Thursday 28 November 2019

घास फिर भी खास

पौधे तो बहुत है
नाम और काम के साथ
कोई खूबसूरत
कोई सुगंधित
कोई औषधीय
अपने अपने गुणों से भरपूर
इनको रोपने के लिए लालायित
सौंदर्यबोध होता है
कभी घर में
कभी दफ्तर में
कभी अगवाडे
कभी बगिया में
बस एक घास ही है
वह कहीं भी उग आता है
उसे किसी उर्वरक की जरूरत नहीं
चाहे या अनचाहे
किसी के बीच में
काटा और छाटा जाता है
वह बढना नहीं छोड़ता
अपनी पैठ बनाना नहीं छोड़ता
पहाड़ हो या समतल
इसे नष्ट करना भी इतना आसान नहीं
तभी तो आचार्य चाणक्य के पैर में जब चुभा
तब दही के मठ्ठे को डाल खत्म कर रहे थे
इसकी जड ही मिटा दूंगा

सीधा सादा
हर जगह समायोजित
वह जानता है अपनी कीमत
न रहे तो हरियाली गायब
केवल ठूंठ से पौधे और पेड़
सबकी शोभा का कारण वह
पशुओं का भोजन
गरीब की झोपड़ी
और न जाने क्या क्या
उपेक्षित है पर अपेक्षित  भी
वह घास है
फिर भी खास है

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