Sunday 29 March 2020

इनका मत करो तिरस्कार

आज सब कुछ धरा का धरा रह गया
वह दोस्त वह मित्र वह रिश्तेदार
वह सोसायटी वह दोस्ती
जिसकी खातिर हम करते थे
अपनों को नजरअंदाज
वह होटल वह रिसोर्ट
जिसके कारण घर था सराय
वह पिज्जा और बर्गर
जब हम अपनी रोटी को रहे थे भूल
घर का खाना था बेस्वाद
आज कठिन बेला में लगता है सब प्यारा
करोना ने जता दिया
अपने तो अपने ही होते हैं
घर तो घर ही होता है
रोटी तो रोटी ही होती है
यह सब ही है मुसीबत के संगी
इनका मत करो तिरस्कार

No comments:

Post a Comment