Wednesday 30 November 2016

एक गृहणी की व्यथा

मैं एक घरेलू महिला
अपने खर्चों में कटौती कर वर्षों से पैसे जुटाएं
नहीं कभी अपने लिए मंहगा कपडा खरिदा
न ईच्छानुसार खर्च किया
पेट को काट- काट कर
बैंक में नहीं रखा डर के मारे
पता चल जाएगा तो ले लेगे घरवाले
अपने बच्चों की शादी- ब्याह ,पढाई- लिखाई पर मनमाफिक खर्च करूंगी
पर आज जो सरकार का फरमान आया है तो डर लग रहा है
इतने सालों की बचत का हिसाब कहॉ से लाऊ
सरकार से पहले ससुराल में हिसाब देना पडेगा
पति और परिवार को
कही मुझे गलत न ठहराया जाय
घरवालों की नजर में कहीं गलत न सिद्ध कर दी जाऊ
यह जमापूंजी कालाधन तो नहीं है
मेरी वर्षों की तपस्या है
मैं नहीं चाहती कि कोई मुझ पर उंगली उठाएं
साफ- सुथरी छवि कही दागदार न हो जाय
अब क्या करूं ??
न निगलते बनता है न उगलते
घर में रहे तो बेकार ,बैंक में रहे तो दूसरों का अधिकार

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