Thursday, 31 August 2023

अपनापन का दिखावा

ना कोई किसी से कुछ कह रहा है
ना कोई किसी का सुन रहा है 
ना कोई एक - दूसरे से ऑख मिला रहा है
न कोई एक साथ बैठ रहा है
सब एक - दूसरे को नजरअंदाज कर रहे हैं 
बात क्या है
क्यों ऐसा हो रहा है
वह कैसे पता चलेगा 
कोई अंतर्यामी तो है नहीं 
बोलचाल बंद
सब व्यवहार बंद
प्यार को अंदर आने का रास्ता ही नहीं 
जहाँ प्यार ही न पनपे 
तब अपनापन कैसे पनपेगा 
तुम अपने में रहो 
हम अपने में 
आपस में झूठमूठ अपनापन का दिखावा क्यों  ??

संपत्ति और संतति

संपत्ति और संतति 
इन्हीं के इर्द-गिर्द डोलती जिंदगी 
मर - मर कर जमा किया 
कौडी- कौडी जोड़ा 
न जाने क्या-क्या त्यागा 
तब यह पास आया 

संतति के लिए क्या-क्या न किया
सामर्थ्य से ज्यादा 
रात - दिन एक कर दिया
स्वयं की इच्छाओं को दरकिनार किया
अपने लिए न सही इनके भविष्य सुरक्षित करने का प्रयत्न 

यह भी भ्रम है
दोनों कब छोड़ जाएं 
कह नहीं सकते
कहावत है ना 
   पूत , सपूत तो धन संचय क्यों 
   पूत , कपूत तो धन संचय क्यों  ।

Wednesday, 30 August 2023

भाई- बहन का रिश्ता

बहन जब घर आती है
खुशियों की सौगात लाती है
वह आशीर्वाद और दुआ की पोटली लिए रहती है
सब दिल खोलकर देती है
उसके भाई की जगह कोई नहीं ले सकता 
भाई उसका सबसे प्यारा सबसे न्यारा 
वह दिखाती नहीं है
शो ऑफ नहीं करती है
उसके गुस्से और तकरार में भी प्यार 
शिकवा - शिकायतें भले हो
प्यार में कमतर नहीं 
घर में बडे बडे मेहमान आ जाएं 
एक बहन न आएं 
तो वह बेकार है
एक नाल से बंधा रिश्ता 
एक रक्त का रिश्ता 
ईश्वर प्रदत्त रिश्ता 
यह इस जन्म में तो नहीं मिलेगा 
सहोदर बहन-भाई 
माॅ के उदर से जन्म 
वे आदर के पात्र 
ऐसा रिश्ता जो एक - दूसरे का बुरा सोच ही नहीं सकता
मतभेद हो सकते हैं 
मनभेद न हो
घर तो गुंजायमान बहन-बेटियों से ही
लक्ष्मी हैं  वे 
उनका अनादर कर कोई सुखी कैसे होगा 
रक्षाबंधन तो एक निमित्त मात्र है
एक दिन नहीं 
हर दिन घर के दरवाजे खुले रहें उनके लिए  
मन से मन मिले 
दिल से दिल मिले
भाई से बहन मिले 
तब सब बात बने ।

रात गई बात गई

ताजी - ताजी निखरी धूप
सुनहरी धूप के साथ आगमन 
रात भर आराम फरमा 
अब निकली है
कल और आज के बीच
काली - कलोख अंधेरी रात भी थी
सब बिसरा कर निकली है
सब प्रतीक्षा रत 
खुशी खुशी स्वागत 
आलस छोड़ काम पर 
पशु- पक्षी तक
कल क्या हुआ
सब भूल गया
रात गई बात गई 

Tuesday, 29 August 2023

थप्पड़

आज बच्चों को मारना गुनाह है
एक जमाना था
जब मारना ही एक सबसे बडा शस्र था
कब मार पडे 
किससे मार पडे
कहा नहीं जा सकता
मारना- कूटना दिनचर्या में शामिल 
कोई दिन बिना थप्पड़ खाएं नहीं 
घर से बाहर तक
अम्मा घर में 
बाबु जी बाहर 
इसके बाद घर के और सदस्य 
स्कूल में मास्टर जी
सुबह न उठा तो थप्पड़ 
खाना न खाएं तो थप्पड़ 
खेल कर देर से आए तो थप्पड़ 
थप्पड़ न था जैसे कोई जडी - बूटी थी 
खाकर ठीक हो जाएंगे 
कभी-कभी तो पता ही नहीं चलता 
यह थप्पड़ क्यों पडा
आपस में लडाई पति - पत्नी की
थप्पड़ बच्चों पर 
हमारी साठ  - सत्तर की दशक वाले थप्पड़ खा खाकर ही बडे हुए हैं 
कोई फर्क भी नहीं पडता था 
न बुरा लगता था
थोडी देर ही असर रहता था
मान - स्वाभिमान ताक पर रखा था
सोचते हैं 
क्या हमारी परवरिश गलत थी
थप्पड़ का भी कोई स्थान हैं क्या 
यह बात तो अब तक समझ नहीं आई 
ऐसा तो नहीं कि यही थप्पड़ 
जिंदगी के थपेडों से बचाती रही है
यही जोरदार का झन्नाटेदार झापड 
हर तूफान का सामना करने की शक्ति दे रहा है
सब तो नहीं 
पर कुछ थप्पड़ आज तक जेहन में याद है
वे आज तक गूंजती रहती है 
सचेत करती है
उन लोगों की याद दिला जाती है जो अपने थे ।

झूठ की दुनिया

सच बोलना है
कभी-कभी सच बोलना भी गुनाह हो जाता है
सच कोई सुनना नहीं चाहता
झूठ बोलना नहीं चाहते
सबको मीठी मीठी बातें 
अपनी तारीफ - बखान 
यही सुनना है 
जो हम सुनाना नहीं चाहते
सच कसमसाता रहता है
मौन रह जाता है 
कुछ व्यक्त नहीं कर पाता 
झूठ का बोलबाला होता जाता है
सच तमाशा देखता रहता है 
कभी-कभी खुद तमाशा बन जाता है
ऐसा लगता है
यह दुनिया झूठों की ही है 


Saturday, 26 August 2023

जल

जल तो जीवन है
जीवन में जहर कौन घोलता है
कुडा - कचरा कौन डालता है 
मल मूत्र कौन विसर्जित करता है
गंदगी कौन फैलाता है
गंदगी फैलाकर साफ करने का जिम्मा कौन लेता है
उसी जल में खडे रहकर आचमन 
उसी जल का पान करना
यह कैसी विडंबना 
मत साफ करो 
एक प्रण ले लो
गंदा नहीं करेंगे 
जल का तो काम है 
बहना , देना 
वह करता रहेगा 
आप उससे छेड़ छाड मत करें 
वह तो शुभ्र है 
स्वच्छ है 
जैसा है वैसा ही रहने दे ।

किताब

आज सर झुका लो 
किसी और के सामने नहीं 
बस किताबों में 
जिंदगी के कुछ वर्ष इन्हें दे दो 
ये ताउम्र तुम्हारा साथ दे देंगे 
अपने ज्ञान के भंडार से तुम्हें भर देंगे 
यह लेते नहीं देते हैं 
अमूल्य खजाना 
बहुमूल्य हीरे - जवाहरात 
बस आपको ढूंढना है
आत्मसात करना है
ज्यादा मत सोचो 
बस सर झुका लो इसके सामने
यह कभी तुम्हारा सर झुकने नहीं देंगे। 

मन

सच है या झूठ 
अपना है या पराया
यह आज तक समझ न आया
कौन क्या है
कैसा है
यही भ्रम रहता है
जो लगता है 
जो महसूस होता है
हमेशा वही , सही हो
ऐसा भी होता तो नहीं है
बहुत कुछ स्वप्न देखता है 
सपना भी कहाँ अपना होता है
वह भी तो भ्रमित रहता है
यह मन भी कभी-कभी नहीं होता अपना
उस पर रहता किसी और का अधिकार 
जब हम ही अपने नहीं 
तब कोई और कैसे होगा अपना 

Friday, 25 August 2023

विश्वास और अविश्वास

अपना भाग्य फल रोज देखती हूँ 
पंडित जी बताते हैं 
टेलीविजन के सामने बैठ जाती हूँ 
यह जानती हूँ 
होगा वही जो होना है
फिर ऐसा क्यों??
हम सब जानते हैं 
समझते हैं 
फिर भी मन को समझाते हैं 
वे बहुत कुछ बताते हैं 
कुछ उपाय करना 
उसमें मुझे विश्वास नहीं 
विश्वास नहीं फिर विश्वास क्यों 
ये ईश्वर नहीं है यह भी पता है
दिमाग सब जानता है
दिल भावना में बहता है
विश्वास और अविश्वास 
एक साथ ही
एक ही शख्स पर
यह कैसी स्थिति 
बहुत कुछ हम नहीं चाहते हैं 
यह भी पता होता है यह ठीक नहीं है 
फिर हम वह सब करते हैं 
यह होता रहता है 
सबके साथ भी 

सबसे मजबूत जोड़

मामा के घर जाना है
माँ का संदेश ले जाना है
झुक कर उनके चरण स्पर्श करना है
मिलकर गले लगना है
प्यार की सौगात राखी देना है
उनको याद दिलाना है 
एक बहना का आशीर्वाद समाया
इस धागे में प्रेम समाया 
एक ही माँ के जने 
कभी नहीं बिछुड़ते 
इस रिश्ते को किसी और की जरूरत नहीं 
मध्यस्थता की नहीं 
अपने आप ही मजबूत है
चाहे कितनी गलतफहमियां हो जाएं 
झगड़े हो जाएं 
बोलचाल न हो
तब भी यह वैसा ही रहेंगा 
एक फिक्र रहेगी 
मेरी बहन कैसी है
मेरा भाई कैसा है
हालात क्या है
जैसा भी है जहाँ भी है
खुश रहें 
यही दुआ दिल से निकलती है
यह जोड़ फेविकोल के जोड़ से भी पक्का है
माॅ के नाल से बंधा हुआ जोड़ 
ईश्वर प्रदत्त जोड़ 
सबसे मजबूत जोड़ ।

जिंदगी का सफर

जन्म पर बंटी थी मिठाई
मृत्यु भोज पर खिलाई गई थी खीर
जन्म से शुरू हुआ रूदन
मृत्यु पर भी रूदन
एक स्वयं रोया
दूसरा लोगों को रूलाया 
रूदन और मिठास से शुरू हुआ सफर
इनसे ही खतम 
उनके बीच रहती है जिंदगी 
सांस लेती जिंदगी 
भावनाओं में झूलती जिंदगी 
खुशी में झूमती जिंदगी 
सफलता की उडान भरती जिंदगी 
सुख - दुख के बीच हिचकोले खाती जिंदगी 
न जाने कितने पडावो से गुजरती जिंदगी 
बचपन , जवानी , बुढापे को 
हर मौसम को भोगती जिंदगी 
कर्मों का फल झेलती जिंदगी 
ऑधी- तूफान का सामना करती जिंदगी 
मिठास और रूदन से शुरू हुआ सफर 
इनसे ही खतम 
इनसे ही उपजा इनमें ही मिला 
मिट्टी,  मिट्टी में ही समा जाती है ।

Thursday, 24 August 2023

चांद पर तिरंगा

तीन रंगों से बना तिरंगा 
राज करेगा धरती से अंबर तक
चांद पर जा पहुंचा है
गर्व से लहरा रहा है
ऊपर से टकटकी लगाए देख रहा है
अपने प्यारे भारत को
अपने न्यारे भारत को
अपने इंद्रधनुषी भारत को
जहाँ विभिन्नता में एकता 
करती है निवास 
है सब भिन्न  भिन्न 

धर्म,  भाषा , खान - पान 
एक है सबके मन को लगता प्यारा 
वह है तिरंगा 
तिरंगा भी याद कर रहा है
आजादी से चांद तक का सफर
न जाने कितने बलिदानो,  कितनों प्रयासों से
यह सफर यहाँ तक पहुंचा 
यह सिलसिला थमे नहीं 
ऐसे ही चलता रहें 
आज चांद तो कल सूरज की तमन्ना लिए 

Wednesday, 23 August 2023

अपनापन

तुम भी चुप
मैं भी चुप
यह चुप्पी अच्छी है
न झगड़ा- झंटा 
न वाद - विवाद
अपने काम से काम
कितनी अच्छी बात लगती है यह 
जहाँ संवाद ही नहीं वहाँ बवाल ही नहीं 
जीवन यंत्र वत चल रहा है
जब आवश्यकता हुई बटन दबाया 
कुछ बोला 
फिर मौन धारण कर लिया 
कितना नीरस जीवन
वह जीवन क्या 
जिसमें नोक - झोंक न हो
एक दूसरे से बात चीत न हो
ऐसी जगह मन से मन नहीं मिलता है
जहाँ बोलने के पहले सोचना पडे
वह तो घर ही जेल घर हो जाता है
द्वार और खिड़की भले हो
कुछ फायदा नहीं 
जब दिल का द्वार बंद
तब घर का द्वार बंद रहें खुला रहें 
अपनापन तो कभी न पनपेगा ।

दुखवा मैं कासे कहूँ मेरी सजनी

कहना है बहुत सी बातें 
मन में दब कर पडी बहुत सी बातें 
किससे कहें 
ऐसा नहीं कोई सुनने वाला नहीं 
कुछ कुछ कहा भी
सब कुछ नहीं कहा जाता
कुछ न कुछ छूट जाता है
कुछ दबा लिया जाता है
असली बात तो धरी की धरी रह जाती है
बस आवरण चढा कर कुछ बयां कर दिया जाता है
क्यों डर लगता है 
दिल खोलने में  
हाँ लगता है 
संसार का अनुभव तो यही है
यहाँ जख्मो पर नमक छिड़कने वाले बहुतेरे हैं 
अपनों से कह नहीं सकते
दूसरों पर भरोसा कर नहीं सकते
जिस बात को कहना चाहते हैं वही छुपा जाते हैं 
हम उस संसार में रहते हैं 
जहाँ मीठे अमरूद को काटकर उस पर नमक छिड़क कर स्वाद लिया जाता हो
दिल चीरकर रख दो
नमक छिड़कने वाले बेहिसाब 
बेहतर है चुप ही रहा जाएं 

दुखवा मैं कासे कहूँ सजनी 

एक ही उससे 
उस भाग्य-विधाता से ।

Tuesday, 22 August 2023

गलती किसी की सजा किसी को

गलती जो  करता है
जरूरी नहीं सजा वही भुगते
उससे जुड़े लोगों को भी भुगतनी पडती है
गलती कुंती ने किया था
सजा कर्ण को भुगतना पडा
पट्टी गांधारी ने बांधी थी 
परिणाम कौरव थे
गलती राजा शांतनु ने की थी
सजा भीष्म को भुगतना पडा
गलती राजा दशरथ ने की थी
सजा राम को भुगतना पडा
पूरी अयोध्या को भुगतना पडा
कैकयी और मंथरा तो थी ही
यह याद रहें कि 
श्राप श्रवण कुमार के माँ - बाप का था

आज भी यही होता है
माता-पिता की गलतियों की सजा संतान भुगतती है
एक व्यक्ति की गलती 
पूरा परिवार भुगतता है
व्यक्ति अकेला नहीं होता है
वह समाज और परिवार में रहता है
एक गलत कदम न जाने कितनों की जिन्दगी बदल देते हैं 
जिंदगी के मायने बदल जाते हैं 
अकेला तो आता है 
अकेला कोई जाता नहीं है
अपने कर्मों के साथ जाता है

जब कोई कहता है
मेरी जिंदगी 
मैं जो चाहे सो करूँ 
अधिकार है अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का
अपनी शर्तों पर जीना
हमारे कारण किसी और की जिन्दगी प्रभावित न हो
माता-पिता बने हो तब जिम्मेदारी का एहसास भी हो ।

माँ का गार्डन

मेरी माँ ने एक गार्डन लगाया था
उसको अपने दिल में बसाया था
उसे हर रोज वह सींचती 
अपने प्यार से अपने दुलार से
हर वक्त उनके साथ रहती
कभी मुर्झा न जाएं 
इसलिए खाद - पानी देती
उत्साह का सांत्वना का
कभी हार न मानने का
हर मुश्किल घडी में डट कर खडी रहती
सूर्य जैसा प्रकाश देती
हर पौधा उसके दिल के करीब 
उन्हें पल्लवित- पुष्पित किया
हर आंधी - तूफान का सामना करना सिखाया
उन्हें पौधों से पेड बनाया
इस प्रक्रिया में न जाने किन - किन बाधाओं से गुजरी
पर उन पर ऑच न आने दी
ढाल बनकर खडी रही
हर किसी से भिड पडी
आज वह पेड़ जो पौधे थे
लहलहा रहे हैं 
अपना परचम फहरा रहे हैं 
सच्चाई,  ईमानदारी  , कर्मठता का जो पाठ पढाया 
उसी के साथ आगे बढ रहें 
माँ मंत्रमुग्ध हो देख रही
बखान करते न थक रही
वे पेड़ कौन हैं 
हम उसकी संतान 
उसके दिल अजीज 
उसके दिल के टुकड़े 
जिनमें उसका दिल धडकता है 
उनकी हर धडकन में भी एक शब्द है कॉमन 
   माँ    माँ   माँ  

सत्य

कोई कितना ही पक्ष बदल ले 
कभी इस तरफ
कभी उस तरफ
सत्य अपना पक्ष कभी नहीं बदलता
सत्य हमेशा सत्य ही रहता है
समय के साथ सब बदल जाता है
एक सत्य ही है 
जो डट कर खडा होता है
उसे मिटाने के धूमिल करने के प्रयास 
सब असफल
काल कोई भी हो
भूतकाल 
वर्तमान काल
भविष्य काल
सत्य अपनी जगह स्थिर है
सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं 
वह अपने आप में ही प्रमाण 
सत्य के साथ जो हो लिया 
जीवन उसका तर गया 

पेट सबसे ऊपर

मैं पढता हूँ 
मैं गुनता हूँ 
किताबों के संग रहता हूँ 
हंसता हूँ 
रोता हूँ 
गाता हूँ 
बतियाता हूँ 
बटोरता हूँ 
बाँटता हूँ 
सुनाता हूँ 
यह सब करते करते मैं स्वयं किताब बन जाता हूँ 
इतना संचित कर लेता हूँ 
सोचता हूँ जितना दे सकूं 
दिया करू 
वह भी मुफ्त 
लेकिन यहाँ ज्ञान नहीं 
भाषण नहीं 
रोजी - रोजी की दरकार है
किताब नहीं भोजन
तभी तो जब कोई कहता है कि 
पढा लिखाकर क्या होगा
मेहनत- मजदूरी करेगा तो चार पैसे आएंगे 
घर चलेगा , परिवार चलेगा 
पेट सबसे ऊपर ।

चांद पर पहुँच

चंद्रयान पहुँचने वाला है
जो दूर था अब समीप होने वाला है
जो कल्पना था वह अब सच होने वाला है
चंदा मामा दूर के
पुआ पकाए पूर के
अब मामा से मिलना आसान होगा
उनके घर भी जा सकेंगे
अब तुम्हारे लिए चांद- तारें तोड़ लाऊगा 
यह न कह कर 
अपनी प्रेमिका को चांद पर ही ले जाने का वादा होगा
चांद को अपने सौंदर्य का दीदार करवाएगा 
समय बदल रहा है
विज्ञान नई परिभाषा गढ रहा है
साहित्य और कविता भी बदलेगी 
उनके और कुछ सुर होंगे 

चल चले इस दुनिया से दूर
चांद पर हो अपना एक घर
जहाँ केवल हम और तुम 
तारों से दोस्ती होगी
चारों  ओर मदमस्ती होगी
हम विचरण करेंगे वहाँ 
नीचे लोग भरेगे आह। 

घर बनाता है आदमी

चहारदीवारी बनाता है आदमी
एक घर बनाता है
उसमें एक खिड़की बनाता है
हवा आ - जा सके
बाहर गार्डन में जाता है
खुली हवा में सांस लेने 
सारा मामला हवा का है
हवा चाहिए पर उसको कैद कर रखा है
स्वयं को ही बंद रखा है
इसी हवा को प्राप्त करने 
समुंदर से पहाड़ों की सैर 
जो फ्री में मिलती है
उसकी इनको कद्र नहीं 
हवा को रोक
जल को रोक 
पेड़ को काट
नदियों को बांध 
समुंदर को पाट
पहाड़ को तोड़ 
वह घर बनाता रहता है
अट्टालिकाएं,  बिल्डिंग्स,  होटल्स 
बनाता रहता है
हवा को अवरुद्ध कर उसी के लिए तरसता है
आदमी,  मकडी समान
चारों तरफ जाला बुन 
उसी में छटपटाता है
मर जाता है
उसी मिट्टी में मिल जाता है ।

Monday, 21 August 2023

जिंदगी की खुशी

जिंदगी ने इतना रुलाया है
हंसने से भी डर लगता है
खुशी दरवाजे से अंदर प्रवेश कर चुकी होती है
तब भी उसका एहसास नहीं 
रोना , हंसने पर हावी
ऐसा क्यों  
शायद रूदन देकर हंसी पाई है
जिंदगी देकर खुशी पाई है ।

दिल - दिमाग

दिल की सुनूँ  या दिमाग की 
हमेशा कन्फ्यूजन रहता है
दिमाग कभी गलत नहीं कहता
वह हमें सचेत करता है
हम अनसुनी कर जाते हैं उसे
उसका परिणाम भी भुगतना पडता है
दिल के कारण मजबूर हो जाता है इंसान 
कुछ मामलों में दिल की सुनना ही पडता है
रिश्तों में  , अपनों से दिल की ही 
यही हार जाता है
जान बूझ कर हारना
यह हार भी खुशी और संतोष देती है 
तभी तो कभी दिल की सुने
कभी दिमाग की  



सांप और महात्मा

एक कहानी पढी थी कि एक सांप था वह लोगों को काटता था तथा कितनों की जान चली जाती थी । सांप को दुख होता था । एक दिन एक महात्मा उस राह से गुजर रहे थे सांप उनके सामने आया और फन निकलकर बैठ गया ।
महात्मा से उसने अपनी व्यथा बताई ।
       महात्मा ने कहा ऐसा है तो तुम कांटो मत । सांप ने ऐसा ही किया । अब तो लोग उस पर पत्थर फेकते थे घायल कर बच्चे भी मजा लेते थे ।
महात्मा जी एक दिन फिर उसी रास्ते से गुजरे । लहू-लुहान सांप उनके सामने आया तब महात्मा ने पूछा 
ऐसी दशा कैसे हुई 
सांप ने सारा हाल कह सुनाया 
महात्मा जी ने कहा
मैंने तुम्हें डसने - काटने को मना किया था फुफफाकरने को नहीं। निर्बल की कदर कोई नहीं करता ।
सांप को समझ आ गया अब वह फुफकारने लगा जिससे सब उससे दूर रहने लगे और सताना छोड़ दिया 
   अपनी शक्ति का एहसास कराना जरूरी है नहीं तो यह दुनिया जीने नहीं देगी ।

Happy Nag Panchmi

सावन का महीना है 
नागपंचमी का त्यौहार है
सर्पों और नागों की पूजा
बाबा भोलेनाथ के प्रिय
उनके गले का हार 
बनी रही नाग देवता की कृपा अपरंपार 
विषधर की भी पूजा
ऐसी भारतीय संस्कृति नहीं कोई दूजा 
हर जीव है इस पृथ्वी का अंश
सबकी ही है अपनी महिमा 
हलधर का साथी
ये सांप हैं उनके लिए उपयोगी 
अमृत ही नहीं विष की भी जरूरत 
तभी रहता पृथ्वी का संतुलन।  
     Happy Nag Panchmi 

Sunday, 20 August 2023

श्रावण मास आया है

श्रावण मास आया है
हरियाली तीज लाया है
शिव - पार्वती का पूजन
हर कुंवारी और ब्याहता की इच्छा 
मनमांगा वर और सुहाग की मंगल कामना 
हर मंदिर के द्वार खडे है याचक 
बज रही घंटिया 
पुष्प- हार , फल - दूध , जल से
किया जा रहा प्रसन्न आराध्य को
झूले पडे है डालों पर
गीत गाएँ जा रहे हैं 
हरी - हरी चूडियां छनकती 
हाथों पर मेहंदी सजती 
सुहाग की निशानिया 
श्रृंगार का सामान 
बिक रहे हैं जोर - शोर से
बाजार अटे पडे हैं 
नए-नए परिधानों से
पकवानों की तैयारी 
उपहारों की आशा 
कुछ न कुछ सबके मन में समाया 
तभी तो सावन सबको भाता 
सब देखते राह सावन की 
अपने मनभावन की ।


मीराबाई क्या केवल कृष्ण दीवानी??

मीरा तुम केवल कृष्ण दीवानी थी क्या ?
कृष्ण प्रेम में महलों को छोड़ भटकने वाली 
केवल प्रेम दीवानी नहीं उस वक्त की सबसे सशक्त नारी
वह नारी जो कभी परम्पराओ के आगे झुकी नहीं 
लोक - लाज और कुल की मर्यादा सब छोड़ चली
साधु - संतों के साथ हो ली
दर दर भटकती रही 
भजन गाती रही 
कृष्ण का गुणगान करती रही
पति की मृत्यु पर सती होनेवाली राजपूतनी नहीं 
एक सामान्य और विद्रोहणी नारी
समाज की परवाह न करने वाली
जो किसी को रास नहीं आया
मारने के प्रयास किए गए पर सब असफल 
परदा प्रथा को छोड़ा
स्त्री- पुरुष समानता 
जिस क्षेत्र पर पुरूषों का एकाधिकार 
उसी में अपना नाम स्थापित किया 
पुरुष संतों के साथ घूमने वाली 
एक राजा की पत्नी 
महलों की रानी 
बनकर ही नहीं 
अपने लिए एक अलग रास्ता अख्तियार किया
जो उनको पसंद था
थोपी हुई परंपरा को दरकिनार किया 
बदनामी और लांछनों को सहा
मन ने जो कहा वह किया
आज मीरा को जो हम जानते हैं 

वह केवल कृष्ण दीवानी नहीं जो यह कहती रही
मैं तो केवल कृष्ण दीवानी,  मेरा दर्द न जानो कोय 

आज हम मीराबाई को पढते हैं 
किताबों में विद्यमान है वे
भक्ति का जब नाम आता है 
तब कृष्ण भक्त में सबसे अग्रणीय
यह वह  संघर्षशील नारी है जिसने अपनी पहचान अपने बल पर स्थापित किया ।



Saturday, 19 August 2023

खत का दौर

वह दशक अलग था
पत्र का जमाना था
पोस्ट कार्ड,  अंतर्देशी पत्र , लिफाफा , रजिस्ट्री,  तार 
ये माध्यम थे 
अपनी बात पहुंचाने का
संवाद का
आज 21 वी सदी में पदार्पण 
आइ टी , नेट , सोशल मीडिया का जमाना 
वट्सअप,  फेसबुक  , इंस्टाग्राम 
माध्यम कोई भी हो
संबंधों का धागा मजबूत बनाने में सभी की भूमिका 
कल का या आज का
ई - मेल , व्हिडोयों काॅल 
अब तो आमने - सामने बातचीत
इजहार के लिए इमोजी
अब शायद खत , खत्म हो गये हैं या हो रहे हैं 

अब कबूतर जा जा 
फूल तुम्हें भेजा है खत में 
मिले जो खत तेरा
       ऐसे गाने नहीं बनेंगे 
फिर भी वह दौर भी एक हसीन दौर था
खत भेजने और इंतजार में कब समय बीत जात था पता नहीं 
खत का कुछ मजमू हमें आज भी याद है 
कभी-कभी यादों के झरोखे में झांक लेते हैं।       

नीले आकाश तले

नीला आकाश 
खुला आसमान 
उसमें चैन की सांस 
वह तो तब ही आती है 
जब सर पर सीमेंट का छत हो
नीला वितान तले दुनिया की मौज ।
मौज - मस्ती धरी रह जाती है
जंगल की सैर का मजा तब
जब कहीं अपना भी एक घर हो

उनसे पूछो जो नीले वितान तले रहते हैं 
गर्मी,  ठंडी  , बरखा की मार झेलते हैं 
किसी तरह एक छत हो जाएं सर पर

प्रकृति का सौंदर्य तभी भाता है
जब संपन्नता भी साथ हो
एक गांव लगें  सबसे प्यारा,  सबसे न्यारा 
उसी को छोड़ चल पडते हैं 
उस शहर की ओर 
जहाँ सांस लेना भी दूभर 
यही विडंबना है जीवन की
जो अच्छा लगता है
उसके साथ रहता नहीं कोई ।

रिश्ते को वक्त

रिश्ते को वक्त दिया जाना चाहिए 
                              बहाने नहीं 
रूठी हुई खामोशी से 
                   बोलती हुई शिकायतें ज्यादा बेहतर होती है
मिल - बैठकर बतियां ले
                          मन का गुबार निकाल ले
कुछ तेरा कुछ मेरा 
                   शिकवा  - शिकायतों का दौर चला ले
कहीं तुम सही कहीं मैं गलत 
                     यह भी तो मान ले
एक न एक दिन खामोश हो जाना है
                     उसके पहले बातों का दौर चला ले
अपनी व्यस्तता में से भी कुछ पल चुरा ले
                     पता नहीं फिर बात हो न हो
                      हम हो न हो 
यह पल तब ढूंढते फिरो 
                      जब बात करने वाला ही न हो 
प्यार- अपनेपन का खाद - पानी देते रहें 
               रिश्ते  पुष्पित- पल्लवित होते रहे
चुप्पी का जंग उनमें न लगे 
             कुछ पल तो गुजार लो
अपनों के  शुक्रगुजार में। 
                 
            

हवा और भावना

हवा दिखाई नहीं देती
महसूस कराती है
मैं हूँ यही 
तुम्हारे आसपास 
तुम्हारी हर साँस में समाई
मुझे देखने की कोशिश मत करना 
मैं कभी नहीं दिखुगी 
हाॅ तुम्हारा ख्याल जरूर रखूगी 
तुम्हारे आसपास ही मंडराती रहूंगी 
यही हाल भावनाओं का है
भावना दिखती नहीं 
महसूस होती है
अपनेपन और प्यार में 
बिना कहे बिना सुने
मन को मन से जोड़ती है
माँ की छडी भी फूल समान
पिता की डांट में भी दुलार 
बहन से झगड़े में भी प्यार 
कुछ न समझाना है 
न कहना है
प्यार की भाषा को शब्दों की जरूरत नहीं 
प्रकटीकरण की आवश्यकता नहीं 
ऐसा ही होता है
हवा और भावना का मिजाज 

हार - जीत

हार के आगे ही जीत है
हर बार जीता ऐसा तो होता नहीं 
कई बार हारा 
कई बार गिरा
कोशिश जारी रहा 
गिरते रहे , उठते रहे
हारते रहे , जीतते रहे
जीत में हार का बडा योगदान 
हारते नहीं तो जीतते नहीं 
हर हार में जुनून था जीत का
जीतुगा जरूर 
इस हार से हार नहीं मानूँगा 
आज तो ऐसा लगता है
हार भी कह रहा है
जानता हूँ तुम जीतोगे 
मुझे हराकर ही मानोगे 

Wednesday, 16 August 2023

पारसी तो पारस हैं। नवरोज मुबारक

पारसी तो पारस है भारत के
यह तो भारत माता के वैसे लाल हैं
जो अनमोल हैं
आए कहीं से समाहित हो गए 
हिंदूस्तान में
यहाँ रहकर उन्होंने हर कर्तव्य अदा किया
माॅ भारती को गर्व है
स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष हो
औद्योगिक विकास हो
ये कहीं भी पीछे नहीं रहे
मैडम भिखाजी कामा 
दादा भाई नौरोजी
जमशेद जी टाटा
होमी जहांगीर भाभा
नाना पालखी वाला
ऐसे न न जाने कितने 
वाला , वाच्छा , नरीमन 
यहाँ तक कि ज्योतिष में
बेजाद दारूवाला
और आज सबकी जबा पर जिसका नाम
वे हैं आदरणीय 
   रतन टाटा
ये तो चंद नाम है
ऐसे न जाने कितनों का योगदान
शांतिपूर्ण अपना काम
न दंगा न फसाद
कानून का पालन करना
अन्याय तो कभी न सहना
सबकी आबादी बढ रही तो
इनकी घट रही
इनकी तो भारत को जरूरत है
नवरोज मुबारक हो
जीओ पारसी

Monday, 14 August 2023

आज स्वतंत्रता दिवस है

आज हवा भी स्वतंत्र है
झूम झूम कर कह रही है
झंडा ऊंचा रहे हमारा 
चिडियाँ चहचहा रही है
पंख फैलाकर उडान भर रही है 
यह पेड़ भी सरसरा रहे हैं 
हरियाली से भरे भरे
खडे हैं ठाठ से
सूरज भी सिंदूरी आभा फैला रहा है
आसमान भी शुभ्र सफेद बादलों के साथ 
लगता है धरती से आसमान 
सफेद , हरा और केसरिया 
सब झंडे का स्वागत कर रहे हैं 
भारत की स्वतंत्रता के साक्षी 
देशभक्ति का गान चारों तरफ
बच्चे से बूढे सब उत्साहित- आनंदित 
नये - नये  कपडे पहने सब 
सलामी दे रहे 
हमारे प्यारे झंडे को
राष्ट्र धुन बज रही है
शहीदों को याद किया जा रहा है
लगता है वक्त यही ठहर जाएं 
झंडे को देखते रहें 
सबसे ऊंचा सबसे अच्छा 
इसकी तो छटा ही निराली 
हमारा भाग्य 
हमारा कर्म 
हमारा धर्म 
सब इसमें ही संचित 
न जाने क्या- क्या बलिदान देना पडा है
आज उनको भी याद किया जा रहा है
ऑख भर आ रही है
मुख पर मुस्कान 
एक अलग ही तरह के तेज से ओत-प्रोत 
हर शख्स हर भारतीय 
हमारी सांस 
हमारी धड़कन 
सब इसमें समाई 

जब तक यह है 
तब तक हम है 
     जय हिन्द 
              जय हिन्द की सेना 




झंडा ऊंचा रहें हमारा

हम आजाद देश के वासी
स्वतंत्रता हमें सबसे प्यारी 
अपना देश अपना झंडा
हर घर फहरे तिरंगा
आन - बान - शान हमारी
यह पहचान हमारी
भारत माता अपनी माता
हम हैं इसकी प्यारी संतान 
माता और संतान 
सबसे अटूट विश्वास 
कर्तव्य है हमारा
रखना है इसका सम्मान 
शांति और भाईचारा 
यही संदेश हमारा
हर घर हो खुशहाली 
नहीं कहीं कोई मारा-मारी 
गले मिले प्रेम से
तिरंगा को ले हाथ में 
लगाएं सब नारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा 
झंडा ऊंचा रहें हमारा 
 

स्वामी भक्ति

सुना है 
पहले लोग स्वामी भक्त होते थे
नमकहराम नहीं नमक हलाल होते थे
इतिहास ऐसे ढेरों किस्से कहानियों से भरा पडा है
आज तो यह हालत है
अपने मालिक को ही लूट लेना
उसकी हत्या करना
काम करने वाले लोग 
मालिक की रग - रग से वाकिफ होते हैं 
वह उनका ड्राइवर हो रसोइया हो दरबान हो या कोई और
कुछ भी कर सकता है
वह भी क्या जमाना होगा
स्वामी भक्ति  का 
नैतिकता से भरपूर 
आज तो हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते
किसी पर विश्वास नहीं 
हाँ पशु को छोड़कर 
उसके दिमाग नहीं होता 
दिमाग वाले ही खेल खेलते हैं 
ईमानदारी,  सच्चाई सब लुप्तप्राय 
बस हड़पना है 
वह किसी भी तरह 
न कर्मचारी गुलाम होता है
न मालिक भगवान होता है
दोनों के बीच संबंध होता है
एक - दूसरे की जरूरत होते हैं 
एक को काम और पैसा तो दूसरे को आधार 
उसको निभाना दोनों की जिम्मेदारी 

माँ है तो

माँ न हो तो घर खाली खाली सा
माँ हो तो खिला - खिला सा
सब हो पर वह न हो
तब सब रीता - रीता सा 
ऐसा क्या है उसमें 
जो और किसी में नहीं 
वह जाती है तो ऐसा लगता है
घर भी अपने साथ ले जाती है
आती है तो लगता है सब भर गया
कुछ बात तो है उसमें 
वह सबके साथ होती तो है
फिर भी हम उसमें ही सब देखते हैं 
घर आकर उसे ही ढूंढते हैं 
उसकी नजरों को देखने को व्याकुल रहते हैं 
उसकी आवाज सुनने को आतुर रहते है
घर में सब कुछ हो
खाना रखा हो पर उसके बिना उसमें स्वाद कहाँ 
उसके हाथ का परोसी सुई सुखी रोटी भी माल पुआ 
उसकी प्यार भरी नजर 
उसे न लगे किसी की नजर 
उस बिन सब सूना 
उस जैसा कोई न दूजा 


सास - बहू

जितनी उत्साह से बेटे की शादी करती है एक माँ 
बहू के लिए सपने संजोती है
वही रिश्ता सबसे बदनाम क्यों 
अगर चार महिलाएं बैठे
सास - बहु की चर्चा न हो
यह हो नहीं सकता
एक व्यक्ति के जीवन के दो अमूल्य रिश्ते 
माँ  और पत्नी 
अगर ठीक-ठाक है तब कोई बात नहीं 
अगर नहीं तो इसका खामियाजा सबको भुगतना पडता है
बेटे को , पत्नी को और माॅ को 
वह इन दोनों के चक्र में उलझा रहता है
दोनों दिल के करीब 
तब समझदारी बहुत जरूरी है
एक - दूसरे को समझना है 
कोई किसी को छिन नहीं रहा है
अपना एकाधिकार स्थापित करने से कुछ हासिल नहीं 
माँ को समझना होगा
जिसे ब्याह कर लाई है वह उसकी जीवनसंगिनी है
मुझसे ज्यादा उसका हक है
पत्नी को भी समझना होगा
उसके आने से पहले माँ उसके जीवन में हैं 
आज तो सोच ऐसी हो गई है
ब्याह उसी से करना है जिसका परिवार हो
माँ भी हो
हाँ साथ नहीं रहना है
अगर माँ न होती तो पति कहाँ से आता
यह समझना होगा
दोनों का अपनी-अपनी जगह
पति से प्यार और माॅ से दुर्व्यवहार 
दोनों तरफ से हारा तो पुरुष है
उसको खुश देखना है तो
सास और बहू को सामंजस्य से रहना होगा ।

कामकाजी महिला की पीडा

मैं कामकाजी महिला हूँ 
मेरी पीड़ा मैं ही जानती हूँ 
सुबह-सुबह जब घर का काम निपटा कर 
चाय - नाश्ता और टिफिन पैक कर 
जल्दी जल्दी तैयार हो घर से बाहर निकलती हूँ 
एक हाथ में पर्स और बच्चे का बैग
दूसरे हाथ में बच्चा 
ऑटो रिक्शा मिला तो ठीक नहीं तो पैदल ही 
बच्चे को प्ले ग्रुप में छोड़ती हूँ 
ऑख भर आती है पर किसी तरह अंदर ही अंदर जब्त 
बच्चे को रोते देखती हूँ और जबरदस्ती गोद से देती हूँ 
तब दिल पर क्या बीतती है यह मुझसे ज्यादा अच्छा कौन जानेगा 
आप जाओ यह अंदर जाकर अपने आप ही चुप हो जाएंगा
सही भी है 
जिद किससे करेंगा 
अकेला वही नहीं है ना
उस जैसे कितने बच्चे हैं 
कभी कभार सी सी टी वी देख लेती हूँ 
तब भी मायूस हो जाता है मन
घर पर होता तो इसको बादाम पीस कर खिलाती 
नाचणी का थेपला बना कर खिलाती 
गोद में लेकर दुलराती 
जैसे ही ऑफिस छूटा 
भागते हुए पहुँचती हूँ 
बच्चे को गोद में लेकर चिपटाती हूँ 
सारा जहां मिल गया जैसे
यह मेरी नहीं हर वर्किंग वूमैन की कमोबेश यही स्थिति है
कॅरियर और पैसा बनाने के चक्कर में 
यह जरूरी भी है
आज की मांग है
अगर लाइफस्टाइल अच्छी चाहिए 
बच्चों का भविष्य बनाना हो
तब यह तो करना ही पडेगा 
कुछ तो मूल्य चुकाना पडेगा 
माँ बने हैं तो फर्ज है ही
लेकिन इस चक्कर में दोनों पीसते हैं 
माँ और बच्चा

Sunday, 13 August 2023

रिश्ते

मुलाकात हो ना हो
एहसास जरूर हो
वह अपनेपन का हो
प्यार का हो
रिश्तों में गर्माहट लाने का हो
तब कभी-कभी बोल लिया करो
हाल-चाल पूछ लिया करो
माना तुम बहुत बिजी हो
थोडा तो समय निकाल लिया करो
रिश्तों की भी भूख होती है
उनको समय-समय पर खाद - पानी की जरूरत होती है
नहीं तो मुरझाते देर नहीं लगती
उनको हरा - भरा रखना है
प्यार और अपनत्व से सींचना है
तब वह भी खिलखिलाएगे 
जी भर कर मुस्कराएगे 
यादों में गोते लगाएँगे 
मन को मन के करीब 
रिश्ते ही लाते हैं 
तोड़  नहीं जोड़ कर देखें 
जिंदगी न लहलहा उठे तो कहना 

Friday, 11 August 2023

सत्ता के लिए

एक जमाना था जब हमें अपने नेताओं के बारे में पता होता था
कुछ दिन पहले काॅलेज के कुछ बच्चों को पूछा गया
उनको पता नहीं कि उनके प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन है
राष्ट्रपिता कौन हैं
राष्ट्रपति कौन हैं 
गृहमंत्री कौन हैं 
सही भी है 
आज नेता दल बदल रहे हैं 
पार्टी तोड़ रहे हैं 
नैतिकता  पार्टी के प्रति समर्पण नहीं दिखता
स्वार्थ और सत्ता 
सबको मलाईदार कुर्सी 

आज यहाँ तो कल वहाँ
जिसका पलडा भारी 
जा मिलते वही 
भ्रष्टाचार का नाम लेते हैं और कंठ तक भ्रष्टाचार में डुबे 
अपने को किसी तरह बचाना है
उसके लिए कुछ भी करना है 

हमारे संसदीय नेता

ये नेता हैं हमारे
आदर्श हैं हमारे
जनता जनार्दन हैं 
जनता की आवाज है
बहुत बडी जिम्मेदारी हैं इनकी
जनता के प्रतिनिधि हैं 
चुने हुए सांसद 
इनको भेजा गया है 
जनता की समस्याओं के निदान के लिए 
प्रजातंत्र का मंदिर संसद 
जिस तरह से व्यवहार 
आरोप - प्रत्यारोप
छींटाकसी और तानेबाजी 
किसी को नीचा दिखाना
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष 
घटिया से घटिया स्तर पर उतरना
अभद्रता की सारी सीमा पार करना
नारेबाजी और जुमलेबाजी 
पहले भी बहस होती थी
आरोप - प्रत्यारोप होते थे
लेकिन इस स्तर पर नहीं 
इतनी ओछी राजनीति 
ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना
कि सामने पडे तो हिचक हो
लगता है एक - दूसरे के कट्टर दुश्मन हो
एक देशवासी न हो
सब देख रहे हैं 
आने वाली पीढ़ी देख रही है
अपने नेताओं को
क्या मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं 
दुध का धुला तो कोई नहीं है

गुप्त जी की पंक्तियाँ याद आ रही है

टुकड़े टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा 
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है 
पांडव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा 

Friday, 4 August 2023

बेटी - बेटा

वह बेटी थी इस परिवार की
यह घर उसका भी था
बहुत कुछ किया था इस घर के लिए
घर की हर जगह पर उसके निशान थे
घर लेने से लेकर घर बनाने तक उसका योगदान 
घर का हर एक कोना कभी अपना था
वह आज पराया हो गया 
रहना हो तो रहो ठीक से नहीं तो जाओ
जब अपना ही घर पराया हो 
तब दूसरे के घर को अपना घर कैसे कहें 
यही अनिश्चितता रहती है लडकी की
जब अपने घर में ही परायापन 
कोई अधिकार नहीं 
ऊपेक्षित और दया का पात्र 
बोझ समझा जाएं 
अगर भाग्य साथ न दे 
कुछ सही न हो
तब अपनों का आसरा 
लेकिन वह भी नहीं रहता
माँ  - बाप से मायका 
कभी-कभी वह भी उनके रहते हुए नहीं रहता
या तो वे मजबूर होते हैं 
या अड़ियल 
बेटों के प्रति जो रवैया वह बेटी के प्रति नहीं 
यह कुछ अपवादों को छोड़कर 
हर भारतीय घर की बात 
बेटी को हक देने की बात पर करंट लग जाता है
या तो संबंध रखें या अपना हक ले 
यह भी एक शर्त 
प्यार से अधिकार क्या सम्मान भी नसीब नहीं। 

ऐसा प्रेम किस काम का

माली ने बडे जतन से पौधा  लगाया
पौधे को खाद पानी देता रहा
सींचता रहा
पौधा बढता रहा
उस पर अब कली आने लगी
कली फूल बनने लगी
आते जाते सबके आकर्षण का केंद्र 
माली किसी को पास फटकने न देता
फूल को देख लोग ललचाते
कोई तोड़कर भगवान को समर्पित करना चाहता 
कोई सुगंध लेना चाहता 
कोई दरवाजे पर का वंदनवार बनाना चाहता 
कोई गजरे में गूथना चाहता 
कोई प्रेमिका को भेंट देना चाहता 
माली की दृष्टि तेज पकड़ मजबूत 
फूल खिला और मुरझा गया
मुरझा कर जमीन पर गिर पडा 
मिट्टी में मिल गया 
जीते जी सोचता रहा
मैं किसी के काम न आ सका
बस पिंजरे में बंद रहा
अपने मन का कुछ कर न सका
बागबान ने इतना सुरक्षित घेरे में रखा
जीवन ही व्यर्थ हो गया 
ऐसा प्रेम किस काम का 
जो असतित्व को ही समाप्त कर दे 
मुझसे तो अच्छा वह जंगल का फूल है
जो अपने आप खिलता है
अंधड- तूफान सहता है
हवा के हिचकोले भी लेता है
मन मर्जी चलती है उसकी ।

Thursday, 3 August 2023

शाकाहार- मांसाहार

आजकल शाकाहारी और मांसाहारी भोजन पर विवाद चल रहा है 
यह सब तब तक ठीक है जब तक किसी को आपत्ति न हो
कभी-कभी यह दोनों एक - दूसरे पर हावी होने लगते हैं 
जबरदस्ती कराने लगते हैं 
हमने यह भुगता है और कईयों के साथ ऐसा वाकया होता है

मेरी पहली नौकरी लगी थी केन्द्रीय विद्यालय में एढाक बेसिस पर वह इस कारण कि दो लोग का ट्रांसफर हुआ था उसमें एक जैन सर गणित के एक सिंह सर हिन्दी के 
दोनों जिगरी दोस्त  । हुआ क्या सिंह सर अपने मांस और हड्डी चूसने की बात और जैन सर मांस खाने वालों की बुराई
एक दिन दोनों बात करते करते सीढियों पर ही आपस में भीड़ गए , छात्रों ने छुडाया।  सूद सर प्रिंसिपल थे उन्होंने कहा कि जो स्वयं लड रहे हैं वे बच्चों को क्या शिक्षा देंगे 

दूसरा अनुभव लोकल ट्रेन का है दो सहेलियां बात करते करते विवाद कर बैठी
एक बोली दही खाते हैं न तो नानवेज है वह । इस बात पर दो गुट बन गए और बडे अरसे तक बात नहीं हुई  ।
   यह मेरा अपना अनुभव है । हमारे पडोसी गुजराती- मारवाड़ी हुए हैं ज्यादातर। हम नानवेज खाते थे पर छुपाकर 
कभी भनक भी न लगने देते थे फिर भी सफाई कर्मचारी से पूछते थे । वह लिहाज था अन्यथा हम अपने घर में खाएं क्या फर्क पडता 
जैन सोसायटी में फ्लैट लेने गए। बातचीत हो गई पर सरनेम देख मना कर दिया 
ऊपर के फ्लोर पर एक बंगाली फैमिली रहती थी वे बेचारे दरवाजा भी खुला नहीं रख सकते थे
यहाँ तक कि बच्चों के साथ खेलना भी नहीं 
इनकी मोनोपली चलती है मुंबई में तो यह आम बात है और किसी से छिपा नहीं है
अपना अपना कल्चर है 
शाकाहारी को मांसाहारी से परहेज होगा यह स्वाभाविक है
उनको गंध आएगी , घृणा होगी 
पर जबरदस्ती नहीं है न 
कोई किसी को खिला तो नहीं रहा है न
एक - दूसरे के प्रति सहनशीलता रखनी पडेगी
एक ही घर में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों रहते हैं गाॅवो में तो चूल्हा और बरतन सब अलग होते हैं 
खाने के बाद स्नान करें तो ही छू सकते हैं 
सुधा मूर्ति जी का अपना नजरिया है अपनी इच्छा है 
यह बात तो हर घर में देखी जाती है
जो नहीं खा रहा है तब वह इसे स्वीकार नहीं करेगा कि एक ही चम्मच या बर्तन उपयोग है
इसके बचाव के रास्ते  हैं 
जरूरत है बस थोडी-सी सावधानी और भावनाओं की कदर

Wednesday, 2 August 2023

व्यक्ति और समष्टि

गहराई खामोश रहती है 
ऊंचाई बोलती है
गहराई अपने असतित्व को मिटाती है तब वह नींव की ईंट बनती है
ऊंचाई अपने को स्थापित करती है तभी वह कंगूरे के रूप में दूर तक दिखाई पडती है
एक नीचे अंधकार में जाती है 
एक अपने को चमकदार बनाती है 
अपने को मिटाना इतना आसान नहीं होता
अहमियत तो सभी को चाहिए 
इस गहराई की वजह से ऊंचाई खडी है
इसका भान उसे भी होगा पर शायद जताना नहीं चाहती 
जिस दिन गहराई हिलेगी ऊंचाई अपने आप भरभरा कर गिर जाएगी 
ऐसे ही हमारे समाज में 
हमारे परिवार में 
ऐसे लोग रहते हैं जिस पर परिवार टिका रहता है पर उसकी अहमियत नहीं पता चलती
हल्के में लिया जाता है 
हर ऊंचाई के पीछे किसी का त्याग और सहयोग  छिपा होता  है
यहाँ व्यक्ति अकेला कुछ नहीं कर सकता 
न जाने कितनों का योगदान आपकी सफलता के पीछे
कर्म तो सब करते हैं 
परिणाम समान नहीं होता
यह नहीं कि आप सफल हो गए 
बडे हो गए 
तो वह आपकी उपलब्धि हो गई यह गलतफहमी है
कैसा वातावरण  , कैसा परिवार  , कैसी शिक्षा,  कैसा पडोसी , कैसा मित्र और न जाने कितने 
भाग्य को हम कैसे भूल जाएं 
उसकी भी तो भूमिका 
व्यक्ति कितना ही  व्यक्तिनिष्ठ  क्यों न हो समष्टि का हाथ तो होता ही है ।

Tuesday, 1 August 2023

गाँव गाँव गाँव

गाँव गाँव गाँव 
सोशल मीडिया पर इनकी भरमार 
कोई चित्र डाल रहा है 
कोई यादें लिख रहा है
चूल्हे का चित्र 
ब्लेक एंड व्हाइट टेलीविजन 
संयुक्त परिवार 
खेत - खलिहान 
कच्चा घर 
सौंधी रोटी
और न जाने क्या क्या 
यह वे ही हैं 
जो गाँव छोड़ शहर को पलायन किए हैं 
बडा घर छोड़ झुग्गी  - झोपड़ी में रह रहे हैं 
कुछ लोग आगे भी बढ गए हैं 
सुख - सुविधा से लैस 
जो एक बार आया वह वापस नहीं गया
यह हकीकत है  कुछ अपवादों को छोड़कर 
यहाँ तक कि गर्व से कहेंगे 
शहर में अपना मकान है
बडे शहर में न सही पास के छोटे कस्बे में जाएंगे 
किराए पर रहेंगे
बच्चों को पढाना है
न जाने और कितने बहाना है
सच को स्वीकार न करना
दूसरों को उपदेश देना
अरे जाओ न भैया 
रहो गाँव में 
किसने मना किया है
हमें तो शहर में ही रहना है
रोजी रोटी यही दे रहा है
रहें शहर में गुणगान करें गाँव की
यह तो हमारी फितरत में नहीं 

जीना यहाँ  , मरना यहाँ 
इसके बिना जाना कहाँ 

आभारी है इस शहर की 
जिसने सब कुछ दिया है
नाम , सम्मान  ,पहचान 
मकान , रोजगार 
यही रहना है 
गाँव जाना है बस पर्यटन के लिए 
हमको खुला आकाश नहीं सर पर छत चाहिए ।

छोटी छोटी बातें

झिलमिल झिलमिल करते तारे
लगते कितने प्यारे 
झिलमिल  झिलमिल करती ओंस की बूंदे 
लगती कितनी मासूम
खिलती फूलों की कलियाँ 
लगती कितनी कोमल 
नन्हा बच्चा जब किलकारी मारता 
तब लगता है वह कितना सुंदर 
छोटी छोटी बातें 
छोटी छोटी ये क्रियाएं 
मन को छू लेती है
अनायास ही मुस्कान से भर देती हैं 
जीवन को जीवन से लबालब कर देती है ।

बांझ ??

बांझ औरत ही नहीं होती
पेड़ भी होता है
यह मुझे पता नहीं था 
हमारी खिड़की के बाहर आम का पेड़ लगा था पहले तो छोटा सा था
धीरे-धीरे बडा होने लगा 
एकदम हरा - भरा,  पत्तों से भरा हुआ बहुत सुन्दर 
सोचा अब आम आएंगे लेकिन प्रतीक्षा अधूरी रह गई 
न जाने कितने बरस बीते आम नहीं आया
कैसा पेड़ है इतना हरा भरा पर फल नहीं 
बाद में किसी ने कहा कि 
यह बंझा है इसलिए 
पेड भी बांझ होता है यह पहली बार पता चला
लोग उसकी छाया में बैठते हैं 
पूजा के लिए पत्तियां तोड़ते हैं 
बच्चे डालियों पर झूलते हैं 
हवन के लिए लकड़ी ले जाते हैं 
पर फल नहीं तभी उसका वह महत्व नहीं 
बेकार है यह 
दिखने में ही ऐसा है
फल तो देता नहीं 
यह शायद निसंतान औरत की पीडा है
दुधारू गाय की चार लात भी भली
 सर्वगुण संपन्न हो पर निसंतान हो 
तब वह महत्व नहीं।