Friday 18 June 2021

मै तो ओस की बूंद हूँ

मैं  तो  ओस की बूंद  हूँ
आसमां  को छूती हूँ
पर पैर मेरा जमीन पर ही
मुझे पता है मैं क्या हूँ
तभी तो अपनी औकात में रहती हूँ
आसमां की बुलंदियों को  छूती जरूर हूँ
पर मिट्टी की कीमत भी जानती हूँ
कभी सीप में मोती बनती हूँ
कभी पत्तों पर कभी फूलों पर
कभी कमल दल
कभी सूर्य की सुनहरी किरणों मे झिलमिलाती हूँ
फिर भी मैं  गर्व नहीं  करती
अंत में  मिलना तो है इसी मिट्टी  में
तभी  तो  अपनी औकात में रहती हूँ
मैं  तो ओस की बूंद  हूँ
आसमां को  छूती हूँ
पर पैर मेरा जमीन पर  ही

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