Friday 21 October 2016

क्षमा बडन को चाहिए

क्षमा बडन को चाहिए ,छोटन को उत्पात
यह दोहा तो सुना और पढा था पर आज इसका गहरा भाव समझ आ रहा है
हर जगह जंग और द्वंद छिडी है
नया- पुराना ,सीनियर- जुनियर ,युवा-बूढे
घर हो या ऑफिस
हर कोई दूसरों पर टूट पडने को तैयार
पहले लोग कहते थे
जवान खून है मुँह मत लगो
अगर अपनी इज्जत और सम्मान बनाए रखना है
आज का युवा उग्र हो रहा है
तनाव ,बेबसी ,बेकारी ,स्पर्धा के युग में
वह असुरक्षित महसूस कर रहा है
वह स्वयं ही मानसिक रूप से असंतुलित हो रहा है
दूसरी बडी वाली पीढी भी यह मानने को तैयार नहीं
क्षमा नहीं प्रतिस्पर्धा कर रही है
परिणाम अपनों के हाथों ही हत्या तक हो जा रही है
छोटी सी टेलीविजन देखने जैसी बात पर
रात को देर से घर आने पर टोकने पर
परिस्थिती विकट होने वाली है
अगर कुछ अनदेखा ,कुछ क्षमा ,कुछ धीरज न रखा गया        तो   
घर- परिवार और व्यक्ति को टूटने से बचाया नहीं जा सकता

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