Sunday 23 October 2022

समय चक्र

मैं बिजी हूँ 
बाद में बात करता हूँ 
वह बाद कब आता है पता नहीं 
इंतजार करता रहता है
कभी-कभी बाद आ जाता है कभी नहीं 
कितनी बिजी हो गई है जिंदगी 
इसमें दोष तो किसी का नहीं 
फुर्सत के क्षण मिलना आसान नहीं 
हर बात काम की हो गई है
यहाँ तक कि घूमना - फिरना भी
सबका शैड्यूल बना रहता है
सब टाइम टेबल के हिसाब से चलता है
व्यक्ति काम का गुलाम हो गया है 
स्वतंत्रता कहीं लुप्त हो गई है
हमेशा दिमाग उलझा रहता है
घडी की सुइयों के अनुसार 
वह जमाना गया
जब एक - दूसरे से घंटों बतियाते थे
बिना सूचना दिए किसी के घर चले जाते थे
आज एक अतिथि आ जाएँ 
तब सब गडबडा जाता है
सब समय का चक्र है।

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