Friday 26 June 2020

मैं बेचारा सबका मारा

मैं बेचारा सबका मारा
दिन भर भटकता
सबके लिए जुगाड़ करता
मालिक की बातें सुनता
खून पसीना बहाता
शाम को थक कर घर आता
घर आने पर भी हर कोई बात सुनाता
पत्नी की अलग किच-किच
बच्चों की अलग फरमाइश
घर का किराया
बिजली का बिल
मकान मालिक का तगादा
उसमें हर रोज पीसता मैं बेचारा
किसी को दया नहीं
घर पर भी सुकून नहीं
मैं अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाता
फिर भी सब कुछ पूरा न कर पाता
रात दिन चिंता में रहता
कैसे चलेगा ऐसे गुजारा
सबका दोषी मैं
सब सही तो मेरा दोषी कौन ??
किस कारण यह हालात हुए निर्माण
सबकी जड है यह मंहगाई
यह मुझे मार रही है
मेरी ऐसी गत बना रही है
मैं बेचारा सबका मारा
और सबसे कस कर मुझे
मंहगाई ने मारा
हाय मंहगाई । हाय मंहगाई
तूने तो कहीं का न छोड़ा
न घर में शांति न बाहर
मैं बेचारा सबका मारा

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