Friday 26 June 2020

चांद पर जमीन

वह धरती से चांद को देखता था
चांद तारों से बडा प्यार था
रात को झिलमिलाते तारों को निहारा करता था
अपनी दूरबीन लिए घंटों बैठा रहता था
उनके खेल देखता था
अपने आप मुस्कराता और खिलखिलाता था
बहुत प्यारा लगता था
तभी तो चांद पर जमीन ले रखी थी
जाने की तमन्ना
रहने की तमन्ना
सब धरा का धरा रह गया
धरती को ही छोड़ चला
चांद तो अमावस्या को ही छिप जाता है
तुम तो हमेशा के लिए छिप गए
सबको अंधकार में भर गए
अब तो पूर्णिमा कभी नहीं आएगी
ऐसी रिक्तता छोड गए
अपने परिजनों को जीवन को अंधकार कर गए
अब हमारे लिए सब दिन एक समान
चांद देखकर क्या करेंगे
जब तुमको न देख पाएंगे
हमारा तो चांद भी तुम
सूरज भी तुम
हमारा चिराग तुम
तुमसे ही जीवन में थी रोशनी
अब क्या करें
कैसे जीए
किससे व्यथा कहें
बुढापे की लाठी तो चला गया
पंचतत्व में विलीन हो गया
बस याद छोड़ गया
हमको अकेला कर गया

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