Thursday 8 December 2016

किन्नर और मॉ

  मैं मॉ हूँ बस मॉ
फिर चाहे वह बेटा हो बेटी हो या किन्नर
मेरी कोख से जन्म लिया
मुझे मॉ शब्द से नवाजा
मॉ तो बच्चे को नौ महीने कोख में रखती है
अपने खून- पसीने से सींचती है
उसके साथ कैसे अन्याय करे???
विधाता ने उसकी झोली में जो डाला ,वह स्वीकार्य
बेटी हुई तो ,किन्नर हुई तो वह क्या करे??
उसे फेक दे या उसके समाज को दे दे
समय बदल रहा है ,सोच भी बदल रही है
क्यों छुपाया जाय.         या
उसे ताली बजा- बजाकर मांगने के लिए छोड दे
वह भी इंसान है
उसमें भी हाड- मांस का जीव है
उसकी भी भावनाएं है
वह भी पढना - लिखना और ऊँचाई पर पहुंचना चाहती काम करना चाहती होगी ,भीख मांगना नहीं
हिचक छोड अपनी कोखजायी संतान को प्यार से अपनाना है
अपने पैरों पर खडे होने को प्रेरित करना है
यह काम मॉ ही कर सकती है
शुरूवात उसी से करनी होगी
मुर्गी  जैसी जीव अपनी संतान के लिए बिल्ली और चील से भिड जाती है
तो फिर आप क्यों नहीं???
समाज और परिवार से लोहा ले सकते हैं
संतान तो संतान ही होती है
हर रूप में बहुमूल्य
मॉ भी मॉ ही होती है ,सारी पीडा को हरनेवाली

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