Sunday 20 November 2016

पैसा ही तो चलता है

पैसा बिना कुछ नहीं
सारे चलन- व्यवहार ठप्प
पैसा ही तो चलता है और चलाता है
अपने चारों ओर गोल- गोल घुमाता है
सम्मान भी दिलाता है
और न हो तो नीचा भी देखना पडता है
पेट भी इसी पर निर्भर रहता है
शिक्षा ,रहन- सहन ,घर
सब कुछ इसी पर निर्भर
यह पैसा ही व्यक्ति को
अर्श से फर्श और फर्श से अर्श तक पहुँचा देता है
इसके कारण ही समाज व्यवस्था चलती है
यह चलने की चीज है
जितना चलेगा ,उतना विकास
पर लोग छुपाकर रखते हैं
पहले जमाने में सिक्कों के रूप में
तो आज रूपए के रूप में
मंदिरों में और अलमारी में बंद कर रखा है
जिसका स्वभाव ही चलना हो
उसे बंद कर क्या लाभ
वैसे भी धन की देवी लक्षमी चंचल है
एक जगह टिकना उनका स्वभाव नहीं
पैसे को चलाइए ,दबाइए मत

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