Wednesday 21 November 2018

बगिया का फूल

डाली से टूटा फूल
फिर कभी नहीं खिलता
डाली मे लगा था
तब अभिमान था
मुझसे ही इसकी शोभा बरकरार
घमंड था अपने सौंदर्य पर
इतराता था
हवा मे झिलकोरे लेता था
सबकी आँखों को भाता
भूल गया था कि
मेरा असतित्व डाली से ही है
जो उससे एक बार जुदा हुआ
फिर तो किस्मत ही पलट गई
ईश्वर के चरणों मे
फिर वहाँ से किसी के घर मे
अब कचरे के ढेर में
पटका गया
सूई से बिंधा गया
धागे की जंजीर मे बांधा गया
डाल पर था तो हौले हौले सहलाता था
कोई तोडने आता तो का़ंटा चुभाता
यहाँ तो किसी को फिक्र नहीं
अपनी जड़ों को कभी छोड़कर जाना नहीं
यही सिखाया है वक्त ने
डाली पर दूसरे फूल आ जाएंगे
पर हमारा तो असतित्व ही खत्म
यहाँ तो कोई माली भी नहीं
बगिया के फूलों की देखभाल करे
बस लावारिस से हैं
और जैसे तैसे सांस ले रहे

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