Sunday 27 December 2020

राम की सीता

मुझे राम मिले
तब स्वयं को सीता बनना पडेगा
एक पत्नी व्रत
पत्नी ही प्राण प्रिया
उसके लिए कुछ भी कर गुजरना
यहाँ तक कि रावण जैसे योद्धा से युद्ध ठान लेना
पत्नी के लिए वन वन भटकना
पत्नी पर पूर्ण विश्वास
किसी और के कहने से पत्नी को वन गमन
राज धर्म निभाने के लिए
पर पत्नी मन में बसी रही
वहाँ से न बहिष्कृत हुई
न तिरस्कृत हुई
प्रेम और सम्मान के साथ ह्दय में विराजमान
यह तो हुए राम
सीता बनना भी तो जरूरी
बिना शिकवा शिकायत के
महलों को छोड़ पति संग चल पडी
वन वन भटकी पर चेहरे पर शिकन न आने दी
जनकदुलारी कुटिया में रहीं
रसोई से लेकर जल भरने तक गृहस्थी का हर कार्य किया
जिसकी वह अभ्यस्त नहीं थी
गृहस्थी धर्म निभाने के लिए ही तो वह देवर लक्ष्मण की अग्नि रेखा तोड़ संन्यासी रावण को भिक्षा देने आई थी
रावण के सामने झुकी नहीं
हर प्रलोभन दिया गया
वह टस से मस नहीं हुई
अपने पति पर विश्वास था
एक कोमलांगी राजकुमारी से राम की पत्नी का धर्म
महलों से बहिष्कृत होने पर कोई शिकायत नहीं
अकेले उस राजा के बच्चों का पालन-पोषण
जिन्होंने उन्हें राज धर्म निभाने के लिए वन भेज दिया
धरती पुत्री थी
महल उन्हें शायद रास नहीं आया
पहले भी बाद में भी
आखिर धरती माँ की गोद में ही शरण
पुत्री , पत्नी , माँ और अयोध्या की महारानी
हर कर्तव्य बखूबी निभाया
राम , राम है उसका कारण उनकी जीवनसंगीनी सीता हैं

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