Monday 28 December 2020

माली और उसकी बगिया

मैने बीज बोया
अंकुर निकले
कोंपले उभरी
दिन प्रतिदिन बडा हो रहा था
मैं उसकी देखभाल करती
सबसे बचाती
चिडियाँ , चुरूंग , चूहे से
खाद - पानी देती
थोड़ा बडा हुआ
तब धीरे-धीरे चिंता कम हुई
तब भी राह भटके पशुओं का भक्ष न बन जाए
इसलिए पहरा देती रहती
आज वह बडा हो गया
बौर , फूल , फल भी आ गए
अब वैसी चिंता नहीं रही
अब तो वह स्वयं दूसरों का आधार है
पक्षी उस पर आसरा लेते हैं
पशु और यात्री विश्राम करते हैं
अच्छा लगता है
हरियाली से भरा फलों से लदा
लहलहाते और झूमते
मैंने सोचा मेरी जिम्मेदारी खत्म हो गई
फिर लगा नहीं
अभी तो यह भी डर है
कोई पत्थर न मारे
डाल न तोड़े
काटकर न ले जाएं
उसको नुकसान हो
पीड़ा हो
यह मैं नहीं सह सकती
अब भी उतनी ही शिद्दत से देखभाल
जिसको लगाया है उसे ऐसे ही कैसे छोड़ दूं
वहीं बात तो संतान पर लागू होती है
जन्मदात्री हूँ
भले बडा हो गया हो
अपने पैरों पर खड़ा हो
तब भी चिंता तो रहती है
कुछ अनिष्ट न हो
खडा भले न हुआ जाता हो
उसके लिए कुछ बनाना अच्छा लगता है
माँ रहे और संतान का पेट न भरे
यह कैसे संभव
अपने जीते जी जन्मदाता उस पर ऑच कैसे आने दे सकते हैं
संतान कोई भी हो
कैसी भी हो
बेटा हो या बेटी हो
माली अपनी बगिया को हमेशा लहलहाता ही देखना चाहता है
महकता ही देखना चाहता है

No comments:

Post a Comment