Sunday 20 November 2016

मौत तो मौत ही है

रेल हादसे में हो या बैंक की कतार में
मौत तो मौत ही है
जान तो कीमती है
और उसका कोई सानी नहीं
मुआवजा दो या फिर नौकरी
गया हुआ तो वापस नहीं लौटने वाला
न जाने कितनों को पीछे बिलखते छोड गया
कभी न आने के लिए
बडा कार्य करना है तो ऐसा कुछ घटनाएँ होगी
यात्रा करनी है तो दुर्घटनाएँ भी होगी
क्यों पर इसका जिम्मेदार तो कोई होगा
ईश्वर तो नहीं है
क्योंकि यह मानव रचित संसार की देन है
जब हादसा हो जाता है
तब चेता जाता है और कभी- कभी तो वह भी नहीं
बैंकों की कतार पर मौते अब भी हो रही है
हर दिन किसी न किसी के मरने की खबर
रेल दुर्घटना पहले भी और अब भी
एक- दूसरे को दोष देने का सिलसिला जारी है
और रहने वाला है
पर जिसकी जान गई
उसका क्या??
उसके परिजनों का क्या??
यह सवाल तो जरूर है
कब उसकी समीक्षा होगी
राह निकलेगी
सरकार बदलती है
      पर
सवाल तो वही है

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