जो ज्योति मौर्या ने किया है
सदियों से अनेकों पुरूषों ने ऐसा किया है
लेकिन उन पर तो अविश्वास नहीं 
उन्हें पूरा मौका मिलता है
औरत भी स्वतंत्र नागरिक है
उसे अपने बारे में सोचने का पूरा हक है
मर्द कौन होते हैं उसे आगे बढने से रोकने के लिए 
पानी के बहाव को कितना भी बांधो वह रास्ता निकाल ही लेता है
औरत भी निकाल ही लेंगी 
फिर क्यों न
बहन , बेटी , पत्नी को आगे बढने दिया जाएं 
सहयोग किया जाएं 
हर महिला ज्योति मौर्या जैसी होगी ऐसा तो नहीं है
फिर पति- पत्नी की आपसी सच्चाई तो कोई नहीं जानता 
डरने की जरूरत नहीं है
पुरुष को अपने पुरुषत्व का अभिमान है न तो फिर ओछी और छोटी सोच की कहाँ जगह
निश्चिंत होकर विशाल हदय रख योगदान दीजिए 
अपने घर की महिलाओं के पैरों में बेडियाँ मत बांधे। 

शुक्रिया दोस्तों

जो जितना साथ दे
जब तक दे
जहाँ तक दे
जिस तरह से दे 
एहसान मानिए 
वह अच्छे बुरे दिनों में आपके साथ रहा है
उसके साथ सुख - दुख बांटे हैं 
हंसे खिलखिलाएं हैं 
लडे झगड़े हैं 
मान - मनुहार किया है
जगत ही परिवर्तन शील है
यह बात संबंधों में भी है 
वह संबंध पहले जैसा न हो
उतने ही समय तक का लिखा हो
नियति ने जितना तय किया है
प्राथमिकता बदल गई हो 
नजरिया बदला हो
पहले जैसी बात न हो
संबध तो वही है समय नहीं है
कुछ और समस्या हो
अब आपस में तालमेल न हो
लेकिन जो अच्छा समय गुजरा है साथ में 
उसका एहसास तो है
कटुता से कुछ हासिल नहीं 
उन क्षणों को याद किया जाएं 
जो साथ में गुजारे हैं 
अपने आप चेहरे पर मुस्कान आ जाएंगी
हदय में प्रेम हिलोरे लेने लगेगा 

जो भी गुजरा , जैसा गुजरा 
हर पड़ाव पर साथी मिले
कुछ हैं कुछ बिछड़े 
सबका शुक्रिया 

सामाजिक प्राणी

यह दुनिया है साहब
यहाँ तो टूटते हुए तारे से भी दुवा मांगी जाती है
मृत्यु के उपरांत भोज खाने की कामना रहती है
अर्थी से भी प्रार्थना की जाती है
पेड़ तोड़ लकडी चूल्हे में जलाई जाती है
हमारा पेट भरे 
दूसरे से क्या फर्क पडता है
लाशों को भी लूट लिया जाता है
आपदा के समय का राहत वाला पैसा 
उसमें भी घोटाला 
कफन से भी कमाया जाता है
अपने लाभ के लिए क्या क्या नहीं करता है
फिर दिखाता है कि 
हम सभ्य है 
दयावान है 
पशु तो जैसा होता है वैसा ही दिखता है
इंसान तो खाल ओढकर रहता है
होता कुछ है
दिखता कुछ है
अगर यह अपने पर उतर आए तो इससे खूंखार कोई नहीं है
इतिहास गवाह है
वर्तमान में  भी यही हो रहा है 
यह सामाजिक और प्रेमल प्राणी कब क्या करें 
किस बात पर जश्न मनाए 
यह तो वही जाने  ।

लिखना तो है

लिखना तो है मुझे 
जो आया मन में 
जो सोचा मन में 
जो भाया मन को
किसी को अच्छा लगें या न लगें 
क्या फर्क पडता है
लच्छेदार भाषा न हो 
क्या फर्क पडता है
कोई अच्छा कहें 
कोई बेकार कहें 
क्या फर्क पडता है
बस मैं लिखती रहूँ 
मन की भावनाओं को उकेरती रहूँ 
कोई पढे या न पढे 
क्या फर्क पड़ता है 
कोई  पढकर प्रशंसा करें 
कोई मजाक बनाएं 
क्या फर्क पड़ता है 
इस दुनिया में तरह-तरह के लोग
मेरी लेखनी बस मेरी है
किसी की गुलाम नहीं 
किसी को अच्छा लगें या न लगें 
क्या फर्क पड़ता है 
लोग बातें बनाएं 
कुछ छींटाकसी करें 
क्या फर्क  पड़ता है 
मैं  तो  लिखती हूँ 
बस अपने लिए 
अपने सुकून के लिए 
लिखना मेरा शौक है
यह कायम रखना है
किसी की बातों को दिल से क्यों लगाऊ 
बस जब मन आया लिखूं 
जो चाहूँ वह लिखूं 
जैसे कहते हैं न
    गाना आए या न आए  , गाना ,गाना चाहिए 
     लिखना आए या न आएं 
                               लिखना चाहिए।

Friday, 7 July 2023

रिम झिम रिम झिम

रिम झिम रिम झिम 
पडती है बरखा की बूँदें 
सावन की है फुहारे
मन हिचकोले खाता 
मन ही मन गीत गुनगुनाता 
मन का मयूर नाचता 
खूब - खूब भीगता 
भीगता तन 
भीगता मन 
जल की बूंदे टप टप टप
केशों में उलझ उलझ जाती
धीरे से गालों को सहलाकर नीचे आती 
सिहरन सी होती 
प्यार उमडता 
लटों को थोड़ा झटकाते 
मृदु मृदु मुस्काते 
पैरों से छप छप 
पानी में खेलकर
बचपन की याद ताजा
जब जब बरखा आती
बचपन और यौवन सब साथ लाती
यादों के झरोखो में हम झांकते 
कुछ याद आकर मन ही मन मुस्कराते 
लजाते और शर्माते 
ठंडी से थरथराते 
फिर घर की ओर लौट आते ।

हाय रे टमाटर

आज टमाटर इतरा रहा है
अपने फूले फूले , लाल लाल गालों से
दूर से ही चिढा रहा है
औकात हो तो ही आना मेरे पास
नहीं तो दूर से दर्शन कर लेना
सलाद से गायब 
सब्जी से गायब
पिज्जा से गायब
इतना कीमती हो गया
सैकड़ा के ऊपर चला गया
आखिर कब तक
कभी न कभी फिर अपने पर आएगा 
तब दस - बीस के भाव बिकेगा 
तब तक भाव खा ले 
ज्यादा भी मत मंहगा हो
नहीं तो फिर पिचकने और सडने लगेगा
याद है कुछ समय पहले सडक पर फेंका गया था
कोई कम दाम में भी पूछ नहीं रहा था
आज हो ले लाल लाल
कल फिर वही हवाल 
तब तक सब कर लो इंतजार 
बिन टमाटर खा लो 
काम चला लो 
ज्यादा दिन नहीं यह इतराएगा 
फिर उसी राह पर आ जाएंगा 

Wednesday, 5 July 2023

जनम जनम का साथ

जनम जनम का साथ 
सात जन्मों का साथ
जीवन भर साथ निभाने का वादा
आज सब बेमानी 
परम्परा टूट रही है
विचार बदल रहे हैं 
स्वतंत्रता हावी हो रही है
कोई मजबूरी में साथ नहीं निभाता
धारणाएं बदल रही है
लिव इन रिलेशनशिप की दिशा में आगे बढा जा रहा है
फिर भी नैराश्य हावी है
उसका परिणाम भी दिख रहा है
पारिवारिक बंधन की बात तो छोड़ो 
आपसी पति - पत्नी का बंधन निभ जाएं 
वही बहुत है
असुरक्षा की भावना हर व्यक्ति के मन में 
बेटे का ब्याह हो गया
बेटी का ब्याह हो गया
गंगा नहाय लिया 
वह सब सोच ही खतम 
पश्चिमी संस्कृति हावी हो रही है 
शिक्षा जागरूक कर रही है
तब परिवर्तन भी होना ही है
समाज , परिवार आपसी संबंधों में 
इसके लिए तैयार ही रहना चाहिए 
जीवन अनिश्चित है 
तब संबंध और प्रेम का भी यही हश्र है
आज के दोस्त कल के जानी दुश्मन 
क्या कहें 
पल पल बदलती इस दुनिया को
आज सही वह कल गलत है
काल का चक्र घूमता है
तब मौसम भी बदलता है
और उसका सामना करने के सिवाय और कोई चारा नहीं  ।

गुरू और शिष्य का नाता

अपनी सभी छात्राओं के लिए
शिष्य और गुरु का नाता
नहीं कुछ इनके जैसा
डांट है फटकार है
फिर भी प्यार है
कडा अनुशासन है
फिर भी सम्मान है
नहीं है खून का रिश्ता
न कोई रिश्तेदारी 
फिर भी अभिन्न है
पता है छोड़कर जाना है
फिर भी संबंध अटूट है
सब याद भूल जाते
पर बचपन कभी नहीं
उसमें गुरु जो रहता
वह पास नहीं
पर उसकी शिक्षा 
चलती साथ साथ है
उन्नति के पथ पर चलते देख सब ईर्ष्यालु
पर गुरु ही है जिसका सीना गर्व से चौडा
शिष्य की सफलता
उसकी सफलता
वह तो गुरु है
जहाँ है वहीं रहेगा
पर चाहता
उसका शिष्य अपार सफलता हासिल करें
माता-पिता के बाद अगर कोई है
जो आपको ऊपर उठता देख इतराए
गर्व से कहें
यह मेरा स्टूडेंट है
आप कितने भी बडे हो जाओ
पर एक व्यक्ति हैं
जिसके सामने आप हमेशा छोटे हो
आपके सामने सब झुके
पर आप उसके सामने झुके
वह तो आपका गुरु ही है

Tuesday, 4 July 2023

परदे के पीछे के किरदार

कुछ किरदार जो करते तो बहुत कुछ हैं 
रहते हमेशा परदे के पीछे हैं 
कम आंका जाता उनको
उनके काम की कोई कदर नहीं 
यह भी पता है सबको
गाहे - बगाहे हर मौके को संभालते बखूबी है
वे रौनक तो नहीं होते काज - परोज की
पर रौनक तो उनसे ही होती है
हंसना- खिलखिलाना , 
बोलना - बतियाना 
सब उनकी बदौलत 
उन्होंने जो जिम्मा उठाया है सब संभालने को
सब आते हैं 
खाते - पीते हैं 
मिलते - जुलते हैं 
चल देते हैं 
उसके बाद समेटना उन्हीं को है
व्यवस्थित करना उन्हीं को है
लेकिन यह बात कोई समझता नहीं
ये लोग और कोई नहीं 
हमारा घर संभालने वाले 
जिनकी वजह से हम अपने काम पर जाते हैं 
जिनकी वजह से हम अपने घरों में सुरक्षित रहते हैं 
जिनकी वजह से आसपास साफ - सफाई रहती है
जो हमें अपने गंतव्य पर पहुंचाता है
जिनकी वजह से हमारी जिंदगी आसान बन जाती है
वे भी तो हमारे जीवन का हिस्सा हैं 
उनका महत्व किसी से कम नहीं है। 
 

Monday, 3 July 2023

Happy Guru Purnima

मेरे सभी गुरुजनों को प्रणाम 
बचपन से आज तक जो भी सीखा जिससे भी सीखा 
सबका आभार
वैसे गुरु परम्परा बहुत पुरानी है
हर परिवार का कुल का गुरू रहता था
आजकल यह ज्यादा प्रचलन में है
साधु - महात्मा की बाढ सी है
भीड एकत्रित किया जाता है
न जाने कितने पैसों से इंतजाम किया जाता है
हजारों  - लाखों की संख्या में जमा होते हैं 
ये सब गुरू जीने का मार्ग बताते हैं 
किस तरह से रहना 
जाप करना इत्यादि 
मैं कभी-कभी टेलीविजन पर इनको देखती हूँ 
पता नहीं क्यों इनकी बातें मुझे रूचती नहीं है
मैं अपने और ईश्वर के बीच किसी की मध्यस्थता नहीं चाहती
जो कहना है उनसे कहूँगी 
वैसे भी वे तो अंतर्यामी है
अपने भक्तों पर कृपा करते ही हैं 
कितने ही गुरु ऐसे भी हैं जो स्वयंभू भगवान बन बैठे और बाद में जेल की हवा खाई
इससे अच्छा तो हैं ईश्वर को ही गुरु मानों 
भगवद्गीता से बडा गुरू कोई सीख नहीं दे सकता
प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से हर किसी से कुछ सीखा है
आज तक सीख ही रहे हैं 
जिंदगी तो स्वयं ही गुरू है
पग - पग पर सिखाती है
न जाने कब और कितने रूपों में 
किस - किस से
निर्जीव- सजीव रूप में 
पशु - पक्षियों से लेकर पेड़  , नदी , पहाड़ तक
मनुष्य तो हम जुड़े ही हुए है
दोस्त  , दुश्मन,  पडोसी , रिश्तेदार , हमारे अपने
यहाँ तक कि सफर और सडक पर चलते सहयोगी और सहयात्री भी
जाने - अनजाने हर उस गुरु को नमन 
जिनसे हमने कुछ भी सीखा हो
जिन्होंने जिंदगी का मार्ग दर्शन किया हो
क्योंकि व्यक्ति अकेला तो कुछ भी नहीं है
उसको व्यक्ति बनाने में सभी का योगदान 
गुरू और शिष्य 
देनेवाला कैसा और लेनेवाला कैसा
कबीर का दोहा है
अगर गुरू अंधा होगा तो वह रास्ता क्या दिखाएगा 
अपने तो अपने दूसरों को भी लेकर गिर जाएंगा 
वही बात शिष्य पर भी लागू 
ज्ञान देने वाला क्या करेगा अगर लेनेवाला ही योग्य न हो
खैर यह सब तो जीवन दर्शन हो गया 
हर गुरू को तहे दिल से नमन और बहुत बहुत धन्यवाद। 

Sunday, 2 July 2023

शून्य का सफर

बहुत भाग लिया 
बहुत कर लिया
हश्र क्या हुआ 
कुछ भी नहीं 
शून्य से शुरू हुआ सफर शून्य पर ही खत्म 
इसके बीच की गिनती तो याद ही नहीं 
कभी-कभी कुछ भूले - बिसरे मानस पटल पर आती है फिर भूला दी जाती है
उस समय गिनती कम पड जाती थी लगता था अभी बहुत कुछ बाकी है
जोडना - घटाना 
गुणा  - भाग
पहाड़े रटना
बीजगणितीय सवाल 
रेखागणित के त्रिकोण और वर्तुलाकार 
सब कुछ होता रहा समय समय पर
कहीं पास तो कहीं नापास भी हुए 
कहीं कम अंक तो कहीं ज्यादा 
ऐसे ही यह सिलसिला चलता रहा 
अंत में सब शून्य में ही सिमटना है
शुरू शून्य से 
खतम शून्य पर 
इसके बीच की गिनती 
वही जीवन 

अकेलापन

जब तुम्हारे साथ कोई न हो 
न बतियाने वाला
न सुख दुख बांटने वाला 
न सुनने समझने वाला 
तब एक ही सहारा होता है वह है ईश्वर का
भगवान तो हैं न हमारे साथ 
सही है 
ईश्वर तो अपने बच्चों पर दया करेंगे ही
मुश्किल तो यह है 
हम इंसान जो है
कहते हैं हम उम्र का साथ का मजा कुछ और है
बच्चों को बच्चों से 
युवाओं को युवाओं से ही दोस्ती पसंद आती है
हमें भी तो अपने जैसे लोग चाहिए 
वह इस व्यक्तिवाद के दौर में बहुत मुश्किल है 
सब कुछ है
घर बार , रूपया पैसा 
फिर भी खुशी नहीं 
अकेलेपन की त्रासदी से गुजर रहा है
डरा हुआ , भयभीत 
कल को कुछ हो जाएं तो
इस भयावह कल्पना में ग्रस्त 
जीवन को ग्रहण सा लगा है
अंधेरे में एक सूरज की रोशनी ही काफी है
वैसे ही जीने के लिए लोगों का होना भी जरूरी है
सामाजिक प्राणी उसके बिना कैसे रह सकता है 

सफाईकर्मी की अफसर पत्नी

वह पुरूष था
उन्नत सोच रखने वाला
एक कदम आगे चलने वाला
महिलाओं के लिए सम्मान रखने वाला
समानता का नजरिया रखने वाला
पत्नी की इच्छा थी
पढने की कुछ करने की
बनने की , आगे बढने की
उस आगे बढने में मदद की
पढाई का इंतजाम 
फीस और खर्चों का जुगाड़ 
कर्ज लेकर 
यहाॅ - वहाँ से माँगकर 
पत्नी ने पास किया 
प्रशासनिक सेवा की परीक्षा 
अधिकारी बनी 
अब वह पति न भा रहा
सफाईकर्मी जो है
बच्चों को छोड़ घर को छोड़ 
किसी और के पास जाना है
शर्म आ रही है सफाईकर्मी को पति बोलते हुए 
अब इसमें सही कौन और गलत कौन
समाज ऐसे हजारों- लाखों उदाहरणों से भरा है
पत्नी पति लायक न होने के कारण दूसरी शादी
सुंदर न हो , शिक्षित न हो , मार्डन न हो इत्यादि कारण
यह मसला पुरूष का नहीं स्री का है
दोष खूब दिया जा रहा है
गलत तो है ही
नैतिकता का कुछ तकाजा भी होता है
पहली बार है कि पत्नी द्वारा नकारने  का सवाल उठा है जोरों से
सारा समाज उमड आया है 
दोषारोपण हो रहा है
समय बदल रहा है 
सोच बदल रही है
आज पुरूष भी प्रताड़ित है
कानून औरतों के पक्ष में जो है
अति तो कहीं भी नहीं  अच्छी लगती
निरपराध को दंडित किया जाएं 
कानून का सहारा ले आरोप गढे जाएं 
तब कानून को अंधा बन कर नहीं ऑखें खोल कर निर्णय देना चाहिए। 

Saturday, 1 July 2023

Happy Dactors day

तुम इंसान हो भगवान नहीं
यह तो हम सब जानते हैं
ईश्वर की याद तो हमें हर मुश्किल घडी में आती है
पर जब बीमारी आती है
तब सबसे पहले तुम्हारी याद आती है
आशा रहती है
तुम ठीक कर दोगे
जीवन का प्रश्न जहाँ तुम वहाँ
मंदिर में नहीं जाते
तुम्हारे यहाँ आते हैं
ईश्वर तो दिख जाते हैं
पर तुम्हारा तो इंतजार करते हैं
हमको तो तुममें ही खुदा दिखता है
यह तो हुई  हमारी बात

अब आप अपनी बताओं
क्या तुमको भी मरीज में भगवान दिखता है
कहते हैं कि ईश्वर तो हर रूप में है
हर जगह है
इंसानियत और मानवता ही धर्म है
मानव सेवा ही ईश्वर भक्ति है
जीवन दाता हो आप
तब तो आपका भी कर्तव्य है
निस्वार्थ सेवा
हर भेदभाव से परे

ईश्वर के दरबार में
अमीर गरीब सब बराबर 
उनकी दृष्टि तो समदर्शी होती है
संसार सागर में आकर उन्होंने भी अपना कर्म किया
आपको भी तो वह करना है
आप डाँक्टर ही इसलिए बने हो
कि हर समय मरीजों के लिए हाजिर हो
आपके लिए आपकी मर्जी से ज्यादा तवज्जों मरीज की

आप ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाए
सबकी दुआ ले
दिन दूनी रात तरक्की करें
बीमारी के तारणहार बने
दूसरों को जीवन देनेवाले
आपका जीवन खूब लम्बा हो
यही है सबकी शुभकामना
    Happy  Doctors  Day

डाँक्टर का धर्म

हर डाँक्टर यह पढें
अपनी ही किसी किताब में यह कहानी पढी थी
कहानी तो बडी है उसको मैं संक्षेप में ही बता रही हूँ

एक साधारण ग्रामीण खेत खलिहानों में मजदूरी कर गुजारा करने वाला
एक बार बेटे को बुखार आया । तप रहा था ।तबीयत बिगड़ती जा रही थी ।किसी ने सलाह दी
शहर के बडे डाँक्टर है उनके पास ले जाओ
वही ठीक कर सकते हैं
रात का समय था वह बेटे को कंधे पर लादकर पहुंचा
डाँक्टर साहब ने मिलने से मना कर दिया
रात हो गई है हमारा सोने का समय है
द्वारपाल को गेट बंद करने का आदेश दे अंदर चले गए
बेचारे गरीब के बेटे ने दम तोड़ दिया

समय बीता
कुछ बरसों बाद डाँक्टर साहब के बेटे को जहरीला सांप ने काट लिया
कोई औषधि काम नहीं कर रही थीं
किसी ने कहा कि फलां गांव में एक व्यक्ति है जो जहरीले से जहरीले सांप का जहर मंत्र द्वारा निकाल सकता है
डाँक्टर साहब को इन सब बातों पर विश्वास नहीं था
पर एकलौता जवान बेटे का प्रश्न था
उन्होंने आदमी भेजे पर आने को मना कर दिया
रात गहरा रही थी पर इस गरीब का मन नहीं माना
लाठी ठेगते पहुंच गए
आवाज दी
डाँक्टर साहब पैरों पर गिर पड़े
बचा लो मेरे बेटे को
जो मांगोगे वह दूंगा
अब इन्होंने अपने मंत्र विद्या के बल पर विष निकाल दिया
लडका ऑखे मलता हुआ उठ बैठा
डाँक्टर साहब ने खुश होकर कहा
क्या चाहिए
कुछ नहीं
याद कीजिए मैं वही हूँ जो अपने बेटे के इलाज के लिए आपके पास आया था
आपने वापस लौटा दिया
मेरा बेटा मर गया

पर मैं आप जैसा नहीं बन सका
मन तो हुआ 
मर जाने दो
पर ईश्वर ने मुझे यह हुनर दिया है जहर उतारने का
जान बचाने का
मैंने अपना कर्तव्य किया
आप भूल गये थे
आइंदा किसी मरीज को बिना देखे मत लौटाना ।
कहते हुए लाठी टेक गेट से बाहर निकल गए ।

धैर्य न खोना

जीवन में धैर्य बनाए रखना
जब बीच मंझधार में फंस जाएं नैया
तब भी यह आस रखना
किनारा तो मिल ही जाएंगा

जब अंधड- तूफानों  का जोर हो
जब जोरो की बरसात हो
जब बिजली कडके कड- कड
छाए घनघोर अंधेरा 
तब भी मन के दीप जलाएं रखना
यह तूफान भी जाएंगे
बादल भी छट जाएंगे
फिर से सूरज निकलेगा

जब भी विपत्ति आए
विपरीत परिस्थिति छाए 
कुछ न सूझता हो
न कोई राह दिखता हो
तब भी यह विश्वास रखना
स्थायी यहाँ कुछ भी नहीं 
यह दिन भी बीतेगे 
विपदा भी भागेगी 

जब छा जाएं दुख के बादल
उसमें भी सुख की किरण ढूंढ लेना
आशा रखना
विश्वास रखना
धैर्य न खोना
हर रात की सुबह जरूर होती है
हर अंधकार का प्रकाश भी अवश्यभांवी है
बस धैर्य बनाए रखना।

खुदी को कर बुलंद

यह नहीं मिला 
वह नहीं मिला
मेरे साथ ऐसा हुआ 
मेरे साथ वैसा हुआ 
बहुत अन्याय हुआ 
घर - बाहर कहीं भी न्याय न मिला
बार - बार मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंची
मुझे नीचा दिखाने का प्रयास किया गया
दस लोगों के बीच मुझे अपमानित किया गया 
मुझे कोई  तवज्जों नहीं दी गई 
मेरे लिए किसी ने कुछ नहीं  किया
किसी का प्रेम और अपनापन नहीं मिला 
मेरी बात को सुना नहीं गया
मेरा तो भाग्य ही खराब है
मेरा कोई नहीं सुनता
बस मुझी पर दोषारोपण किया जाता है
कटघरे में खड़ा किया जाता है
अपनी गलती छुपाने के लिए मेरे कंधे पर रखकर बंदूक चलाई जाती है
ऐसा अमूमन किसी न किसी  शख्स से सुनने को मिलता है
हमारे मन में भी यह सब चलता रहता है

अरे जनाब  / मैडम 
छोड़िए इन बातों  को 
अपने को इतना नीचे मत गिराओ 
आप भिखारी नहीं है
जो आपको प्रेम और सम्मान भीख में मिले
भाग्य को दोष मत दो
अपना भाग्य खुद बनाओ
किसी के बनाने और बिगाड़ने से आपका कुछ नहीं होगा
न किसी के दोषारोपण करने से
यह तो लोग है कहेंगे ही
मुंह देखी बात करने की आदत होती है 
पर सत्य तो सत्य ही होता है 
कब तक छुपेगा 
उजागर होना ही है

सब छोड़कर अपना कर्म करें 
भीख में मांगी वस्तु नहीं टिकती है
लोगों को एहसास कराए
अपना महत्व बताएं 

खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे को बनाने से पहले खुद पूछें 
बता तेरी रजा क्या है ।