Friday 17 May 2024

मानव हूँ

मानव हूँ 
बडे भाग्य से यह जन्म मिला है
क्या-क्या नहीं देखना होता है 
विरह , पीडा , मृत्यु 
हर दंश को सहता है
जीवन फिर भी जीता है
कभी अपने लिए कभी अपनों के लिए 
प्यार- दोस्ती - वफा - रिश्ते 
इनके बीच में रहता है
नाजुक मन होने के बावजूद 
बडे से बडा आघात सहता है 
पेट भरने के लिए न जाने कितने जतन करता है
हर रोज लडाई लडता है
जीने की खातिर न जाने क्या क्या सहता है
मानव हूँ 

No comments:

Post a Comment