Sunday 24 April 2016

जंगल - जंगल बात चली है ,अरे,चढ्डी पहन के फूल खिला है

अस्सी के दशक की बात है दूरदर्शन पर मोगली को देखने के लिए बच्चे इंतजार करते थे
आज वह बच्चे भी पिता बन चुके हैं और अपने बच्चों को मोगली की फिल्म दिखाने ले जा रहे है
इस तरह अपने बचपन की याद को ताजा तर रहे हैं
रेडयार्ड किपलिंग की कहानी का नायक मध्यप्रदेश के घने जंगलों में पाया जाने वाला बच्चा
जो जानवरों के बीच रहता और पलता है
ऐसी बहुत सी घटनाएं होती थी जहॉ भेडियें गॉव में घुस आते थे और बच्चों को उठा ले जाते थे
मॉए डरती थी और छुपा कर रखती थी
बच्चों को खुले में नहीं छोडती थी
मोगली ऐसा ही बच्चा है जो भेडियों के बीच पलता- बढता है
पर उसको मारता नहीं
ऐसी बहुत सी कहानियॉ है जहॉ दो जुडवां बच्चे अलग हो जाते हैं
एक राजा के घर तो दूसरा जानवरों के साथ पलते - बढते हैं
वातावरण का असर भी जीवन पर पडता है यह दिखाने के लिए
उस समय बच्चे कोकाकोला का बिल्ला जमा करते थे जंगल बुक पाने के लिए
सुबह आवाज गूंजती थी चढ्डी पहन के फूल खिला है
आज फिर लोग अपने बचपन में जा रहे हैं
अपने बच्चों को लेकर
फिल्म क्या खूब बनी है और देखने का मौका नहीं गंवाना चाहिए
कहॉ ऐसा मौका बार - बार आता है जहॉ बाप -- बेटे की पसन्द एक ही हो
नई पीढी और पुरानी पीढी साथ- साथ इन्जॉय कर रही हो और गुनगुना रही हो
जंगल - जंगल बात चली है चड्ढी पहन के फूल खिला है

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