Wednesday 1 August 2018

भस्मासुर की कथा

🕉 नमः शिवाय उमाशंकराय नमः 🕉
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आज हम आपको भष्मासुर की कथा बतायेंगे,शिव भी भयभीत हुए थे इस असुर के प्रकोप से?????
भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद आसान है। असुर हो, देवता हो या फिर कोई सामान्य मनुष्य, शिव ने कभी अपने भक्तों के साथ भेदभाव नहीं किया। अगर कोई सच्चे मन और श्रद्धा के साथ उन्हें याद करता है तो वह बड़ी आसानी से उसे अपना बना लेते हैं और उसकी हर इच्छा को पूरी करते हैं। इसीलिए महादेव के भक्त उन्हें भोलेनाथ के नाम से भी जानते हैं।
ऐसा नहीं है कि सभी भक्त सत्य और अच्छाई की रक्षा के लिए शिव का तप करते हैं या फिर शिव को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि कभी-कभार भक्तों की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वरदान देने का खामियाजा स्वयं ईश्वर को भी भुगतना पड़ा।
भस्मासुर नामक राक्षस, दुनिया का सबसे ताकतवर असुर बनना चाहता था। वह पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी बनकर सभी पर शासन करना चाहता था। साथ ही साथ वह शिव का बहुत बड़ा भक्त भी था। वह जानता था कि उसका तप शिव को प्रसन्न कर सकता है इसलिए शिव से वरदान पाने की लालसा में उसने महादेव की कड़ी तपस्या की।
भस्मासुर के अडिग ध्यान और शिव के लिए किए जा रहे तप ने कैलाश पर्वत पर बैठे शिव को भी हिला दिया। शिव इस सोच में पड़ गए कि कौन उन्हें इस कदर पुकार रहा है? अपनी दैविक दृष्टि से शिव ने देखा कि यह कठोर तप भस्मासुर द्वारा किया जा रहा है।
शिव, तपस्या में लीन भस्मासुर के पास पहुंचे और उसे आंखें खोलने के लिए कहा। शिव की आवाज सुनकर भस्मासुर का ध्यान टूटा और उसने अपने सामने महादेव को खड़ा पाया। एक समर्पित भक्त की तरह शिव को देखकर भस्मासुर भी उनके सामने नतमस्तक हो गया।
भस्मासुर ने शिव को देखकर कहा “ईश, आखिरकार आप आ ही गए।“ इस पर शिव ने कहा “तुमने मुझे इतनी तन्मयता के साथ याद किया है, मुझे तो आना ही था”। शिव ने भस्मासुर से वरदान मांगने को कहा।
भस्मासुर यह जान गया था कि महादेव उसकी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए हैं। वह सोचने लगा कि वह किसी भी वरदान का हकदार है। इस धारणा के साथ उसने जो वरदान मांगा उसे देना तो स्वयं भोलेनाथ के लिए भी असंभव था।
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भस्मासुर ने शिव से कहा कि उसे अमरता का वरदान चाहिए, अर्थात वह हमेशा इस पृथ्वी पर रहे और मौत भी उसका कुछ ना बिगाड़ सके। इस पर शिव ने कहा उसकी मांग पूरी तरह से प्रकृति के नियम के खिलाफ है, क्योंकि जिसने इस धरती पर जन्म लिया है, एक ना एक दिन उसका अंत निश्चित ही है।
भस्मासुर अपनी मांग पर अड़ा रहा और शिव अपने कथन पर। जब भस्मासुर को लगा कि उसे कोई वरदान दिए बिना ही शिव अंतर्ध्यान हो सकते हैं तो उसने अपनी मांग बदल दी और शिव से दूसरा वरदान मांग लिया।
भस्मासुर ने शिव से कहा कि वे उसे वरदान दें कि जब भी वह किसी के सिर पर अपना हाथ रखे तो वह व्यक्ति भस्म हो जाए। शिव ने भस्मासुर की यह बात मान ली। लेकिन भस्मासुर को यह वरदान देना शिव के लिए भी आफत बन गया।
जब भस्मासुर को शिव से यह वरदान मिला कि वह जिस किसी के भी सिर पर हाथ रखेगा, वह राख में बदल जाएगा तो सबसे पहले उसने शिव को ही अपना शिकार बनाना चाहा। शिव अपने द्वारा दिए गए वरदान को वापस नहीं ले सकते थे इसलिए महादेव को स्वयं भस्मासुर से अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ा।
भगवान शिव इसी असमंजस में थे कि वह किस तरह भस्मासुर से छुटकारा पा सकते हैं, इतने में ही उन्हें पालनहार विष्णु का ध्यान आया। वे विष्णु का स्मरण करने लगे। शिव का आह्वान सुनकर भगवान विष्णु उनके सामने उपस्थित हुए और उनकी सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध हुए।
भस्मासुर, शिव को ढूंढ़ रहा था कि उसकी नजर एक बेहद खूबसूरत स्त्री पर पड़ी। वह स्त्री इतनी आकर्षक थी कि भस्मासुर अपनी सुध-बुध खो बैठा। वह यह भी भूल गया कि शिव की तलाश क्यों कर रहा था। भस्मासुर एकटक उस स्त्री को निहारता रहा। उसने इससे पहले इतनी आकर्षक स्त्री को कभी नहीं देखा था। भस्मासुर ने उस खूबसूरत स्त्री से पूछा कि उसका नाम क्या है?
भस्मासुर के जवाब में उस स्त्री ने कहा कि वह मोहिनी है। मोहिनी को देखकर भस्मासुर उसकी खूबसूरती के जाल में बंध गया। उसने मोहिनी से पूछा ‘क्या तुम मुझसे विवाह करोगी’।
नर्तकी मोहिनी उसका सवाल सुनकर हंस पड़ी। उसने भस्मासुर से कहा कि वह एक नृत्यांगना है और केवल उसी पुरुष से विवाह करेगी जो स्वयं बेहतरीन नर्तक हो। भस्मासुर ने अपने जीवन में कभी भी नृत्य नहीं किया था लेकिन वह मोहिनी के कहने पर नृत्य करने के लिए भी तैयार हो गया।
भस्मासुर ने मोहिनी से कहा कि अगर वह उसे नृत्य सिखाएगी तो वह अच्छा नृत्य कर पाएगा। उसकी बात सुनकर मोहिनी ने कहा कि जैसे-जैसे वो नृत्य करती है, वैसे-वैसे वह भी उससे कदम मिलाए।
भस्मासुर, मोहिनी के कहे अनुसार उसकी तरह नाचने की कोशिश करने लगा। नाचते-नाचते मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा और उसकी देखा-देखी भस्मासुर ने भी वही किया। भस्मासुर यह भूल गया कि स्वयं अपने सिर पर हाथ रखने से वह भी भस्म हो सकता है। स्त्री के प्रेम में आकर वह शिव का वरदान भूल गया जो उसके लिए श्राप साबित हुआ।
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