Saturday 15 October 2016

विद्यार्थी से नेता बनी की याद

आओ फिर स्कूल चले ,बचपन की याद ताजा करे
वह मौज - धमाल ,मस्ती
वह सहेलियों संग गप्पे लडाना
वह पीछे की बेंच पर जाकर बैठना
कक्षा के बाहर दंडित हो खडे रहना
बास्केट से खाना निकालना ,झुंड बनाकर बैठना
कुछ अपना खाना ,बाकी दूसरो को देना
बिना कारण हँसना - खिलखिलाना
बारीश पर कोर्ट पर भीगना
टीचर्स डे ,फन फेयर जम कर मनाना
शिक्षिकाओं का सर पर हाथ
सहेलियों का वह साथ , न जाने कहॉ गुम हो गया
अब तो बस बच गई है उनकी याद
आज आई हूँ अपनी उसी पाठशाला में
छात्रा नहीं नेता हूँ मैं अब
पर बचपन तो बचपन ही होता है
संसद भवन कितना भी विशाल क्यों न हो
पाठशाला जैसी वह बात कहॉ
सहेलियों के साथ लडना - झगडना
और नेताओं के साथ वाद- विवाद
दोनों में जमीन - आसमान का फर्क
बचपन की सीख बनी युवावस्था की ढाल
पाठशाला में स्वच्छंद घूमने वाली बालिका
अपने क्षेत्र में घूम रही है
पाठशाला से a b c d और क ख ग घ का ककहरा
पढनेवाली अब धडल्ले से भाषण दे रही है
सब कुछ बदल गया पर नहीं बदली बचपन की याद
आज उसी बचपन को साझा करने आई हूँ
अपनी पाठशाला को सम्मान देने आई हूँ
बचपन को फिर जीने और याद करने आई हूँ
धन्यवाद करू कैसे
मैं कोई और नहीं आपकी वही नन्हीं छात्रा हूँ

No comments:

Post a Comment