Sunday 28 February 2021

बेटी - बेटा

बेटा बेटा करता रहा जमाना
बेटियां निकल गई जमाने से आगे
बेटे को सब मिला
घर - द्वार और अधिकार
इसी में वह उलझ कर रह गया
अपनी जिम्मेदारी को भूल गया
बेटी अब भी है माता - पिता का सहारा
भले दो घरों में बंटा उसका जीवन सारा
प्यार के दो मीठे बोल
अब वह बोल न पाता
पत्नी जो कहती वैसा वह करता
हर बात का हिसाब - किताब देना पडता है
जैसे वह पति नहीं गुलाम हो
न अपनी इच्छा से रह पाता
न शांति से कुछ कर पाता
कहने को तो पुरुष है
पर उसका पुरुषत्व है डरा हुआ
किसी के अधीन
वह डरता है अपनी पत्नी से
जो किसी की बेटी है
बेटी तो बेटी ही रहीं
बेटा बेटा न बन पाया

No comments:

Post a Comment